पटना: 25 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए आदेश पारित करने का निर्देश दिया था. कोर्ट के आदेश के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में दागी उम्मीदवारों को टिकट पाने से रोकने के लिए चुनाव आयोग ने बिहार के सभी दलों को निर्देश जारी कर दिया है.
इस मामले पर बिहार निर्वाचन आयोग के उप मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बैजुनाथ सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप सभी पार्टियों को पत्र भेजा गया है. जो पार्टियां कोर्ट के फैसले का पालन नहीं करेगी. उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी. इसके शत-प्रतिशत पालन करवाने के लिए आयोग लगातार मॉनिटरिंग कर रही है.
आयोग की सख्ती से पार्टियों की बढ़ी मुश्किलें
बिहार में अपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को लेकर पहले भी खूब चर्चा होती रही है. नेताओं के शपथ पत्र का विश्लेषण कर बिहार इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) चुनाव के समय रिपोर्ट जारी करता रहा है. एडीआर की रिपोर्ट की मानें तो राज्य के 56% लोकसभा सांसदों पर अपराध के गंभीर मामले दर्ज हैं. वहीं 40% विधायकों पर भी अपराध के गंभीर मामले हैं. एडीआर ने रिपोर्ट में यह भी बताया कि 82% सांसदों और 57% विधायकों पर आपराधिक मामले हैं. इस तरह देखें तो 40 में से 32 सांसदों और 243 विधायकों में से 138 पर अपराधिक मामले दर्ज हैं.
सियासी दल एक दूसरे पर लगा रहे आरोप
इस मामले को लेकर जब हमारे ईटीवी भारत संवाददाता ने जदयू-बीजेपी और राजद नेताओं से बात की तो उन्होंने एक दूसरे पर दागी नेताओं को टिकट देने का आरोप लगाया. जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि जेडीयू शुरू से ही साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने की पैरवी करती आ रही है. बीजेपी के प्रवक्ता ने अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कदम काफी साकारात्मक है. बीजेपी आयोग के इस फैसले का स्वागत करती है.
वहीं, राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दागी नेताओं को सबसे ज्यादा टिकट देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव शुरू से ही साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों को आगे लाने के पक्षधर रहे हैं. आयोग के इस फैसले का असर सबसे ज्यादा एनडीए पर पड़ेगा.
सभी दलों में कई दागी नेता
एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 618 उम्मीदवारों का विश्लेषण किया गया. इन 616 उम्मीदवारों में से 188 पर अपराधिक मामले दर्ज पाए गए. वहीं, 147 उम्मीदवारों पर गंभीर प्रकृति के अपराधिक मामले दर्ज थे. जबकि 19 उम्मीदवारों पर महिला के साथ संगीन अपराध के मामले दर्ज थे. जिसमें 3 दुष्कर्म के मामले में आरोपी पाए गए थे.
गौरतलब है कि सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 2015 के विधानसभा चुनाव में विभिन्न दलों के 3470 उम्मीदवारों में से 30 फीसदी म्मीदवार यानी 1048 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज पाए गए. जबकि 802 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले थे और 61 उम्मीदवारों पर महिलाओं से अपराध के मामले दर्ज थे. जिनमें से 10 पर दुष्कर्म के मामले दर्ज मिले.
क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश?
बीते साल के 25 नवंबर को उच्चतम न्यायालय ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे अपनी बसाइट पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन के कारणों को अपलोड करें. इसमें उम्मीदवार पर दर्ज सभी आपराधिक केस, ट्रायल और उम्मीदवार के चयन का कारण भी बताना था. कोर्ट के आदेशानुसार राजनीतिक दलों को अपने आधिकारिक वेबसाइट पर यह भी बताना था कि खिर उन्होंने एक क्रिमिनल को उम्मीदवार क्यों बनाया है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप बिहार चुनाव आयोग सख्ती से राजनीतिक दलों पर नकेल कसने की पूरी तैयारी कर चुकी है. बिहार के विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. ऐसे में आयोग की सख्ती के बाद अब पार्टियों के लिए परेशानी बढ़नी तय है. अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में सियासी दल पराधिक छवि वाले उम्मीदवारों के चयन को लेकर क्या सतर्कता बरतती है.