ETV Bharat / state

बिहार चुनाव पर बोले प्रवासी मजदूर, अपने घर में रोटी नहीं मिलती वोट देने वापस क्यों जाएं

बिहार में सरकार बनाने के दांव पेंच आजमाए जा रहे हैं. हर पार्टी जीत के दावे ठोक रही है. 'सुशासन बाबू' अपने 15 सालों का गुणगान कर रहे हैं, लेकिन चुनावी समर में कई प्रवासी मजदूर ऐसे हैं, जो कोरोना काल में भी अपने परिवार को छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर रोजगार की तलाश में आने को मजबूर हैं.

employment is more important than bihar assembly election 2020 for migrant laborers
employment is more important than bihar assembly election 2020 for migrant laborers
author img

By

Published : Oct 13, 2020, 10:04 PM IST

रोहतक: कहते हैं गरीब का कोई ठिकाना नहीं होता है. पेट की आग बुझ जाए जहां, वहीं आशियाना होता है. ये दुख प्रवासी मजदूरों से बेहतर शायद ही कोई समझ सकता है. रोजगार की मार और ऊपर से कोरोना महामारी के बाद ठप्प हुए कामकाज. लॉकडाउन लगा तो प्रवासी मजदूर अपने-अपने घर चल पड़े, लेकिन पेट की आग घर में बैठने से नहीं बुझती है.

रोजगार तलाशने पराए प्रदेश पहुंचे प्रवासी

दो जून की रोटी को मोहताज हुए तो ये प्रवासी मजदूर फिर निकल पड़े पराये प्रदेश. हरियाणा के रोहतक में रह रहे 12 प्रवासी मजदूर बिहार से आए हैं. वो बिहार जहां अभी चुनाव है. जहां दावा है कि सुशासन की बयार है. वो बिहार जहां नीतीश कुमार हैं. चुनावी मौसम में एक बार फिर विकास के दावे हैं और रोजगार के सपने.

दरभंगा से रोहतक आए प्रवासी मजदूर

लॉकडाउन लगने पर प्रवासी मजदूर बिहार लौट रहे थे तो प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार ने वादा किया था कि प्रवासियों को पराये परदेस नहीं जाने दिया जाएगा. उन्हें बिहार में ही काम दिया जाएगा. ये विकास के दावे नेताओं के हैं, लेकिन इन मजदूरों की सुनिए जो सुबह खाते हैं तो शाम का ठिकाना नहीं होता.

बिहार के दरभंगा से काम की तलाश में रोहतक आए शिवजी दास ने कहा कि अगर बिहार में काम मिलता तो वो यहां भूखे मरने क्यों आते? वहां बच्चे भूखे मर रहे हैं और यहां हम.

बिहार में सरकार बनाने के दांव पेंच आजमाए जा रहे हैं. हर पार्टी जीत के दावे ठोक रही है. 'सुशासन बाबू' अपने 15 सालों का गुणगान कर रहे हैं, लेकिन इन मजदूरों को दो जून की रोटी उस सुशासन में नहीं मिली. दरभंगा से आए बिंदर सराहे ने कहा कि बिहार में बाढ़ ने घर तबाह कर दिया है और वो यहां काम की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं. जेब में पैसे नहीं है, वोट देने कैसे जाएंगे?

पेश है रिपोर्ट

वोट देने बिहार नहीं जाना चाहते प्रवासी

पेट की आग बुझाने अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर आए प्रवासी मजदूरों के लिए अपने प्रदेश बिहार में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व यानी की विधानसभा चुनाव कोई मायने नहीं रखता. उनके लिए मायने रखता है, तो सिर्फ और सिर्फ रोजगार क्योंकि भूख रोटी से बुझती है, वोट देने से नहीं.

'भूख रोटी से बुझती है, वोट से नहीं'

विडंबना देखिए, अपना घर परिवार छोड़कर 2 जून की रोटी का जुगाड़ करने ये प्रवासी मजदूर हरियाणा के रोहतक जिले तो पहुंचे, लेकिन यहां भी इन्हें काम नहीं मिला. अपने घर से जो थोड़ा अनाज ये अपने साथ लेकर आए थे वो भी अब खत्म होने की कगार पर है. चुनाव का नाम लेते ही उनका दर्द जुबान पर आ जाता है. जनदेव सराहे ने कहा कि सरकार को हमारा वोट लेने का कोई अधिकार नहीं है. वहीं एक युवा प्रवासी अजीत साहू ने कहा कि वो बिहार क्यों जाएं, जब वहां रोजगार नहीं है तो वहां जाकर क्या करेंगे?

ये भी पढ़ें:- बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव का कांग्रेस पर तंज, बोले- भ्रष्टाचार की जननी है पार्टी

रोजगार की तलाश में बिहार से हरियाणा आए प्रवासी मजदूरों को दो वक्त की रोटी और काम की दरकार है. इससे ज्यादा ना उन्हें 'सुशासन बाबू' से कोई उम्मीद है और ना ही बिहार चुनाव में कोई दिलचस्पी. यही वजह है कि ये प्रवासी मजदूर यहीं रहकर खाना और कमाना चाहते हैं.

रोहतक: कहते हैं गरीब का कोई ठिकाना नहीं होता है. पेट की आग बुझ जाए जहां, वहीं आशियाना होता है. ये दुख प्रवासी मजदूरों से बेहतर शायद ही कोई समझ सकता है. रोजगार की मार और ऊपर से कोरोना महामारी के बाद ठप्प हुए कामकाज. लॉकडाउन लगा तो प्रवासी मजदूर अपने-अपने घर चल पड़े, लेकिन पेट की आग घर में बैठने से नहीं बुझती है.

रोजगार तलाशने पराए प्रदेश पहुंचे प्रवासी

दो जून की रोटी को मोहताज हुए तो ये प्रवासी मजदूर फिर निकल पड़े पराये प्रदेश. हरियाणा के रोहतक में रह रहे 12 प्रवासी मजदूर बिहार से आए हैं. वो बिहार जहां अभी चुनाव है. जहां दावा है कि सुशासन की बयार है. वो बिहार जहां नीतीश कुमार हैं. चुनावी मौसम में एक बार फिर विकास के दावे हैं और रोजगार के सपने.

दरभंगा से रोहतक आए प्रवासी मजदूर

लॉकडाउन लगने पर प्रवासी मजदूर बिहार लौट रहे थे तो प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार ने वादा किया था कि प्रवासियों को पराये परदेस नहीं जाने दिया जाएगा. उन्हें बिहार में ही काम दिया जाएगा. ये विकास के दावे नेताओं के हैं, लेकिन इन मजदूरों की सुनिए जो सुबह खाते हैं तो शाम का ठिकाना नहीं होता.

बिहार के दरभंगा से काम की तलाश में रोहतक आए शिवजी दास ने कहा कि अगर बिहार में काम मिलता तो वो यहां भूखे मरने क्यों आते? वहां बच्चे भूखे मर रहे हैं और यहां हम.

बिहार में सरकार बनाने के दांव पेंच आजमाए जा रहे हैं. हर पार्टी जीत के दावे ठोक रही है. 'सुशासन बाबू' अपने 15 सालों का गुणगान कर रहे हैं, लेकिन इन मजदूरों को दो जून की रोटी उस सुशासन में नहीं मिली. दरभंगा से आए बिंदर सराहे ने कहा कि बिहार में बाढ़ ने घर तबाह कर दिया है और वो यहां काम की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं. जेब में पैसे नहीं है, वोट देने कैसे जाएंगे?

पेश है रिपोर्ट

वोट देने बिहार नहीं जाना चाहते प्रवासी

पेट की आग बुझाने अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर आए प्रवासी मजदूरों के लिए अपने प्रदेश बिहार में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व यानी की विधानसभा चुनाव कोई मायने नहीं रखता. उनके लिए मायने रखता है, तो सिर्फ और सिर्फ रोजगार क्योंकि भूख रोटी से बुझती है, वोट देने से नहीं.

'भूख रोटी से बुझती है, वोट से नहीं'

विडंबना देखिए, अपना घर परिवार छोड़कर 2 जून की रोटी का जुगाड़ करने ये प्रवासी मजदूर हरियाणा के रोहतक जिले तो पहुंचे, लेकिन यहां भी इन्हें काम नहीं मिला. अपने घर से जो थोड़ा अनाज ये अपने साथ लेकर आए थे वो भी अब खत्म होने की कगार पर है. चुनाव का नाम लेते ही उनका दर्द जुबान पर आ जाता है. जनदेव सराहे ने कहा कि सरकार को हमारा वोट लेने का कोई अधिकार नहीं है. वहीं एक युवा प्रवासी अजीत साहू ने कहा कि वो बिहार क्यों जाएं, जब वहां रोजगार नहीं है तो वहां जाकर क्या करेंगे?

ये भी पढ़ें:- बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव का कांग्रेस पर तंज, बोले- भ्रष्टाचार की जननी है पार्टी

रोजगार की तलाश में बिहार से हरियाणा आए प्रवासी मजदूरों को दो वक्त की रोटी और काम की दरकार है. इससे ज्यादा ना उन्हें 'सुशासन बाबू' से कोई उम्मीद है और ना ही बिहार चुनाव में कोई दिलचस्पी. यही वजह है कि ये प्रवासी मजदूर यहीं रहकर खाना और कमाना चाहते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.