पटना: राजधानी पटना में सोमवार की देर रात जेडीयू नेता और दानापुर नगर परिषद के उपाध्यक्ष दीपक मेहता को अपराधियों ने उनके घर के सामने ही गोलियों की बौछार से हत्या (JDU Leader Murder In Patna) कर दी थी. हालांकि, इस मामले में पुलिस ने एसआईटी का गठन किया है और पूछताछ के लिए कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी की गई है. हालांकि, पटना पुलिस औपचारिक रूप से इस मामले में कुछ भी बोलने से परहेज कर रही है. वैसे ये कोई पहली घटना नहीं है.
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कारोबारी की गोली मारकर हत्या: बुधवार को राजधानी पटना के पटना सिटी इलाके में एक तेल कारोबारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई है. अपराधियों ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग की. जिससे मौके पर ही कारोबारी की मौत हो गई. वहीं, अपराधियों द्वारा गोलीबारी में उनके बेटे गोलू कुमार को भी कमर में गोली लगी है. दरअसल, कारोबारी प्रमोद जब अपनी दुकान पर जा रहे थे, तभी पहले से घात लगाए अपराधियों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. इसके बाद गोली लगने से उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई, फायरिंग में उनका बेटा भी जख्मी हो गया.
ताबड़तोड़ हत्याओं से दहला पटना: राजधानी पटना में आए दिन गंभीर अपराध अपराधी अंजाम दे रहे हैं. 31 मार्च को पटना सिटी में अपराधियों ने एक और व्यवसायी की गोली मारकर हत्या की थी. दरअसल, पटना सिटी के खाजेकलां थाना क्षेत्र के बंदरिया गली के रंग का कारोबार करने वाले एक युवक को अपराधियों ने अपना निशाना बनाया है. अपराधी ने उनकी सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी थी. जिसके बाद अब पूरी मंडी और बाजार में दहशत का माहौल है. राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ में 15 जनवरी को एक लिट्टी विक्रेता की हत्या अपराधियों द्वारा की गई थी. इस मामले में पेशेवर शूटरों को हत्या की सुपारी दी गई थी.
सुशासन का दावा हो रहा हवा-हवाई: बिहार में बढ़ते अपराध को देखकर लग रहा है कि सीएम नीतीश कुमार ने अपराधियों पर अंकुश लगाने का निर्देश दिया था, जो हवा-हवाई साबित हो रहा है. महज 4 दिनों के अंदर पटना में अपराधियों ने 8 लोगों को गोली मार दी है. इनमें से तीन लोगों की मौत घटनास्थल पर हो गई, जबकि 5 अस्पताल में भर्ती हैं, जो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं. इन सभी मामलों में हत्या का कारण रंगदारी बताया जा रहा है. राजधानी पटना में लगातार हो रहे आपराधिक वारदातों में पुलिस की गश्ती व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है.
डीजीपी ने बताया छिटपुट घटना: बता रहे आंकड़ों की बात करें तो पिछले एक हफ्ते में पटना जिले में 15 आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया गया है. ज्यादातर मामलों में पुलिस अब तक अपराधी ढूंढने में असफल दिख रही है. हालांकि, इन मामलों को बिहार पुलिस मुख्यालय और बिहार पुलिस के मुखिया डीजीपी संजीव कुमार सिंघल (DGP Sanjeev Kumar Singhal) इसे छिटपुट घटना बता रहे हैं. डीजीपी संजीव कुमार सिंघल ने बताया कि जो घटनाएं घटित हुई है, वह दुखद है. पुलिस की जो कमी है उसको सुधारने की कोशिश की जा रही है. जल्द ही अपराधी हमारी गिरफ्त में होंगे.
''साल 2020 की तुलना में कहीं ना कहीं साल 2021 में हत्या की वारदात में कमी आई है, इसलिए यह बिल्कुल भी सही नहीं होगा कि बिहार में अपराधियों का हौसला बुलंद हुआ है. साल 2020 में जहां कुल 2,57,506 मामले दर्ज किए गए थे. उनमें से हत्या के 3149 मामले दर्ज हुए थे, जबकि साल 2021 में कुल मामलों में जरूर बढ़ोतरी हुई है. साल 2021 में 2,82,067 मामले दर्ज हुए थे. कहीं ना कहीं हत्या के मामले में 2799 मामले दर्ज हुए थे, जो कि पिछले साल की तुलना में थोड़ी गिरावट आई है. हत्या, अपहरण, रंगदारी जैसे मामलों में काफी कमी आई है. वहीं, चोरी जैसी वारदात में थोड़ी वृद्धि भी हुई है, जिस पर हम लोग काम कर रहे हैं.''- संजीव कुमार सिंघल, डीजीपी, बिहार पुलिस
बिहार में जंगलराज रिटर्न्स?
28 मार्च: दानापुर के नगर उपाध्यक्ष दीपक मेहता को उनके घर के नजदीक गोलियों से भून डाला.
29 मार्च: पटना सिटी में दही विक्रेता 15 वर्षीय अंशु कुमार को अपराधियों ने गोली मार दी.
30 मार्च: पटना सिटी में महज ₹1000 की रंगदारी को लेकर अपराधियों ने प्रमोद वाघेला सहित उनके बेटे और मैनेजर को गोलियों से भून डाला, जिसमें प्रमोद वाघेला की मौके पर ही मौत हो गई.
31 मार्च: राजा बाजार में सड़क के किनारे मकई बेच रही एक महिला की तेज हथियार से वार किया गया, हालांकि महिला अभी इलाजरत है.
31 मार्च: पटना सिटी के बंदरिया गली में रंग व्यापारी 20 वर्षीय सन्नी कुमार को अपराधियों ने गोली से भून डाला.
31 मार्च: फुलवारी शरीफ में अपराधियों ने मार्बल व्यापारी को गोली मार दी.
27 मार्च: पटना से सटे दुल्हन बाजार में मुखिया के घर काम करने वाली महिला के बच्चे का अपहरण कर लिया गया.
1 अप्रैल: पटना के फुलवारी शरीफ थाना के टमटम पड़ाव के पास जमीन विवाद में बाइक सवार अपराधियों ने 2 लोगों को गोली मार दी, जिनका गंभीर हालत में एम्स में इलाज चल रहा है.
डर के साये में जी रहे लोग: आम लोगों की माने तो बिहार में पहले की तुलना में आपराधिक वारदातों में कहीं ना कहीं वृद्धि हुई है, जिस वजह से आम लोग डर के साये में जी रहे हैं, लोग अपने घरों से निकलने से कहीं ना कहीं परहेज कर रहे हैं. महिलाओं की मानें तो उन्हें अपने घर से निकलने से वक्त मोबाइल फोन ले जाने और गहने पहनने में भी डर लग रहा है. उनका कहना है कि अब शाम होने के बाद वह घर से निकलने सिर्फ कहीं ना कहीं परहेज करती हैं. वहीं, बुजुर्गों की माने तो राज्य सरकार और प्रशासन की कमी की वजह से उनका जीना दुश्वार हो गया है.
सरकार का सिर्फ शराबबंदी पर फोकस: लोगों का कहना है कि पहले वाली राज्य सरकार नहीं रह गई है, अब राज्य सरकार का सिर्फ शराबबंदी पर ही फोकस है. इसके बावजूद भी शराब बंदी लागू नहीं हो पा रही है. कहीं ना कहीं फिर से 2005 से पहले वाला जंगलराज याद आ रहा है. आम लोगों की माने तो राज्य सरकार को अब उत्तर प्रदेश के योगी मॉडल को अपनाना होगा, तभी क्राइम कंट्रोल हो पाएगा. आम लोग प्रशासन के साथ-साथ राज्य सरकार को दोषी मान रहे हैं. कहीं ना कहीं हम लोगों का यह भी कहना है कि बिहार की स्थिति बद से बदतर हो गई है. अब तो महज ₹1000 के लिए ही व्यवसायियों की हत्या की जा रही है.
बिहार में बढ़ते अपराध का कारण: बिहार में बढ़ते अपराध के मद्देनजर अर्थशास्त्री विद्यार्थी विकास ने ईटीवी भारत को बताया कि बिहार में बढ़ते अपराध का कारण तत्कालीन ही नहीं है, बल्कि कहीं ना कहीं नोटबंदी और कोरोना का असर है. जिस वजह से बेरोजगारी बढ़ी है, जिस वजह से बेरोजगारी के कारण लोग अपराधी अपराध की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. वहीं, उन्होंने कहा कि एक और बड़ा कारण है. पुलिस विभाग में पुलिस प्रॉसिक्यूशन सेल प्रभावी नहीं है. बिहार में कहीं ना कहीं पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की भारी कमी है. जहां 1400 प्रॉस्टिट्यूट होना चाहिए थे, वहां पर महज 400 ही हैं. पुलिस, पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और ज्यूडिशरी के बीच तालमेल सही नहीं होने के वजह से स्पीडी ट्रायल जैसे मामलों में काफी विलंब होता है. जिस वजह से अपराधी को समय मे सजा नहीं हो पाती है.
''सबसे जरूरी है कि पुलिस और ज्यूडिशरी पर भरोसा आम जनता को करना होगा, जो भरोसा अब उठता दिख रहा है. पुलिस सिलेक्टिव अप्रोच की वजह से मामलों में ढिलाई कर रही है. पुलिस को प्रोफेशनलिज्म अपनाना होगा. इसके साथ साथ पुलिस विभाग में पुलिसकर्मियों की कमी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ तकनीकी से रिलेटेड उन्हें जानकारी देनी होगी, क्योंकि मौजूदा वक्त में अपराधी पुलिस से ज्यादा एक्टिव है.''- विद्यार्थी विकास, अर्थशास्त्री
योगी मॉडल पर विश्लेषकों की राय: विद्यार्थी विकास ने कहा कि बिहार में शराबबंदी सिर्फ नाम का है. शराब के साथ-साथ लोग दूसरे ड्रग एडिक्ट हो चुके हैं, जिस वजह से नशे के लिए भी अपराध कर रहे हैं. हत्या में ज्यादातर मामले जमीन विवाद से जोड़कर सामने आते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि लैंड रिफॉर्म्स डिपार्टमेंट के द्वारा बहुत ही धीरे गति में कार्य किया जाता है. उनमें कहीं ना कहीं ट्रेनिंग की जरूरत है. इसके अलावा राजस्व कर्मचारी के साथ-साथ अमीन की भारी कमी है. आम जनता और पॉलिटिकल पार्टियों के द्वारा बिहार में योगी मॉडल लागू करने को लेकर उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल ही सही नहीं है. ना ही ये उत्तर प्रदेश के लिए सही है और ना ही देश के किसी अन्य राज्य के लिए सही है.
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