पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक पर सभी पार्टियों की नज़र है. इसी समीकरण के सहारे महागठबंधन सीएम की कुर्सी पाना चाहता है और नीतीश कुमार NDA के साथ मिलकर अपनी सत्ता बरकरार रखना चाहते हैं. हालांकि दलित क्षत्रपों के रहते वोट बैंक में सेंधमारी को मुश्किल बना दिया है.
सत्ता की सीढ़ी!
बिहार में जातिगत वोट बैंक सफलता की सीढ़ी मानी जाती है, यही कारण है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक के लिए महागठबंधन और NDA के बीच ज़ोर आजमाइश चल रही है. दलित क्षत्रपों की किलेबंदी के चलते वोट बैंक में घुसपैठ आसान नहीं दिख रही है. लोजपा ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है. लोक जनशक्ति पार्टी अपने दम पर 143 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी है. ऐसे में महागठबंधन और NDA के सामने बड़ी चुनौती है. चिराग पासवान ने स्पष्ट किया है कि वह NDA के खिलाफ सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा करेंगे. नीतीश कुमार ने मौके की नजाकत को समझते हुए चिराग पासवान को विकल्प के रूप में मांझी को एनडीए में शामिल किया.
आरजेडी भी नहीं पीछे
कई दलित नेता जदयू छोड़ राजद में शामिल हो चुके हैं. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी राजद का हिस्सा हैं. दलित नेता रमई राम भी राजद खेमे में हैं. तेजस्वी यादव ने जदयू को सबसे बड़ा झटका तब दिया जब उद्योग मंत्री श्याम रजक ने RJD का दामन थाम लिया. इस तरीके से राजद ने 3 दलित जातियों को यह संदेश देने की कोशिश की कि वह उनके हितैषी हैं.
महादलित कार्ड के सहारे नीतीश !
बिहार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने दलित वोट बैंक की बदौलत 15 साल तक बिहार पर शासन किया. लालू यादव सत्ता में रहते हुए खुद को दलितों का मसीहा बताते थे. 2005 के बाद दलित वोट बैंक में बिखराव आना शुरू हो गया बिहार में कई दलित नेता राजनीति के पटल पर आ गए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलित कार्ड खेलकर भी दलित आंदोलन को कमजोर किया. पासवान को छोड़कर तमाम दलितों को महादलित कैटेगरी में ला दिया. बाद में जब नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा हो गए तब पासवान जाति को भी महादलित में शामिल कर लिया.
चिराग एक चुनौती !
दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा लंबे समय से भाजपा के साथ रहा है. लेकिन इस बार के चुनाव में राजद की तरफ से भी सेंधमारी की जा रही है. ऐसे में अब देखना यह है कि चिराग पासवान के नए स्टैंड से सत्ता की कुर्सी किसके पाले में जाती है.