ETV Bharat / state

2020 में चमकी माले की किस्मत, बिहार में 3 से 12 पर हुई विधायकों की संख्या

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा माले ने चौंकाने वाला प्रदर्शन किया. महागठबंधन में वामदलों को कुल 29 सीटें मिली थीं. इनमें से 16 सीटों पर उनकी जीत हुई. जिससे पार्टी के हौंसले काफी बुलंद हैं. वहीं, दूसरी तरफ पार्टी नेताओं को इस बात का मलाल भी है कि कांग्रेस को जो सीटें मिली थी उसमें से कुछ सीटें माले को और मिलती तो निश्चित तौर पर संख्या अधिक होती और बिहार का समीकरण कुछ और होता.

author img

By

Published : Dec 30, 2020, 3:16 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 7:51 PM IST

वामदल
वामदल

पटनाः साल 2020 में वैश्वविक कोरोना महामारी के कारण भले ही पूरे विश्व के लोगों के लिए मायूसी और निराशा भरा हो. लेकिन इसी साल बिहार विधानसभा चुनाव में वामदलों को मिली सफलता उसके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. इस चुनाव में वामदलों ने बेहतर प्रदर्शन करके बिहार की राजनीति में मजबूती के साथ वापसी की है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट भाकपा माले का रहा. इस चुनाव में उनके विधायकों की संख्या 3 से 12 हो चुकी है. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी लिबरेशन (भाकपा माले) पहले एक संगठन था जो भूमिगत होकर राजनीतिक परिवर्तन के लिए हिंसक आंदोलन चाहता था. बाद में लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया. सन 1982 में इंडियन पीपुल्स फ्रंट के नाम से खुला राजनीतिक संगठन बनाया गया. केडी यादव आईपीएफ के नेता हुआ करते थे.

दिपांकर भट्टाचार्या, महसचिव, भाकपा माले
दिपांकर भट्टाचार्या, महसचिव, भाकपा माले

1994 में आईपीएफ को भंग कर दिया गया
इंडियन पीपुल्स फ्रंट ने पहली बार 1985 में विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई. 49 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत महज एक सीट पर मिली. 1989 के लोकसभा चुनाव में आईपीएफ के उम्मीदवार रामेश्वर प्रसाद ने आरा लोकसभा सीट से जीत हासिल कर बिहार की राजनीति में अपनी पहचान बनाई.

1990 बिहार विधानसभा चुनाव में आईपीएफ ने 82 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 7 सीट जीतने में कामयाब हुए और 14 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे. 1992 पार्टी के पहले जनरल सेक्रेटरी कॉमरेड चारू मजूमदार बने 1994 में आईपीएफ को भंग कर दिया गया और अंडरग्राउंड रहने वाली भाकपा माले लोकतांत्रिक धारा में शामिल हो गए और उसने खुद को राजनीतिक संगठन घोषित कर दिया. 1995 विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल भाकपा माले के 6 विधायकों ने जीत दर्ज की.

2010 में भाकपा माले का नहीं खुला था खाता
साल 2000 में फिर से 6 विधायकों ने जीत दर्ज की. 2005 फरवरी माह में हुए विधानसभा चुनाव में 7 विधायकों ने जीत दर्ज की. उसी साल नवंबर में 7 से संख्या घटकर 5 पर पहुंच गई. 2010 में भाकपा माले खाता खोलने में भी कामयाब नहीं हो पाया. लेकिन माले ने हार नहीं मानी और जनता के बीच लगातार जन आंदोलनों के माध्यम से बना रहा.

साल 2015 में माले के तीन विधायकों ने जीत दर्ज की और फिर से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. इस वर्ष यानी वर्ष 2020 में माले ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटों पर जीत दर्ज की. इस साल माले ने पूरे देश को दिखाया कि उनकी पार्टी किस तरीके से जनता के बीच है. जनता का भरोसा उन पर बढ़ता जा रहा है.

कुणाल, सचिव, भाकपा माले
कुणाल, सचिव, भाकपा माले

'हमारी पार्टी शुरू से ही जनता की पार्टी रही है. पार्टी के नेता जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुनते हैं और जनता के लिए आवाज उठाते हैं. मामला सड़क पर हो या सदन पर, माले के नेता जनता के साथ खड़े रहते हैं. बात छात्रों की हो या नौजवानों की, महिलाओं की हो या मजदूरों की, किसानों की हो या आम जनता की हमारी पार्टी मजबूती से लोगों की आवाज को उठाती है. यही कारण है कि जनता ने हम पर भरोसा दिखाया है'- कुणाल, सचिव, भाकपा माले

राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि जनता के भरोसे पर हमारे पार्टी के नेता पूरी तरह से खरे उतरेंगे. हमारी संख्या 3 से 12 हो गई है और अब हमारा काम भी बढ़ गया है. अब हम मजबूती से सदन में लोगों की आवाज को उठा सकेंगे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, इस वर्ष बेहतर प्रदर्शन के बावजूद सरकार नहीं बनने पर उन्होंने कहा कि सीट शेयरिंग में गड़बड़ी हुई. यही कारण है कि आज महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाई है. कांग्रेस को जो सीटें मिली थी, उसमें से कुछ सीटें माले को मिलती तो निश्चित तौर पर संख्या अधिक होती और बिहार का समीकरण कुछ और होता. कुछ जगह पर हमारी तैयारी भी कमजोर रही. यह भी एक कारण है जिस पर पार्टी मजबूती से कार्य कर रही है और आने वाले समय में और बेहतर प्रदर्शन करेगी.

वहीं, भाकपा माले के स्टेट कमेटी मेंबर परवेज ने बताया कि जनता ने हम पर पूरा भरोसा दिखाया है हमारी संख्या भी बढ़ी है और हमारी जवाबदेही भी. हम जनता के लिए कार्य करते थे और आगे भी करते रहेंगे.

परवेज, स्टेट कमेटी मेंबर,  भाकपा माले
परवेज, स्टेट कमेटी मेंबर, भाकपा माले

'पार्टी के प्रदर्शन से हम काफी खुश हैं. मलाल बस इस बात का है कि विधानसभा चुनाव में 19 सीटें ही मिली. अगर सीटें अधिक मिलती तो माले और अधिक सीटों पर जीत दर्ज करती. कई सीटों पर मामूली वोट से हार हुई है जहां सरकार के दबाव में जीते हुए उम्मीदवारों को हराया गया'- परवेज, स्टेट कमिटी मेंबर, भाकपा माले

विधानसभा चुनाव में माले का चौंकाने वाला प्रदर्शन
स्टेट कमेटी मेंबर परवेज का मानना है कि कुछ कमियां पार्टी की रणनीति बनाने में भी रह गई. जिस पर पार्टी कार्य कर रही है और जल्द ही उन सभी बिंदुओं पर पार्टी पूरी तरीके से मजबूत होकर जनता के लिए कार्य करेगी और जनता के लिए आंदोलन भी करती रहेगी.

भाकपा माले की बैठक में मौजूद कार्यकर्ता और नेता
भाकपा माले की बैठक में मौजूद कार्यकर्ता और नेता

बता दें कि बैकफुट पर जा चुकी भाकपा माले ने 2020 के विधानसभा चुनाव में चौंकाने वाला प्रदर्शन किया. इस बार महागठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए वामदलों को कुल 19 सीटें मिली थीं. इनमें से 16 सीटों पर उनकी जीत हुई. जिससे पार्टी के हौसले काफी बुलंद है.

पटनाः साल 2020 में वैश्वविक कोरोना महामारी के कारण भले ही पूरे विश्व के लोगों के लिए मायूसी और निराशा भरा हो. लेकिन इसी साल बिहार विधानसभा चुनाव में वामदलों को मिली सफलता उसके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. इस चुनाव में वामदलों ने बेहतर प्रदर्शन करके बिहार की राजनीति में मजबूती के साथ वापसी की है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट भाकपा माले का रहा. इस चुनाव में उनके विधायकों की संख्या 3 से 12 हो चुकी है. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी लिबरेशन (भाकपा माले) पहले एक संगठन था जो भूमिगत होकर राजनीतिक परिवर्तन के लिए हिंसक आंदोलन चाहता था. बाद में लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया. सन 1982 में इंडियन पीपुल्स फ्रंट के नाम से खुला राजनीतिक संगठन बनाया गया. केडी यादव आईपीएफ के नेता हुआ करते थे.

दिपांकर भट्टाचार्या, महसचिव, भाकपा माले
दिपांकर भट्टाचार्या, महसचिव, भाकपा माले

1994 में आईपीएफ को भंग कर दिया गया
इंडियन पीपुल्स फ्रंट ने पहली बार 1985 में विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई. 49 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत महज एक सीट पर मिली. 1989 के लोकसभा चुनाव में आईपीएफ के उम्मीदवार रामेश्वर प्रसाद ने आरा लोकसभा सीट से जीत हासिल कर बिहार की राजनीति में अपनी पहचान बनाई.

1990 बिहार विधानसभा चुनाव में आईपीएफ ने 82 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 7 सीट जीतने में कामयाब हुए और 14 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे. 1992 पार्टी के पहले जनरल सेक्रेटरी कॉमरेड चारू मजूमदार बने 1994 में आईपीएफ को भंग कर दिया गया और अंडरग्राउंड रहने वाली भाकपा माले लोकतांत्रिक धारा में शामिल हो गए और उसने खुद को राजनीतिक संगठन घोषित कर दिया. 1995 विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल भाकपा माले के 6 विधायकों ने जीत दर्ज की.

2010 में भाकपा माले का नहीं खुला था खाता
साल 2000 में फिर से 6 विधायकों ने जीत दर्ज की. 2005 फरवरी माह में हुए विधानसभा चुनाव में 7 विधायकों ने जीत दर्ज की. उसी साल नवंबर में 7 से संख्या घटकर 5 पर पहुंच गई. 2010 में भाकपा माले खाता खोलने में भी कामयाब नहीं हो पाया. लेकिन माले ने हार नहीं मानी और जनता के बीच लगातार जन आंदोलनों के माध्यम से बना रहा.

साल 2015 में माले के तीन विधायकों ने जीत दर्ज की और फिर से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. इस वर्ष यानी वर्ष 2020 में माले ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटों पर जीत दर्ज की. इस साल माले ने पूरे देश को दिखाया कि उनकी पार्टी किस तरीके से जनता के बीच है. जनता का भरोसा उन पर बढ़ता जा रहा है.

कुणाल, सचिव, भाकपा माले
कुणाल, सचिव, भाकपा माले

'हमारी पार्टी शुरू से ही जनता की पार्टी रही है. पार्टी के नेता जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुनते हैं और जनता के लिए आवाज उठाते हैं. मामला सड़क पर हो या सदन पर, माले के नेता जनता के साथ खड़े रहते हैं. बात छात्रों की हो या नौजवानों की, महिलाओं की हो या मजदूरों की, किसानों की हो या आम जनता की हमारी पार्टी मजबूती से लोगों की आवाज को उठाती है. यही कारण है कि जनता ने हम पर भरोसा दिखाया है'- कुणाल, सचिव, भाकपा माले

राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि जनता के भरोसे पर हमारे पार्टी के नेता पूरी तरह से खरे उतरेंगे. हमारी संख्या 3 से 12 हो गई है और अब हमारा काम भी बढ़ गया है. अब हम मजबूती से सदन में लोगों की आवाज को उठा सकेंगे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, इस वर्ष बेहतर प्रदर्शन के बावजूद सरकार नहीं बनने पर उन्होंने कहा कि सीट शेयरिंग में गड़बड़ी हुई. यही कारण है कि आज महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाई है. कांग्रेस को जो सीटें मिली थी, उसमें से कुछ सीटें माले को मिलती तो निश्चित तौर पर संख्या अधिक होती और बिहार का समीकरण कुछ और होता. कुछ जगह पर हमारी तैयारी भी कमजोर रही. यह भी एक कारण है जिस पर पार्टी मजबूती से कार्य कर रही है और आने वाले समय में और बेहतर प्रदर्शन करेगी.

वहीं, भाकपा माले के स्टेट कमेटी मेंबर परवेज ने बताया कि जनता ने हम पर पूरा भरोसा दिखाया है हमारी संख्या भी बढ़ी है और हमारी जवाबदेही भी. हम जनता के लिए कार्य करते थे और आगे भी करते रहेंगे.

परवेज, स्टेट कमेटी मेंबर,  भाकपा माले
परवेज, स्टेट कमेटी मेंबर, भाकपा माले

'पार्टी के प्रदर्शन से हम काफी खुश हैं. मलाल बस इस बात का है कि विधानसभा चुनाव में 19 सीटें ही मिली. अगर सीटें अधिक मिलती तो माले और अधिक सीटों पर जीत दर्ज करती. कई सीटों पर मामूली वोट से हार हुई है जहां सरकार के दबाव में जीते हुए उम्मीदवारों को हराया गया'- परवेज, स्टेट कमिटी मेंबर, भाकपा माले

विधानसभा चुनाव में माले का चौंकाने वाला प्रदर्शन
स्टेट कमेटी मेंबर परवेज का मानना है कि कुछ कमियां पार्टी की रणनीति बनाने में भी रह गई. जिस पर पार्टी कार्य कर रही है और जल्द ही उन सभी बिंदुओं पर पार्टी पूरी तरीके से मजबूत होकर जनता के लिए कार्य करेगी और जनता के लिए आंदोलन भी करती रहेगी.

भाकपा माले की बैठक में मौजूद कार्यकर्ता और नेता
भाकपा माले की बैठक में मौजूद कार्यकर्ता और नेता

बता दें कि बैकफुट पर जा चुकी भाकपा माले ने 2020 के विधानसभा चुनाव में चौंकाने वाला प्रदर्शन किया. इस बार महागठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए वामदलों को कुल 19 सीटें मिली थीं. इनमें से 16 सीटों पर उनकी जीत हुई. जिससे पार्टी के हौसले काफी बुलंद है.

Last Updated : Dec 31, 2020, 7:51 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.