पटनाः बिहार केसरी और आजाद भारत में प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की आज 135 वीं जयंती है. 'श्रीबाबू' के नाम से ख्याति प्राप्त श्रीकृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर, 1887 को बिहार के मुंगेर जिले में हुआ था. लोगा आज भी उन्हें समाजिक न्याय के पुरोधा और आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में याद करते हैं. श्रीकृष्ण सिंह उर्फ श्री बाबू बिहार को आधुनिक बिहार का शिल्पकार कहा जाता है. दरअसल, श्री बाबू के दौर में ही बिहार में औद्योगिक क्रांति आई थी. बिहार की राजनीति में उनके तमाम ऐसे किस्से हैं, जो आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं. श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री के रूप में बिहार में 15 सालों तक जितना काम किया बिहार का कोई दूसरा मुख्यमंत्री इतना काम अब तक नहीं कर पाया है. देखें एक रिपोर्ट
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आधुनिक बिहार की रखी थी नीवः आजादी के बाद एकीकृत बिहार में औद्योगिकरण में श्रीकृष्ण सिंह की बड़ी भूमिका रही है. बिहार में आज भी बड़े उद्योग धंधे उन्हीं के लगाए हुए हैं. श्रीकृष्ण सिंह 1946 से 1961 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. बिहार में उन्होंने जो उद्योग लगाए आज भी उसके लिए उन्हें याद किया जाता है. देश की पहली रिफाइनरी बरौनी आयल देश का पहला कारखाना सिंदरी और बरौनी रसायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना भारी उद्योग निगम एचईसी हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट सैल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड बड़हरा, देश का पहला रेल सड़क पुल राजेंद्र पुल, कोसी प्रोजेक्ट, पूसा एग्री कल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय जैसे महत्वपूर्ण उनके कार्य है. उस समय बिहार देश का सबसे अग्रणी राज्यों में शामिल था. आज बिहार देश के टॉप टेन राज्यों में भी शामिल नहीं है. उनके लगाए कई बड़े उद्योग बिहार के बंटवारा के बाद झारखंड में चले गए और जो बिहार में रहा उसकी स्थिति भी ठीक नहीं रही. बरौनी खाद कारखाना लंबे समय तक बंद रहा अब जाकर फिर से शुरुआत हुई है. बरौनी रिफायनरी जरूर काम कर रहा है लेकिन कुल मिलाकर देखें तो एकीकृत बिहार में श्रीकृष्ण सिंह ने जो काम किया आज भी लोग उसके लिए उन्हें याद करते हैं.
बिहार से खत्म की थी जमींदारी: श्रीकृष्ण सिंह विनोवा जी के आह्वान पर राज्य में 33 लाख एकड़ जमीन दान देकर शिक्षा और स्वास्थ्य की इमारत खड़ी की थी. जमीदारी प्रथा को खत्म करने वाले हैं बिहार में श्रीकृष्ण सिंह ही थे. जमींदारी प्रथा खत्म करने वाला बिहार देश में पहला राज्य बना. श्री कृष्ण सिंह का जन्म 30 अक्टूबर 1887 को ननिहाल नवादा जिले के खंडवा गांव में हुआ था उनका पैतृक गांव बरबीघा जिले में है. श्री कृष्ण सिंह का स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही. जब गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी तो श्री कृष्ण सिंह किसानों के जत्थे का नेतृत्व किया था. श्रीकृष्ण सिंह 1937 में केंद्रीय असेंबली और बिहार असेंबली के भी सदस्य चुने गए थे. 1941 में गांधीजी ने उन्हें बिहार का प्रथम सत्याग्रही नियुक्त किया था और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल में भी बंद रहे थे. श्रीकृष्ण सिंह के इन्हीं सब योगदान के कारण ही बिहार में उनका विशेष महत्व है उन्हें बिहार केसरी के नाम से भी जाना जाता है.
15 साल मुख्यमंत्री रहे, 24500 रुपए जमा कर पाएः 15 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी जब उनके निधन के बाद उनकी तिजोरी खोली गई तो केवल 24500 रुपये मिले थे. जिसमें एक लिफाफे में रखे 20000 प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे और दूसरे लिफाफे में 3000 मुनीम जी की बेटी की शादी के लिए और तीसरे लिफाफे में 1000 थे जो महेश बाबू की छोटी कन्या के लिए थे और चौथे लिफाफे में 500 श्री कृष्ण सिंह की सेवा करने वाले खास नौकर के लिए थे. श्री कृष्ण सिंह परिवारवाद के भी खिलाफ थे.
वोट मांगने नहीं जाते थे श्री बाबू: श्रीकृष्ण सिंह किसी भी विधानसभा चुनाव में प्रचार नहीं करते थे, 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में श्रीबाबू ने शेखपुरा जिले के बरबीघा से चुनाव लड़ा. इस दौरान प्रचार के लिए सहयोगी सक्रिय रहे. लेकिन सूबे के पहले सीएम प्रचार प्रसार में शामिल नहीं हुए. इस पर जब कार्यकर्ताओं ने पूछा कि आप वोट मांगने नहीं जाएंगे. तब श्री बाबू ने कहा कि अगर मैंने काम किया है या जनता मुझे अपना नेता मानती है, तो वो मुझे खुद से वोट देगी. श्री कृष्ण सिंह इमानदारी और सादगी के लिए भी जाने जाते हैं. साथ ही परिवारवाद के खिलाफ भी रहे. एक बार विधानसभा चुनाव के दौरान उनके बड़े बेटे शिव शंकर सिंह को चुनाव में प्रत्याशी बनाने की मांग हुई इस पर श्री कृष्ण सिंह ने कहा कि अगर शिव शंकर सिंह प्रत्याशी बने हैं तो वह राजनीति से दूर हो जाएंगे. बाद में जरूर उनके निधन के बाद छोटे बेटे बंदी शंकर सिंह विधायक बने और मंत्री भी रहे.
श्री कृष्ण सिंह की जयंती के नाम पर सियासतः बिहार में श्री कृष्ण सिंह की जयंती के नाम पर सियासत भी हमेशा हुई है. एक खास वर्ग के लोगों में आज भी श्रीकृष्ण सिंह के प्रति विशेष लगाव है और उसे ही एक बार फिर से भुनाने की कोशिश कांग्रेस और बीजेपी के नेता कर रहे हैं दोनों तरफ से एक दूसरे के खिलाफ आरोप भी लगाए जा रहे हैं. बीजेपी की ओर से विनोद शर्मा कार्यक्रम कर रहे हैं और कांग्रेस और अन्य दलों पर केवल वोट की राजनीति के लिए श्रीकृष्ण सिंह को याद करने की बात कह रहे हैं, वहीं अखिलेश सिंह का कहना है कि जब आरजेडी में थे तब भी कार्यक्रम करते थे और कांग्रेस में हैं तो लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं. बीजेपी उनके नाम पर केवल पॉलिटिक्स करती है. ऐसे तो जब चुनाव का समय होता है श्री कृष्ण सिंह के जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई मनाई जाती है. अभी मोकामा विधानसभा उपचुनाव हो रहा है और बीजेपी और आरजेडी के उम्मीदवार आमने सामने हैं. यहां दोनों उम्मीदवार भूमिहार समाज से ही हैं और भूमिहार वोटरों का यहां दबदबा रहा है. आरजेडी ऐसे तो कोई कार्यक्रम कर नहीं रही है लेकिन कांग्रेस की ओर से आयोजित कार्यक्रम में आरजेडी के नेता जरूर शामिल होंगे. तो वहीं बीजेपी कार्यक्रम में मैसेज देने की कोशिश करेगी.
जयंती के बहाने भूमिहार वोट भुनाने में लगीं पार्टियांः कोरोना के कारण श्री कृष्ण सिंह की जयंती समारोह पर भी असर पड़ा लेकिन अब 2 साल के बाद फिर से कार्यक्रम हो रहे हैं. कांग्रेस की ओर से अखिलेश सिंह हर साल उनकी जयंती पर कार्यक्रम करते रहे हैं, इस साल भी पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में कार्यक्रम हो रहा है, तो वहीं जदयू की ओर से मुजफ्फरपुर में जयंती का आयोजन किया गया है. जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह शामिल होंगे तो बीजेपी के तरफ से 22 अक्टूबर को बीआइए हॉल में सेमिनार किया जाएगा. जिसमें सुशील मोदी, संजय जायसवाल सहित पार्टी के बिहार के कई दिग्गज नेता शामिल होंगे. ऐसे चुनाव के समय 2018 में जब बीजेपी ने कार्यक्रम किया था तो कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए थे. कार्यक्रम सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर ने किया था. इस बार बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा कार्यक्रम कर रहे हैं. लेकिन सबकी नजर श्री कृष्ण सिंह की जयंती के बहाने स्वर्ण वोट और खासकर भूमिहार वोट को भुनाने की ही है.