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पटना: माघ पूर्णिमा पर बाढ़ के 'उमानाथ धाम' में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

माघ पूर्णिमा पर बाढ़ के 'उमानाथ धाम' में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. इस मेले में अंधविश्वास के कई नमूने देखे गए.

Umanath Dham in barh
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Published : Feb 27, 2021, 1:57 PM IST

पटना: 'माघी पूर्णिमा मेला' और 'कार्तिक पूर्णिमा मेला' के लिए मशहूर बाढ़ का सुविख्यात 'उमानाथ धाम' पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. इस दौरान पटना से सटे कई अन्य जिलों से आए लगभग 5 लाख श्रद्धालुओं ने उत्तरायण गंगा के तट पर स्नान कर 'बाबा उमानाथ' का जलाभिषेक किया.

ये भी पढ़ें: माघ पूर्णिमाः प्रयागराज माघ मेला के संगम में पुण्य की डुबकी

ग्रामीण क्षेत्रों से आए लोग
बता दें कि बाढ़ का 'उमानाथ धाम मंदिर' संभवत: बिहार का एकलौता मंदिर है, जहां 'उमा' अर्थात पार्वती और 'नाथ' अर्थात शंकर के मंदिर का दरवाजा आमने-सामने एक ही कैंपस में है. जो इसकी ख्याति में चार चांद लगाने के लिए काफी है. 'मनरे की थाप' पर बेतहाशा उछलते-फांदते, झूमते-नाचते ग्रामीण क्षेत्रों से आए भगत-भगतीनियों ने मेले का नजारा ही बदल कर रख दिया.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
किसी पर देवी की 'वास' थी तो किसी पर देवता का. 'देवता देवी' और 'भूत-खेली' की खेल को परवान चढ़ते ही 'शायरन वाले बाबा' भी आ गए और अंधविश्वास की रही-सही कसर उन्होंने पूरी कर दी. वैसे तो इस मेले में अंधविश्वास के कई और नमूने देखे गए. जिसमें मन्नत पूरा होने पर गंगा में 'पाठा दान' (बकरी का बच्चा) की परंपरा का निर्वहन करने के लिए सैकड़ों की संख्या में बकरी का बच्चा लेकर भी लोग यहां पहुंचे हैं.

patna
श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

ये भी पढ़ें: मुंगेर: माघ पूर्णिमा पर हजारों लोग लगा रहे आस्था की डुबकी, गंगा घाटों पर भारी भीड़

जिसकी एक कान थोड़ी-सी काट कर गंगा में दान दे दिया जाता है. कुल मिलाकर प्रशासनिक चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ इस मेले को संपन्न कराया जा रहा है.

पटना: 'माघी पूर्णिमा मेला' और 'कार्तिक पूर्णिमा मेला' के लिए मशहूर बाढ़ का सुविख्यात 'उमानाथ धाम' पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. इस दौरान पटना से सटे कई अन्य जिलों से आए लगभग 5 लाख श्रद्धालुओं ने उत्तरायण गंगा के तट पर स्नान कर 'बाबा उमानाथ' का जलाभिषेक किया.

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ग्रामीण क्षेत्रों से आए लोग
बता दें कि बाढ़ का 'उमानाथ धाम मंदिर' संभवत: बिहार का एकलौता मंदिर है, जहां 'उमा' अर्थात पार्वती और 'नाथ' अर्थात शंकर के मंदिर का दरवाजा आमने-सामने एक ही कैंपस में है. जो इसकी ख्याति में चार चांद लगाने के लिए काफी है. 'मनरे की थाप' पर बेतहाशा उछलते-फांदते, झूमते-नाचते ग्रामीण क्षेत्रों से आए भगत-भगतीनियों ने मेले का नजारा ही बदल कर रख दिया.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
किसी पर देवी की 'वास' थी तो किसी पर देवता का. 'देवता देवी' और 'भूत-खेली' की खेल को परवान चढ़ते ही 'शायरन वाले बाबा' भी आ गए और अंधविश्वास की रही-सही कसर उन्होंने पूरी कर दी. वैसे तो इस मेले में अंधविश्वास के कई और नमूने देखे गए. जिसमें मन्नत पूरा होने पर गंगा में 'पाठा दान' (बकरी का बच्चा) की परंपरा का निर्वहन करने के लिए सैकड़ों की संख्या में बकरी का बच्चा लेकर भी लोग यहां पहुंचे हैं.

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श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

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जिसकी एक कान थोड़ी-सी काट कर गंगा में दान दे दिया जाता है. कुल मिलाकर प्रशासनिक चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ इस मेले को संपन्न कराया जा रहा है.

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