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इलेक्ट्रॉनिक कचरा बिहार में बन रहा बड़ी मुसीबत, नहीं है कोई रिसाइक्लिंग प्वाइंट - बिहार में इलेक्ट्रॉनिक कचरा का उत्पादन

मौजूदा समय पर प्रदूषण बड़ी चुनौती है. बिहार में इनदिनों ई-वेस्ट का निदान करना सरकार के लिए नई परेशानी खड़ी होती दिखाई पड़ रही है.

इलेक्ट्रॉनिक कचरा
इलेक्ट्रॉनिक कचरा
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Published : Aug 13, 2020, 3:10 PM IST

Updated : Aug 13, 2020, 8:10 PM IST

पटना: बिहार में प्रदूषण कम करने और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार 3 साल में 24000 करोड़ पर खर्च करने जा रही है. बड़ी संख्या में पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. लेकिन एक बड़ी समस्या पर अब तक सरकार का ध्यान नहीं है, वह समस्या इलेक्ट्रॉनिक कचरा निष्पादन की है. यह दिनोंदिन राज्य के लिए बड़ा खतरा बनते जा रही है.

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में प्रति व्यक्ति ई-कचरा 100 से 200 ग्राम तक है. लेकिन पूरे राज्य में एक भी रीसाइक्लिंग प्लांट ई कचरे के लिए नहीं बन पाया है. बिहार के वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने इस साल की शुरुआत में देशभर के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक में यह मामला उठाया था. हालांकि इस पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है.

patna
इलेक्ट्रॉनिक कचरा

बिहार की तरफ से की गई अपील
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बिहार के वन विभाग की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट के लिए ठोस दिशा निर्देश बनाने की अपील की गई है. सबसे पहले करीब 7 साल पहले बिहार में ई वेस्ट का आकलन किया गया था. एक अनुमान के मुताबिक बिहार के 4 बड़े शहर पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और गया में 23000 टन से ज्यादा ही कचरा फेंका जा रहा था.उस वक्त कचरा संग्रह के लिए राज्य में कोई कलेक्शन सेंटर नहीं था. तब बिहार में 150 से अधिक कचरा संग्रह सेंटर बनाए गए लेकिन इनकी जिम्मेदारी संबंधित कंपनियों को ही दी गई है. हकीकत में यह सेंटर कोई काम नहीं कर रहे हैं.

patna
दीपक कुमार सिंह, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव

नोएडा और अन्य जगहों में भेजा जाता है कचरा
अभी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां अपनी तरफ से इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रीसाइक्लिंग सेंटर्स को भेजती हैं जो या तो नोएडा में है या दक्षिण भारत के कुछ शहरों में हैं. बिहार में कोई रीसाइक्लिंग सेंटर नहीं होना खतरनाक उत्सर्जन की वजह बन रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में सबसे घातक तत्व पारा और शीशा होते हैं जो भूजल को जहरीला बना देते हैं. इन दोनों तत्वों की कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे में भागीदारी 40 फीसदी के आसपास है. इसके संपर्क में आने से मनुष्य के नर्वस सिस्टम, स्किन और कैंसर और दिल संबंधी बीमारियों खतरा बढ़ जाता है. यही वजह है कि रिसाइक्लिंग सेंटर की स्थापना बेहद जरूरी है.

पेश है रिपोर्ट

तय होनी चाहिए जिम्मेदारी
जानकारी के मुताबिक बिहार के उद्योग विभाग ने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट रीसाइकलिंग प्लांट के लिए जमीन देने की बात कही है. एनजीटी की गाइडलाइन के मद्देनजर ई-कचरे को प्रदेश में ही रिसाइकल किया जा सकेगा. हालांकि वन पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह कहते हैं कि रिसाइक्लिंग के लिए सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाली कंपनियों की होनी चाहिए. इसके लिए उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लिखा है. जल्द ही इसमें कोई कार्रवाई होने की उम्मीद है.

बिहार के 5 बड़े शहरों में इलेक्ट्रॉनिक कचरा का उत्पादन(2020 में)

  1. पटना- 38415 टन
  2. मुजफ्फरपुर- 16611 टन
  3. भागलपुर- 11648 टन
  4. गया- 14254 टन
  5. दरभंगा- 12650 टन

पटना: बिहार में प्रदूषण कम करने और पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार 3 साल में 24000 करोड़ पर खर्च करने जा रही है. बड़ी संख्या में पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. लेकिन एक बड़ी समस्या पर अब तक सरकार का ध्यान नहीं है, वह समस्या इलेक्ट्रॉनिक कचरा निष्पादन की है. यह दिनोंदिन राज्य के लिए बड़ा खतरा बनते जा रही है.

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में प्रति व्यक्ति ई-कचरा 100 से 200 ग्राम तक है. लेकिन पूरे राज्य में एक भी रीसाइक्लिंग प्लांट ई कचरे के लिए नहीं बन पाया है. बिहार के वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने इस साल की शुरुआत में देशभर के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक में यह मामला उठाया था. हालांकि इस पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है.

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इलेक्ट्रॉनिक कचरा

बिहार की तरफ से की गई अपील
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बिहार के वन विभाग की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट के लिए ठोस दिशा निर्देश बनाने की अपील की गई है. सबसे पहले करीब 7 साल पहले बिहार में ई वेस्ट का आकलन किया गया था. एक अनुमान के मुताबिक बिहार के 4 बड़े शहर पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और गया में 23000 टन से ज्यादा ही कचरा फेंका जा रहा था.उस वक्त कचरा संग्रह के लिए राज्य में कोई कलेक्शन सेंटर नहीं था. तब बिहार में 150 से अधिक कचरा संग्रह सेंटर बनाए गए लेकिन इनकी जिम्मेदारी संबंधित कंपनियों को ही दी गई है. हकीकत में यह सेंटर कोई काम नहीं कर रहे हैं.

patna
दीपक कुमार सिंह, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव

नोएडा और अन्य जगहों में भेजा जाता है कचरा
अभी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां अपनी तरफ से इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रीसाइक्लिंग सेंटर्स को भेजती हैं जो या तो नोएडा में है या दक्षिण भारत के कुछ शहरों में हैं. बिहार में कोई रीसाइक्लिंग सेंटर नहीं होना खतरनाक उत्सर्जन की वजह बन रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में सबसे घातक तत्व पारा और शीशा होते हैं जो भूजल को जहरीला बना देते हैं. इन दोनों तत्वों की कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे में भागीदारी 40 फीसदी के आसपास है. इसके संपर्क में आने से मनुष्य के नर्वस सिस्टम, स्किन और कैंसर और दिल संबंधी बीमारियों खतरा बढ़ जाता है. यही वजह है कि रिसाइक्लिंग सेंटर की स्थापना बेहद जरूरी है.

पेश है रिपोर्ट

तय होनी चाहिए जिम्मेदारी
जानकारी के मुताबिक बिहार के उद्योग विभाग ने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट रीसाइकलिंग प्लांट के लिए जमीन देने की बात कही है. एनजीटी की गाइडलाइन के मद्देनजर ई-कचरे को प्रदेश में ही रिसाइकल किया जा सकेगा. हालांकि वन पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह कहते हैं कि रिसाइक्लिंग के लिए सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाली कंपनियों की होनी चाहिए. इसके लिए उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लिखा है. जल्द ही इसमें कोई कार्रवाई होने की उम्मीद है.

बिहार के 5 बड़े शहरों में इलेक्ट्रॉनिक कचरा का उत्पादन(2020 में)

  1. पटना- 38415 टन
  2. मुजफ्फरपुर- 16611 टन
  3. भागलपुर- 11648 टन
  4. गया- 14254 टन
  5. दरभंगा- 12650 टन
Last Updated : Aug 13, 2020, 8:10 PM IST
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