पटना : 1 मई यानी मजदूर दिवस को विश्व के कई देशों में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता है. इस दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है. ये दिन पूरी तरह श्रमिकों और कामगारों को समर्पित किया गया है. इस दिन भारत समेत कई देशों में मजदूरों की उपलब्धियों को और देश के लिए किए गए विकास में उनके योगदान को सलाम किया जाता है.
1 मई को मजदूरों के सम्मान, एकता और उनके हक के समर्थन में मनाया जाता है. इस दिन दुनिया के कई देशों के साथ भारत में भी छुट्टी होती है. इस मौके पर मजदूर संगठनों से जुड़े सभाओं का आयोजन करते हैं और अपने अधिकारों के लिए आवाज भी बुलंद करने का काम करते हैं. लेकिन लॉकडाउन के चलते इस बार इस तरह के कोई आयोजन नहीं हो सकेंगे.
दूसरे समय खाने के लिए सोचना पड़ता है - मजदूर
बता दें कि आज के समय में मजदूरों की स्थिति काफी जर्जर बनी हुई है. क्योंकि एक समय का खाना तो कीसी तरह खा लेते हैं. लेकिन दूसरे समय का खाने के लिए उनको सोचना पड़ता है. ईटीवी भारत के संवददाता ने जब पटना के रामगुलाम चौक और जेपी गोलंबर पर रह रहे मजदूरों की स्थिति का जायजा लिया, तो मजदूरों ने बताया कि हम लोग एक टाइम खाते हैं, तो दूसरे समय के लिए सोचना पड़ता है. यह वहीं मजदूर हैं, जो लोगों के लिए तो आशियाना बनाते हैं. लेकिन खुद आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं. जिसमें से कुछ रिक्शा चालक, कुछ कामगार मजदूर है और कुछ फल बेचने वाले मजदूर हैं.
लॉकडाउन में कुछ भी नहीं हो पा रहा है कमाई - रिक्शा चालक
मजदूर दिनेश ने बताया कि अभी लॉकडाउन में कुछ भी कमाई नहीं हो पा रहा है और जैसे तैसे गुजारा किया जा रहा है. मजदूर धनंजय ने बताया कि यही आसमान के नीचे रहते हैं और किसी तरह कुछ खा पीकर गुजर-बसर करते हैं. अभी कमाई धमाई भी बंद है. वहीं, रिक्शा चालक गोपाल ने बताया कि दिन भर में एक सवारी मिल जाती है, तो घर का खर्चा निकल जाता है. लेकिन कभी-कभी तो खाने के भी लाले पड़ जाते हैं.