पटना: सरकारी अस्पतालों में दवा-इलाज के समुचित इंतजाम होने का सरकारी दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है. ग्रामीणों इलाकों के अस्पतालों की कौन कहे, जिले के बड़े अस्पताल एनएमसीएच में भी समय से सिर्फ मरीज पहुंचते है. यहां इलाज कराने के लिये आने वाले रोगियों को धरती के भगवान यानी डॉक्टर साहब का इंतजार रहता है.
विभागों का निरीक्षण
पटना के एनएमसीएच अस्पताल में तमाम दावों के बावजूद स्वास्थ्य सेवा बेहाल है. मरीजों की लंबी-लंबी कतार लगी है. लेकिन डॉक्टर साहब का कोई अता-पता नहीं है. ऐसा ही कुछ हाल गुरुवार को देखने को मिला, जब अधीक्षक ने अस्पताल के कई विभागों का निरीक्षण किया तो डॉक्टर ड्यूटी से गायब दिखे.
कार्रवाई करने का निर्देश
दरअसल, मरीज की शिकायतों पर अधीक्षक विनोद कुमार सिंह ने अस्पताल के कई विभागों का निरीक्षण किया तो, अधिकांश विभाग के सीनियर डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं थे. मरीज लाइन में नजर आये. लेकिन उनको देखने के लिये डॉक्टर साहब का कही अता-पता नहीं था. इसके बाद, अधीक्षक विनोद कुमार सिंह ने कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.
डब्ल्यूएचओ: बिहार में डॉक्टरों की कमी
स्वास्थ्य सूचकांकों में बिहार कई मामलों में निचले पायदान पर है. यहां डॉक्टर और मरीजों का अनुपात दयनीय है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है कि 1 हजार मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. ऐसे में बिहार में डॉक्टरों की संख्या एक लाख से ज्यादा होनी चाहिए, लेकिन अभी बिहार में महज 6,830 डॉक्टर उपलब्ध हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं का अकाल
वहीं, अस्पतालों की बात करें, तो बिहार में प्राइमरी हेल्थ सेंटरों की संख्या 1,900 के करीब है जबकि आबादी के हिसाब इनकी संख्या 3,470 होनी चाहिए. इसी तरह कम्युनिटी हेल्थ सेंटरों की संख्या 867 होनी चाहिए, जबकि अभी 150 ही है. पूरे राज्य में महज 9 मेडिकल कॉलेज हैं.