पटना: देश को आम बजट देने के लिए सदन तैयार हो गया है. 1 फरवरी को देश को 2021 के लिए आम बजट की सौगात मिल जाएगी. कोविड-19 की महामारी झेल रहे पूरे विश्व की आर्थिक हालात बिगड़ गई है. आम बजट में क्षेत्रीय संतुलन और विकास योजनाओं को गति देने के साथ ही आय-व्यय के अनुपात में विकास योजनओं की नीतियां बनती हैं. लेकिन कोविड महामारी ने इस परिपाटी को 2021 के बजट में बिगाड़ रखा हैं.
बिहार के आर्थिक मामले के जानकार इस बात को तो मान भी रहे हैं कि इस बार के बजट में क्षेत्र के अनुसार बनी योजनओं पर सरकार बहुत ज्यादा बजट नहीं देगी. बिहार जैसे राज्य के लिए यह बात थोड़ी सी खटकने वाली जरूर है. क्योंकी बिहार को जिस विकास की जरूरत है वह बिना विशेष येाजना के नहीं हो पाएगा. मामला साफ है कि 2021 के केन्द्रीय आम बजट से बिहार में बहार जैसी हालात नहीं होगी.
केन्द्रीय हिस्सेदारी पर रहना होगा निर्भर
बिहार उपभोक्ता राज्य होने के नाते केन्द्र सरकार पर उसकी निर्भरता ज्यादा है. केन्द्रीय टैक्स में हिस्सेदारी से मिलने वाले राजस्व से राज्य की आर्थिक विकास की संरचना टिकी है. औद्योगिक विकास की मजबूत कड़ी नहीं होने के नाते केन्द्र की योजना ओर विकास के लिए बनी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए राज्य की हिस्सेदारी का पैसा भी बिहार सरकार के लिए भारी पड़ता है. ऐसे में कोविड की मार से हलकान हुए बिहार को 2021 में संभलने के लिए केन्द्रीय हिस्सेदारी पर ज्यादा निर्भर रहना होगा. हालांकि बिहार की सकल घरेलू उत्पाद सरकार की विकासात्मक नीति के कारण ठीक रही है. बिहार के आर्थिक विकास की दर पिछेले 5 सालों से दहाई के अंक में ही रही है. लेकिन उसके बाद भी बुनियादी जरूरत की मजबूती के लिए पैसे की कमी कई विकास योजनओं को रोकती है.
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योजना पर कार्य करना आसान नहीं...
देश के आम बजट से पहले महामहिम राष्ट्रपति ने सरकार के जिस योजना पत्र को पढ़ा है, उसमें सबसे ज्यादा जोर अगर कहीं है तो आत्मनिर्भर भारत की नीतियों पर. इसमें दो राय नहीं है कि सरकार आर्थिक संरचना की प्रगति के लिए मुकम्म्ल योजना पर कार्य कर रही है. लेकिन बिहार जैसे राज्य के लिए किसी भी योजना पर जाकर कार्य करना आसान नहीं है.
बाढ़ की चपेट में आधा से ज्यादा जिला
बिहार के लिए एक नहीं कई ऐसे कारण है जो तेजी से बदल रही अर्थव्यवस्था और ग्लोबलाइजेशन के दौर में पिछड़ जाने का कारण बनता है. बिहार की भौगोलिक स्थिति बिहार में औद्योगिक संरचना के मजबूत न होने का बड़ा कारण है. बिहार के आधे से ज्यादा जिले अब बाढ़ की चपेट में हैं. बिहार की खेती योग्य भूमि का 63 फीसदी भाग पूरी तरह डूब जाती है. बिहार में आई बाढ़ के बाद केन्द्र को भेजी गयी रिपोर्ट के आधार पर 27 फीसदी भाग ऐसा है जहां अभी भी पानी नहीं पहुंच पाया है. क्षेत्रीय विषमता के जिस दंश को बिहार झेल रहा है उसमें उसे सामन्य करने के लिए अलग से राशि की आवश्यकता है. जो इस बार के आम बजट में मिलेगा लेकिन इसकी उम्मीद कम है.
पानी से होने वाली परेशानी विकास न होने की बड़ी वजह
बाढ़ के पानी से बिहार के बचाव का उपाय हो या फिर सूखे बिहार को पानी देने का कार्य यह अभी भी अधूरा है. नदी जोड़ों योजना पैसे के अभाव में आज तक जमीन पर नहीं उतरी. बिहार में पानी की परेशानी और पानी से होने वाली परेशानी विकास न होने की बड़ी वजह है. यह सिर्फ एक बानगी भर है लेकिन इस तरह के एक नहीं कई ऐसे कारण है जो बिहार को आगे नहीं जाने देते.
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बिहार हर मानक में पीछे
कोरोना महामारी के बीच पलायन के जिस दंश को बिहार ने झेला वह पूरे देश के मानस पाटल पर आज भी बना हुआ है. बिहार विकास हर मानक पर पीछे ही खड़ा रहता है. इसके लिए वजह की गिनती करना आसन नहीं होगा. बिहार को विकास देने का सिर्फ एक माध्यम है कि उसकी आार्थक संरचना को मजबूत किया जाए.
बिहार की 79 फीसदी आबादी गांवों में रहती है ओर 80 फीसदी के रोजगार का जरिया खेती है. आम बजट के पहले दोनों सदनों को संबोधित करते हुए महामहिम ने जिस भारत की तस्वीर को खड़ा किया है. उसमें आत्मनिर्भर भारत सबसे ऊपर है.
बिहार को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभी भी बहुत कुछ की जरूरत है, जो बिहार अपने बूते पूरा नहीं कर सकता. लेकिन 2021 के आम बजट से क्षेत्रीय संतुलन के लिए कोई आधार होगा यह बजट से पहले रखे गए मजमून से साफ हो गया है.