पटनाः दीपावली (Diwali) में मिट्टी के दीये का एक खास महत्व रहा है. क्योंकि यह प्रकृति द्वारा निर्मित गंगा की मिट्टी से बना होता है. जब भगवान श्री रामचंद्र 14 वर्षों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौट थे, तब उनके आने की खुशी में पूरे अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था. उस समय से लेकर सदियों तक मिट्टी के दीये (Earthen Lamps) से ही लोग दीपावली पर अपने घरों को जगमग करते थे. लेकिन बदलते युग में चाइनीज लाइट (Chinese Light) की रोशनी इस कदर लोगों पर हावी हो गई कि मिट्टी के दीयों की रोशनी फिकी पड़ने लगी. प्रकृति तरीके से बने ईको फ्रेंडली दीयों से ज्यादातर लोग दूर होते चले गये.
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कुछ साल पहले तक मिट्टी के दीयों की मांग इतनी थी कि कुम्हार इसे पूरा नहीं कर पाते थे. लेकिन आधुनिक युग में समय ने ऐसी करवट ली कि लोग मिट्टी के दीयों से दूर होते गए. अब दुकानदार भी स्वदेशी को भूलकर विदेशी सामान बेचकर अपना व्यापार मजबूत कर रहे हैं. कुम्हार भी अब इस काम को छोड़ दूसरा काम अपना रहे हैं. क्योंकि मिट्टी महंगी हो गई है. पूरा परिवार दिन-रात मेहनत करके भी मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं. पहले दिवाली पर कुम्हारों की अच्छी कमाई होती थी. जो अब नहीं होती.
पटनासिटी के रहने वाले कुम्हार शिव ने अबतक अपने पुश्तेनी कला को जीवंत रखा. लेकिन उनका बेटा मोहन कहता है कि मिट्टी के दीये का डिमांड घटता जा रहा है. लोग चाइनीज चीजों को अपना रहे हैं. ऐसे में मिट्टी का दीया बनाना घाटे का कारोबार है. हालांकि कई लोग आज भी मिट्टी के दीये को ही अच्छा मानते हैं. लेकिन मिट्टी का दीया अब सिर्फ पूजा के लिए यूज होता है. पूरे घर को सजाने के लिए मिट्टी का दीया कोई नहीं खरीदता. लोग चाइनीज लाइट से ही घरों को सजाते हैं.
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वैसे वार्ड 62 के समाजसेवी उमेश मेहता कहते हैं कि दीपावली दीपों का त्योहार है और परंपरा को कायम रखने के लिये हम सारा दिया खरीदकर अपने लोगों के बीच बांट देंगे और लोगों के बीच यह संदेश देंगे की स्वदेशी दीया को अपना कर पर्यावरण को शुद्ध रखें. मिट्टी के दीये से ही वार्ड नंबर 62 रोशन होंगे. सभी घरों में मिट्टी के दीये दिए जायेंगे क्योंकि देशी समान टिकाऊ होता है.