पटना: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के चौथे चरण में बिहार से सटे 8 जिलों में 10 अप्रैल को वोटिंग होगी. इसको लेकर बड़ी संख्या में बिहार भाजपा के कार्यकर्ता और नेता वहां पसीना बहा रहे हैं. चौथे चरण के चुनाव में बिहार भाजपा की भी अग्नि परीक्षा होगी.
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बिहार के कई नेता बंगाल में कर रहे कैंप
बिहार भाजपा के तमाम नेता पश्चिम बंगाल चुनाव में अपना पसीना बहा रहे हैं. पश्चिम बंगाल में 3 चरणों के चुनाव हो चुके हैं. लेकिन भाजपा के ज्यादातर नेता चौथे चरण के चुनाव प्रचार में जुटे हैं. बिहार भाजपा के कई नेता वहां कैंप कर रहे हैं. उत्तर बंगाल में बिहार के सह संगठन मंत्री रत्नाकर जीतू को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं, पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल को कोआर्डिनेशन का जिम्मा दिया गया है.
बिहार के बीजेपी नेताओं पर 57 सीट की जिम्मेदारी
बता दें कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तर बंगाल की 57 सीटों की जिम्मेदारी बिहार के नेताओं को सौंपी है. इन सभी सीटों पर बिहारी मूल के लोगों की आबादी वहां अच्छी खासी है और ये सभी सीटें बिहार की सीमा से लगे हुए हैं.
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'चौथे चरण में ही भाजपा को अजेय बढ़त'
भाजपा प्रवक्ता अखिलेश सिंह ने कहा है कि बिहारी नेताओं को देश के सभी चुनाव में लगाया जाता है बिहारी नेताओं के अंदर प्रतिभा है और पश्चिम बंगाल चुनाव में भी बड़ी संख्या में उनकी प्रतिभा को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने नेताओं को चुनाव प्रचार में लगाया है जो कि बिहार से सटे हुए 8 जिले हैं और वहां की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति बिहार से मिलती जुलती है ऐसे में वहां बिहार के नेताओं की भूमिका अहम होने वाली है.
नेताओं को दी गई अलग-अलग जिम्मेदारी
भाजपा नेता और पार्टी के मीडिया प्रभारी राकेश सिंह का कहना है कि कार्यकर्ताओं के अलावा बड़ी संख्या में बिहार भाजपा के नेता पश्चिम बंगाल में कैंप कर रहे हैं. प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल, मंगल पांडेय, सुशील मोदी, प्रेम रंजन पटेल और संजय टाइगर सरीखे नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है. वो अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं. चौथे चरण में ही भाजपा वहां बढ़त हासिल करेगी और हम सरकार बनाने की स्थिति में होंगे.
'नेताओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम नहीं'
वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का कहना है कि भले ही बंगाल के 8 जिले बिहार से सटे हुए हो, लेकिन चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम ममता बनर्जी के नाम पर लड़ा जा रहा है. इन सीटों पर जीत या हार में दूसरे और तीसरे पंक्ति के नेताओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका बहुत अहम नहीं होने वाली है.