पटना: बिहार में एक बार फिर एक बड़े घोटाले को लेकर कोहराम मचा है. कोरोना जांच के आंकड़ों में गड़बड़ी को लेकर सरकार घेरे में है. इस मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने पहले सवाल खड़े किए थे, लेकिन जबसे फर्जी आंकड़े सामने आए हैं उनकी भूमिका महज ट्विटर और फेसबुक पर सिमट कर रह गई है. ऐसा लालू यादव की अनुपस्थिति के चलते दिख रहा है. लालू की उपस्थिति में विपक्ष की भूमिका कुछ और होती.
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विधानसभा में सबसे बड़ा दल है राजद
बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 75 विधायकों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में सामने आया. एनडीए गठबंधन की वजह से बिहार में महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाई, लेकिन लोगों को यह उम्मीद थी कि एक मजबूत विपक्ष दिखेगा.
मुद्दों को नहीं भुना नहीं पा रहा विपक्ष
राजद के युवा नेता तेजस्वी यादव को जिस तरह का जनसमर्थन मिला उससे भी लोगों की उम्मीदें बढ़ गई. कोरोना जांच को लेकर बिहार में फर्जी आंकड़े सामने आए हैं. उसके बाद विपक्ष की जो भूमिका और एक्शन दिखनी चाहिए थी वह कहीं नजर नहीं आ रही. इसके पीछे एक बड़ी वजह लालू की अनुपस्थिति मानी जा रही है.
एक्सपर्ट मानते हैं कि बिहार की सियासत में जो कद लालू यादव का है वह किसी अन्य नेता का नहीं. संजय कुमार कहते हैं कि जनता के मुद्दों को लेकर सरकार पर हमला बोलने कि जो हैसियत लालू यादव में है वह विपक्ष के किसी और नेता में नजर नहीं आती.
'चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए तेजस्वी'
दूसरी ओर एनडीए के नेता तेजस्वी यादव को ट्विटर ब्वॉय की संज्ञा देते हैं. बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा "लालू ने संघर्ष किया और लोगों के साथ हर दुख-सुख में खड़े हुए. इसलिए लालू लालू हैं."
"तेजस्वी तो चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए. उन्हें बैठे-बिठाए न सिर्फ पार्टी बल्कि गठबंधन में भी एक बड़ा ओहदा मिल गया. इसलिए उनसे और क्या उम्मीद कर सकते हैं. वह ट्वीट कर विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी का निर्वहन कर लेते हैं."- प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी, प्रवक्ता
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राजद को है लालू की जमानत का इंतजार
लालू का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि वह एक तरफ चारा घोटाला मामले में सजा काट रहे हैं, दूसरी तरफ उनकी जमानत का समर्थक बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. सक्रिय राजनीति से अलग रहते हुए भी बिहार की सियासत में लालू का बहुत महत्व है. आए दिन बिहार के तमाम बड़े नेता लालू का नाम लेकर हमला बोलते रहते हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार भी मानते हैं कि लालू चाहे विपक्ष में रहें या सत्ता में बिना उनका नाम लिए बिहार की राजनीति का चक्का आगे नहीं घूमता.
लालू होते तो दिखता विपक्ष का जलवा
लालू को करीब से जानने वाले महसूस करते हैं कि अगर वह बिहार की सियासत में सक्रिय होते तो विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सदन से लेकर सड़क तक राजद का जलवा दिखता. तेजस्वी जहां ट्विटर और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर अपनी बातें कहते हैं. वहीं, लालू सड़क पर खड़े होकर एक आवाज से भारी भीड़ जुटा लेते थे. बिहार की सड़कों पर कभी रिक्शा पर बैठकर तो कभी खटिया (चारपाई) लगाकर लालू ने लोगों को अपना बना लिया था.
"दोनों नेताओं को अलग-अलग देखना उचित नहीं. तेजस्वी तकनीकी रूप से दक्ष हैं और वर्तमान परिस्थितियों के मुताबिक विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं. लालू यादव सामाजिक बदलाव के प्रणेता रहे हैं."- शक्ति यादव, प्रवक्ता, राजद
नेताओं की बात अपनी जगह है लेकिन बिहार की सियासत में किंग मेकर के नाम से मशहूर लालू की उपस्थिति हमेशा सत्ता पक्ष के लिए काफी मुश्किल रही है. वह एक आवाज पर भारी भीड़ जुटा लेने में माहिर हैं. यही वजह है कि लालू की अनुपस्थिति ने बिहार सरकार को एक कमजोर विपक्ष के कारण कम्फर्ट जोन में ला दिया है.