पटना: राज्य सरकार बिहार में नए उद्योग लगवाने और बड़े निवेशकों को बिहार लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. इसी क्रम में मार्च महीने के 19 तारीख को बिहार सरकार के उद्योग विभाग के मंत्री शाहनवाज हुसैन ने इथेनॉल उत्पादन प्रोत्साहन नीति 2021 को लॉन्च किया. इथेनॉल पॉलिसी लाने वाला भारत का पहला राज्य बिहार बन तो गया है. लेकिन अबतक राज्य में अबतक इथेनॉल पॉलिसी के तहत नई इकाई शुरु नहीं हुई है.
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100 से 120 करोड़ की राशि होगी खर्च
राज्य में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इथेनॉल की इकाई शुरू करने में कम से कम 100 से 120 करोड़ की राशि खर्च होगी. हालांकि उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने कहा था की बड़े निवेशक बिहार में आएंगे और वह लगातार संपर्क में है फिनोल की इकाई भी बिहार में लगेगी। वहीं उन्होंने यह भी बताया कि बिहार में इथेनॉल की फैक्ट्री लगेगी तो किसानों को तो लाभ होगा ही साथ ही बिहार में काफी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित होंगे.
लोगों को मिलेगा रोजगार
उन्होंने बताया कि हमारा मुख्य उद्देश्य है बिहार में अधिक से अधिक बड़े उद्योग लगे जिसका लाभ बिहार को तो मिलेगा ही साथ ही बिहार के अधिक से अधिक लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो सकेगा. इस नीति का उद्देश्य राज्य में शत-प्रतिशत इथेनॉल का उत्पादन करने वाली नई स्टैंड अलोन इकाइयों एवं अन्य सभी निवेशक, किसान, मजदूर एवं अन्य जुड़े लोगों को लाभ पहुंचाना है. इथेनॉल उत्पादन के फीडस्टॉक कच्चे माल का उत्पादन करने वाले किसानों की आय बढ़ाना है.
मक्का और टूटे चावल से बनेगा इथेनॉल
बिहार में टूटे हुए चावल बेकार हो जाते हैं या फिर वैसे अनाज जो भीग गए वह किसानों को काफी कम दरों में बेचना होता है और किसानों को इससे काफी नुकसान होता है. लेकिन इथेनॉल की फैक्ट्रियां लगने से किसानों को यह लाभ मिलेगा कि उनके टूटे हुए चावल और भीगे हुए अनाज का भी उन्हें सही मूल्य मिलेगा और वह इसे फैक्ट्री में इसे देखकर वाजिब कीमत ले सकते हैं. केवल इथेनॉल बनाने वाली इकाइयों को गन्ना के बजाय मक्का और टूटे चावल से इथेनॉल बनाना होगा क्योंकि इथेनॉल इकाई लगाने में ज्यादातर लोग गन्ना उद्योग और चीनी मिल से जुड़े हुए हैं जिन्होंने आवेदन किया है.
एक साल से ज्यादा लग सकता है सयम
बिहार में इथेनॉल इकाई लगाने में कम से कम 1 वर्ष लग जाएंगे. इथेनॉल इकाई लगाने के लिए अब तक करीब 30 के आसपास आवेदन एसआईपीबी के माध्यम से आ चुके हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें से ज्यादातर लोग बड़े चीनी मिल और गन्ना उद्योग से जुड़े हैं. राज्य में इथेनॉल इकाई लगाने के लिए कुल 16 प्रकार के क्लीयरेंस लेने होंगे. जिसमें पर्यावरण क्लीयरेंस सहित सभी क्लीयरेंस लेने के बाद जिन इलाकों में इकाई लगेंगी वहां के लोगों के बीच सुनवाई होगी उसके बाद ही इथेनॉल इकाई के लिए भवन निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ होगी. तो कह सकते हैं कि इन सभी प्रक्रिया में लगभग 1 वर्ष या उससे अधिक समय लग सकता है. हालांकि पहली बार इकाई लगेगी इसलिए उद्योग विभाग भी इसको लेकर कुछ क्लियर नहीं कह पा रहा है कि कितना समय लग पाएगा.
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विभाग का दावा जल्द शुरु होगा उद्योग
वहीं, विभाग का दावा है कि काफी कम समय में उद्योग शुरू हो जाएंगे. पको बता दें कि वर्तमान में बिहार में लगभग 12 करोड लीटर ईथेनॉल का उत्पादन हो रहा है और देश में ईथेनॉल उत्पादन में जिसमें बिहार पांचवें स्थान पर है. लगभग 100 फ़ीसदी एथेनॉल को पेट्रोलियम कंपनियां ले लेते हैं.अब देखने वाली बात हो गई कि कितने समय में इथेनॉल कि नई इकाई लगती है.क्या दूसरे राज्यों से उद्यमी आकर बिहार में निवेश करेंगे या फिर बिहार के उद्यमी जो चीनी मिल और गन्ना उद्योग से जुड़े हैं वह सीमित संसाधन के साथ इथेनॉल की इकाई लगाएंगे.