पटना: कन्फैडेरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के बिहार अध्यक्ष अशोक कुमार वर्मा ने कहा कि ई कॉमर्स कंपनियां 30 अप्रैल को जारी गृह मंत्रालय के आदेश के प्रावधानों को गलत व्याख्या कर रही हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि देश के कुछ ई-कॉमर्स कंपनियां अपने निजी फायदे के लिए इस आदेश को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रही हैं. इस संबंध में रक्षा मंत्री और कोविड-19 पर गठित मंत्रियों के समूह के अध्यक्ष राजनाथ सिंह को एक पत्र भेजा है
कैट बिहार चेयरमैन कमल नोपानी और महासचिव डा. रमेश गांधी ने अपने पत्र में कहा है कि गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार ये बहुत स्पष्ट किया गया है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को केवल रेड जोन में आवश्यक सामान देने की अनुमति है. आदेश में कहीं भी ये नहीं कहा गया है कि ऑरेंज और ग्रीन जोन में गैर-जरूरी सामानों की डिलीवरी ई-कॉमर्स कंपनियां कर सकती हैं. जबकि ये ई-कॉमर्स कंपनियां अपने निजी लाभ के लिए इस आदेश का गलत व्याख्या कर रही हैं. प्रतिबंधित गतिविधियों को छोड़कर अन्य सभी गतिविधियों को ऑरेंज और ग्रीन जोन में अनुमति दी गई है.
'चीनी सामान का परित्याग करें'
कैट महानगर अध्यक्ष प्रिंस कुमार राजू और सचिव संजय बरनवाल ने कहा कि ये बहुत अनुचित होगा यदि ई कॉमर्स कंपनियों को सभी प्रकार के गैर-आवश्यक सामान की बिक्री करने की अनुमति दी जाती है, जबकि खुदरा विक्रेताओं को केवल आवश्यक वस्तुओं में ही व्यापार करने की अनुमति है. इससे बाजार में असंतुलन पैदा होगा और अनावश्यक टकराव को बढ़ावा मिलेगा. कैट सदस्य मुकेश नंदन ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपने लाभ के लिए कैट ने देश भर में "चीनी सामान का परित्याग " करने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू करने का फैसला किया है. कोविड -19 के कड़वे अनुभवों को देखते हुए भारत के व्यापारी अब काफी हद तक चीन पर अपनी निर्भरता कम कर देंगे.
'लघु उद्योगों को मिले बढ़ावा'
कैट के सदस्यों ने सरकार से कहा कि जो चीनी उत्पाद घरेलु उद्योग, व्यापार के लिए बहुत जरूरी नहीं है. उन पर सरकार कस्टम ड्यूटी में वृद्धि करे. कैट ने सरकार से आग्रह किया है कि भारत के लघु उद्योगों को ऐसे सामानों के बड़े स्तर उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करें. इसके लिए इन लघु उद्योगों को सरल तरीके से बैंकों से ऋण मिले तथा आवश्यक टेक्नॉलजी को लघु उद्योगों के लिए उपलब्ध कराया जाए, जिससे वो अपनी क्षमता का अधिक से अधिक उत्पादन करें. सीएआईटी ने सरकार से उन संभावित विदेशी निर्माताओं की पहचान करने का भी आग्रह किया है जो "मेक इन इंडिया" अवधारणा के तहत भारत में अपनी विनिर्माण इकाइयां स्थापित कर सकते हैं. इन कदमों से देश को चरणबद्ध तरीके से चीनी उत्पादों से निर्भरता से छुटकारा मिल सकेगा.