पटना: नौकरी में रहते हुए लोगों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अंगड़ाई लेने लगती है और लोग पोस्ट रिटायरमेंट प्लान बनाने में जुट जाते हैं. उनमें से कई तो राजनीति में एंट्री ले लेते हैं, तो कई प्रशासनिक पद पाने में कामयाब हो जाते हैं. इस तरह के परिपाटी पर सवाल उठने लगे हैं.
रिटायरमेंट के तुरंत बाद पद पाने को लेकर उठ रहे हैं सवाल
प्रशासनिक और न्यायिक जगत से जुड़े लोग पोस्ट रिटायरमेंट रोड मैप पर नौकरी में रहते हुए काम करना शुरू कर देते हैं. ऐसा करने में जरूर उनकी निष्पक्षता प्रभावित होती है. बिहार में या फिर देश में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब लोग रिटायरमेंट के तुरंत बाद या तो प्रशासनिक पद पा लेते हैं या राजनीति में उन्हें महत्वपूर्ण पद हासिल हो जाता है. बुद्धिजीवी और चिंतक ऐसी स्थिति को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं.
न्यायिक पदाधिकारियों को राजनीति में आने से करना चाहिए परहेज
देश में या फिर बिहार में ऐसे कई उदाहरण है जब नौकरशाह या न्यायिक पदाधिकारी रिटायरमेंट के तुरंत बाद या तो राजनीति में आ जाते हैं या फिर प्रशासनिक पद हासिल कर लेते हैं. बिहार में भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं. जेडीयू सांसद आरसीपी सिंह नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे और पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा था.
इसके अलावा पूर्व मुख्य सचिव अशोक सिन्हा, अंजनी सिंह, व्यास जी, शिशिर सिन्हा, नीलमणि सहित ऐसे कई नाम है जो रिटायरमेंट के तुरंत बाद पद हासिल कर चुके हैं. ताजा विवाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को लेकर हुआ है. जब रिटायरमेंट के तुरंत बाद उन्हें राज्यसभा भेजने का फैसला लिया गया है. बुद्धिजीवी इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
दो साल का होना चाहिए कूलिंग पीरियड
प्रोफेसर डीएम दिवाकर का कहना है कि मुख्य न्यायाधीश के पद पर रह चुके लोगों को राजनीति में आने में जल्दी नहीं दिखानी चाहिए. अगर उनकी मंशा सही भी है तब भी वक्त को लेकर संदेह की स्थिति पैदा होती है. कम से कम दो साल का कूलिंग पीरियड जरूर होना चाहिए. समाजवादी नेता और आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का कहना है कि यह पहला मौका नहीं है जब ऐसा हुआ है.
इससे पहले भी कांग्रेस के शासनकाल में ऐसे उदाहरण आपको देखने को मिलेंगे जब न्यायिक पदाधिकारियों को रिटायरमेंट के तुरंत बाद महत्वपूर्ण पद दे दिए गए लेकिन ऐसी स्थिति लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. वहीं, भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि रंजन गोगोई ने कई ऐसे फैसले दिए हैं जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिली है और ऐसे लोग अगर राज्यसभा में जाएंगे तो इसके संदेश राष्ट्रव्यापी होंगे.