पटना: कोरोना काल (Corona Period) में जहां सभी लोग घर में आइसोलेटेड रहे, वहीं चिकित्सक लगातार अपनी ड्यूटी पर डंटे रहे. दिन-रात संक्रमित लोगों का इलाज किया और इस दौरान वे खुद भी संक्रमित हुए. देशभर में इस महामारी से 1000 से अधिक चिकित्सकों की जानें गईं. बिहार में सर्वाधिक चिकित्सकों की मौत (Doctors Died in Corona Period) कोरोना से हुई. 170 से अधिक डॉक्टरों ने अपनी जानें गंवाईं.
आखिर क्या वजह रही कि तमाम एहतियात के बावजूद इतनी बड़ी में डॉक्टरों की मौत हुई, इसके लिए बिहार आईएमए (Bihar IMA) ने 8 सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था. हालांकि अभी तक जांच की फाइनल रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन शुरुआती रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं. खराब गुणवत्ता का सर्जिकल मास्क, पीपीई कीट और एन95 मास्क की कमी और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी प्रमुख वजह मानी जा रही है.
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बिहार आईएमए के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार (Ajay Kumar) ने कहा कि कोरोना के समय जब देश में लॉकडाउन लागू था और चिकित्सकों की छुट्टियां रद्द थी, तब सरकार ने एपिडेमिक डिजीज एक्ट लगाकर सभी चिकित्सीय संस्थान खुले रखने के निर्देश दिए थे. डॉक्टरों ने भी अपनी जरूरत को समझते हुए बिना छुट्टी लगातार ड्यूटी करते रहे. चाहे वह निजी क्षेत्र के हो या सरकारी क्षेत्र के. बिहार में जब 170 चिकित्सकों की कोरोना से मौत हुई, उसके बाद मौत का कारण जानने के लिए जांच कमेटी का गठन किया गया. जिसमें यह पता चला कि कोरोना की पहली लहर में पीपीई कीट और एन95 मास्क की कमी से चिकित्सकों को जूझना पड़ा.
डॉ. अजय कुमार ने कहा कि सरकारी अस्पताल में सरकार की तरफ से पीपीई कीट और एन95 मास्क की आपूर्ति तो हुई मगर प्राइवेट अस्पतालों मे पीपीई किट और एन95 मास्क की उपलब्धता नहीं हो पाई, क्योंकि बाजार में उस समय शॉर्टेज था. उन्होंने कहा कि इन सब वजहों से फर्स्ट वेब में चिकित्सकों की मौतें हुईं, जो लगभग 40 से 45 की संख्या में थी लेकिन दूसरी लहर में 120 से अधिक चिकित्सकों की मौत हो गई.
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डॉ. अजय कुमार ने कहा कि फर्स्ट वेब में काफी चिकित्सक कोरोना संक्रमित हुए लेकिन वह ठीक हो गए. ऐसे में दूसरी लहर में चिकित्सकों ने भी कोरोना को हल्के में ले लिया. जबकि दूसरी लहर में वायरस का वैरीअंट अलग था और यह बहुत अधिक खतरनाक भी था. उन्होंने कहा कि दूसरी लहर में चिकित्सकों ने लापरवाही दिखाई और सही तरीके से पीपीई किट को यूज नहीं किया. ऐसे में अधिक संख्या में वे संक्रमित हुए. संक्रमित होने के बाद जब स्थिति गंभीर हुई, तब उन्हें अस्पताल में बेड मिलने में भी काफी मुश्किल हुई और समय पर ऑक्सीजन चिकित्सकों को नहीं मिला.
बिहार आईएमए के कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि देशभर में दूसरी लहर में ऑक्सीजन की किल्लत रही, बिहार में भी स्थिति यही थी. उन्होंने कहा कि जांच में ये बात भी सामने आ रही है कि सर्जिकल मास्क की घटिया क्वालिटी भी मौत की एक प्रमुख वजह है. सर्जिकल मास्क आम लोगों के लिए भले उपयोगी है, मगर चिकित्सकों के लिए खासकर कोरोना मरीजों को देखने के समय यह कारगर नहीं है. ऐसे समय में अच्छी क्वालिटी का एन95 मास्क जरूरी है.
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डॉ. अजय कुमार ने आगे बताया कि जिन चिकित्सकों की मौत हुई है, उनके परिवार वालों से आइएमए अभी भी संपर्क में है और काफी चिकित्सकों के परिवार वालों का कहना है कि समय पर इलाज नहीं होने की वजह से मोतें हो गईं, क्योंकि दूसरी लहर में अस्पतालों में मरीजों की संख्या इतनी अधिक थी कि एडमिट कराना मुश्किल हो रहा था. उन्होंने कहा कि जांच कमेटी की फाइनल रिपोर्ट आने में कुछ समय लगेगा, लेकिन शुरुआती दृष्टया चिकित्सीय संसाधन की कमी, ऑक्सीजन बेड की कमी, गुणवत्तापूर्ण एन95 मास्क की कमी, घटिया क्वालिटी का सर्जिकल मास्क और पीपीई किट और कोरोना को लेकर थोड़ी बहुत चिकित्सकों की लापरवाही प्रमुख वजहें रही है.