कटिहारः बचपन जिंदगी का बहुत खूबसूरत सफर होता है और बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है. लेकिन गरीबी और लाचारी कुछ बच्चों से उनकी यह खुशी छीन लेती है. आज बाल मजदूरी भारत में एक अभिशाप बन गया है. जिन हाथों में किताब और खिलौने होने चाहिए वे मजदूरी करने को मजबूर हैं.
स्कूल जाने से वंचित करता है बाल श्रम
भारतीय संविधान के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों से कारखाने, दुकान, रेस्टोरेंट, होटल, कोयला खदान, पटाखे के कारखाने आदि जगहों पर काम करवाना बाल श्रम है. यह बच्चों को स्कूल जाने के अवसर से वंचित करता है. बच्चों के पढ़ाई करके भविष्य बनाने की उम्र में स्कूल नहीं जाने से उनका जीवन हमेशा के लिए अंघकार में चला जाता है.
नहीं दे पा रहे पारिवारिक आय में योगदान
कोरोना महामारी के चलते देश में लगाए गए लॉकडाउन के कारण काम धंधे ठप हो गए हैं. लाखों लोग बेरोजगार हो गए जिससे रोजगार के अभाव में लोग अपने घर वापस लौट आए. इसमें बाल श्रमिक भी शामिल हैं. जो बच्चे मजदूरी करके पहले अपनी पारिवारिक आय में योगदान दे रहे थे, वे महामारी के कारण काम पर नहीं जा पा रहे हैं. जिससे उनके सामने रोजी रोटी की समस्या आ गई है.
ठप है पढ़ाई
लॉकडाउन में सभी स्कूल भी बंद हैं. राज्य सरकार ने प्रवासी मजदूरों के बच्चों का सर्वेक्षण कर सरकारी विद्यालय में नामांकन देने की बात कही थी. जिसके लिए सर्वे भी किया गया. लेकिन अब तक इन बच्चों का नामांकन नहीं हुआ है. जिससे बाल श्रम कर रहे बच्चे स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं.
बाल श्रमिकों को रोजगार मिलने वाले क्षेत्र
बाल मजदूर घर की स्थिति के देखते हुए काम करने को मजबूर होते हैं. इसका फायदा उनको रोजगार देने वाले उठाते हैं. इस काम में उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिलती है. साथ ही उनसे कई अधिक घंटों तक काम करावाया जाता है. बाल श्रमिकों को फैक्ट्री, खेत, पंचर की दुकान, रेस्टोरेंट/होटल, कोयला खदान, कूड़े बीनना, बीड़ी उद्योग, कांच, खिलौने, कपड़ा बुनाई, चमड़ा, दीया सलाई उद्योग आदि में रोजगार मिलते हैं.
श्रमिकों का शोषण
बिहार में इन दिनों बाढ़ को लेकर तटबंधों पर मरमम्त का काम चल रहा है. इसमें बाल श्रमिकों का काफी शोषण किया जा रहा है. सीतामढ़ी जिले में संवेदक बाल श्रम निषेध अधिनियम 1986 का खुलेआम उल्लंघन करते देखे गए. बागमती अवर प्रमंडल के पदाधिकारी और संवेदक की मिलीभगत से छोटे मासूमों का शारीरिक शोषण किया जा रहा है ताकि कम पैसों में काम निपटा लिया जाए.
शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रावधान
छोटे बच्चों को कम राशि देकर तटबंधों पर मिट्टी भरने जैसे काम करवाए जा रहे हैं. साथ ही कई जगहों पर स्कूल बंद होने से बच्चे मछली पकड़ने और बकड़ी चराने जैसे काम भी कर रहे हैं. शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत 3 साल से 14 साल तक के सभी उम्र के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रावधान है लेकिन इस साल स्कूल बंद होने से बच्चों का भविष्य संकट में है.
नहीं हुआ नामांकन
सरकार ने प्रवासियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में सर्वे कराकर नामांकन कराने की बात कही है, लेकिन इसके तहत भी अभी कुछ ही बच्चों का नामांकन हो पाया है. शिक्षा विभाग के बेतिया जिला कार्यक्रम पदाधिकारी राजन कुमार ने बताया कि बिहार सरकार और केंद्र सरकार की कई योजनाओं के तहत बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. बिहार सरकार की ऐसी कई योजनाएं है, जिससे बच्चे घर में आसानी से पढ़ाई कर सकते हैं.
श्रमिकों को कराया गया मुक्त
लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासी बाल मजदूर अब रोजी रोटी की तलाश में वापस लौटने लगे हैं. कई बाल मजदूरों को हर साल इस दलदल से मुक्त कराया जाता है. हाल में गया से एक लग्जरी बस से 92 मजदूरों को गुजरात स्थित सूरत ले जाया जा रहा था. जिसमें 5 बाल मजदूर भी शामिल थे. रोहतास एएसपी संजय कुमार के नेतृत्व में बस को डेहरी ऑन सोन में रुकवाकर सभी बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया.
बाल मजदूरी के कानून
बाल श्रम कानून के तहत किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा और उस पर 50 हजार रुपये का अधिकतम जुर्माना लगने का प्रावधान है. लेकिन इस कठोर नियम के लागू होने के बाद भी दुकानदार और फैक्ट्ररी जैसी तमाम जगहों पर बालश्रम पूरी तरह से नहीं रूक पा रहा है.
श्रमिकों की संख्या
बता दें कि देश में बाल श्रम को लेकर स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा बाल मजदूरों की संख्या मौजूद है. 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में 5-14 आयु वर्ग के 10.7 फीसदी यानी 10.9 लाख बाल मजदूर हैं.
ग्रामीण इलाकों में फैली जड़ें
बिहार में मजदूरी करने वाले बच्चों में एक बड़ी तादाद ग्रामीण इलाकों से ताल्लुक रखती है. आंकड़ों की मानें तो लगभग 80 प्रतिशत बाल मजदूरी की जड़ें ग्रामीण इलाकों में ही फैली है. दूसरे राज्यों में जो बच्चे मजदूरी करते थे अब कोरोना काल में उनके खाने पीने पर भी आफत आ गई है. साथ ही वे स्कूलों में पढ़ाई भी नहीं कर पा रहे हैं.