पटना: बिहार के मिथिलांचल की पहचान के बारे में कहा जाता है कि 'पग-पग पोखरि माछ मखान', यानी कि इस क्षेत्र की पहचान पोखर, मछली और मखाना से जुड़ी हुई है. मखाना के लिए प्रसिद्ध मिथिलांचल (Mithilanchal Famous For Makhana) के हजारों लोगों को इस उद्योग से कोई बड़ा फायदा नहीं हो रहा है. इसे जीआई टैग (GI Tag) नहीं मिलने के कारण इस उद्योग से जुड़े लोगों में असंतोष व्याप्त है.
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वैज्ञानिक मखाना को लेकर नई शोध कर कई प्रजाति विकसीत तो कर रहे हैं लेकिन इससे उद्योग को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है. बता दें कि बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 10 जिलों में मखाना की खेती होती है. यह मखाना देश के कई राज्यों को भेजा जाता है. लेकिन जीआई टैग नहीं मिलने के कारण उद्योग से जुड़े लोगों को मुनाफा नहीं हो पा रहा है.
विधान परिषद में ध्यानाकर्षण के दौरान विधान परिषद सदस्य अर्जुन साहनी (MLC Arjun Sahni) ने सरकार से सवाल किया था कि मिथिलांचल की मुख्य फसल मखाना के जीआई टैग को लेकर सरकार क्या कर रही है? सम्पूर्ण मिथिलांचल मखाना उत्पादन के लिए प्रसिद्ध मिथिलांचल में हजारों की संख्या में तालाब, पोखर उपलब्ध हैं. साथ ही मखाना का उत्पादन भी होता है.
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मखाना उत्पादन कार्य में मछुआरा जाति के लोग भी बड़ी संख्या में जुड़े हुए हैं. मखाना प्रसंस्करण उद्योग तो लगाये गए हैं लेकिन सरकारी सहयोग के अभाव में यह उद्योग विकसित नहीं हो रहा है. मखाना को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) नहीं मिलने के कारण उद्योग से जुड़े लोगों में असंतोष व्याप्त है.
इस सवाल के जवाब में कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि सरकार मखाना के जीआई टैग की प्रक्रिया को पूरा कर रही है. जीआई टैग मिलने के बाद मिथिलांचल में इस प्रमुख व्यंजन को नई पहचान मिल जाएगी. साथ ही इस उद्योग से जुड़े हुए लोगों को भी फायदा हो सकेगा.