पटना: बिहार विधानसभा की 2 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव (Bihar By-election) में सभी राजनीतिक दल ताल ठोक कर सियासी मैदान में आ गए हैं. नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो गई, अब नाम वापसी की प्रक्रिया बची हुई है. फिर भी सियासत में जोड़-तोड़ में विभेद और गुणा-गणित का हर रंग उपचुनाव में देखने को साफ-साफ मिल रहा है.
ये भी पढ़ें- कुशेश्वरस्थान उपचुनाव: दांव पर JDU की प्रतिष्ठा, RJD-कांग्रेस में भी ठनी
विधानसभा के लिए हो रहे 2 सीटों के उपचुनाव में अगर एनडीए की बात किया जाए तो जदयू को दोनों सीटें मिली हैं. भाजपा, जीतन राम मांझी की हम और मुकेश सहनी वाली वीआईपी, जदयू के लिए प्रचार करेंगे. ये दोनों ही सीटें जदयू की ही रही हैं. लेकिन सियासत में जिस तरीके की लड़ाई इन 2 सीटों पर उपचुनाव को लेकर खड़ी हो गई हैं उससे एक बात तो साफ है कि बिहार में जो राजनीतिक दल हैं, भले ही गठबंधन में हैं, साथ रहे हों लेकिन महागठबंधन का जो स्वरूप अब उठ कर सामने आया है, उसमें हर राजनीतिक दल विधानसभा उपचुनाव के लिए सबसे बड़ा लड़ैया बन गया है. सबसे अहम बात यह है कि लालू यादव जिनका दावा नीतीश को हटाने का है उनके दोनों बेटों (तेजप्रताप-तेजस्वी) की सियासत इस चुनाव में लड़ाई में दिख रही है. इसका ऐलान भी तारापुर सीट से हो गया है. तेजप्रताप ने अपना निर्दलीय प्रत्याशी तारापुर से उतार दिया है.
बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव बिहार की सियासत के कई नए मापदंड बना जाएगा. दरअसल, विरोध की जो सियासत नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के बीच दिख रहा था, लालू और तेजस्वी का नेतृत्व जिस तरीके से नीतीश सरकार का विरोध कर रहा था, विभेद की एक राजनीति कांग्रेस और तेजस्वी के बीच भी चल रही थी. हालांकि, महागठबंधन में साथ साथ होने का दावा दोनों राजनीतिक दलों के साथ किया जाता था. लेकिन जो हकीकत थी वह 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के बाद सामने आ गई.
लड़ाई, राजनीति के सिद्धांत की नहीं है बल्कि राजनीतिक पकड़ की है. हर राजनीतिक दल अपनी जमीन और जनाधार को बढ़ाने के लिए सियासत का सबसे बड़ा सूरमा बनने के लिए वह हर हथकंडा अपना रहा है जो उसे सियासी समर में पार लगा दे. बात कांग्रेस की करें तो कन्हैया कुमार को तोड़कर के वाम दल से अपनी पार्टी में मिला लिए. जबकि बात सियासी सिद्धांत और समझौते की करें तो वाम दल अभी भी कांग्रेस के साथ महागठबंधन का हिस्सा था. ऐसे में महागठबंधन में जो दल शामिल हैं उनके बीच ही जब तोड़फोड़ शुरू हो गई. तो इस महागठबंधन का टूटना भी तय था. यही वजह है कि विधानसभा की दोनों सीटों के लिए जहां उपचुनाव हो रहे हैं वहां पर सिर्फ वाम दल को छोड़ दें तो बचे राजनीतिक दल जो महागठबंधन में साथ थे एक दूसरे के सामने चुनावी दंगल में ताल ठोंक रहे हैं.
अगर एक राजनीति वाली विचारधारा और सियासी लड़ाई की बात करें तो उसमें यह कहा जाता था कि जनता की बात करने के लिए सड़क पर उतरना होगा. जनता की बात सरकार के कानों तक पहुंचाने के लिए विरोधी सुर उठाना होगा. तभी सरकार की नींद खुलेगी और इसके लिए एक मजबूत एकजुटता जरूरी है. इसी विचारधारा को लेकर कांग्रेस, वामदल और राष्ट्रीय जनता दल एक साथ थे. लेकिन, सरकार के विरोध की बात उठाने के बजाय अपनों के बीच जिस तरीके से विभेद और विरोध की बात उठ गई उससे पूरा महागठबंधन ही बिखर गया. अब वही दल एक-दूसरे पर ये आरोप लगा रहे हैं कि वे उस सीट के असली हकदार हैं और वही उस सीट के सबसे मजबूत लड़ैया भी हैं.
कुशेश्वरस्थान को लेकर कांग्रेस ने पूरा खम ठोक कर कह दिया है कि 5 सालों से कांग्रेस वहां पर दूसरे राजनीतिक दलों को टक्कर देती आ रही है इसलिए यह सीट उसकी है. और वह इस सीट पर लड़ेगी ही. लड़ाई का जो दावा कांग्रेस के द्वारा किया गया राजद उस बात को मानने को तैयार नहीं है. यही वजह है कि राजद ने अपने उम्मीदवारों को उतार कर साफ कर दिया कि उसके लड़ने वाले भी कमजोर नहीं हैं.
बात महज राजनीतिक दलों की नहीं बची, अब तो राजनीतिक घराने भी चुनावी मैदान में उतर गए हैं. तेजस्वी यादव वाली राजद तेज प्रताप वाली सियासत यह दोनों भी इस उपचुनाव में साफ-साफ सामने आ गए हैं. तारापुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में तेज प्रताप ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपने खास को चुनावी मैदान में उतार दिया है और उसके लिए चुनाव प्रचार करने भी तारापुर जाएंगे. ये ऐलान भी तेज प्रताप ने कर दिया है. वहीं कांग्रेस यह उम्मीद लगा कर के बैठी है कि तेज प्रताप जिस तरीके से उनकी पार्टी में आए थे और जिस तरीके से वह राजद के विरोध की बातें कह रहे हैं, इस चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस का उनका साथ मिलेगा.
अब 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों के राजनीतिक मुद्दों की लड़ाई लड़ने के लिए वे सभी सिपाही मैदान में आ गए हैं जिन्हें जनता से जीत का आशीर्वाद मिलना है. अब देखने वाली बात यह होगी कि मुद्दों पर जिस तरीके की राजनीति हो रही है, और मुद्दा विहीन भटकती राजनीति का जो स्वरूप 2 सीटों पर हुए उपचुनाव में दोस्ती और दोस्ती के बाद वाली राजनीति पर जा टिकी है, उसका परिणाम क्या होता है? कुल मिलाकर के 2 सीटों पर हो रहा उपचुनाव बिहार की कई सियासी समीकरण को बना गया है, कई समीकरण बिगाड़ गया है. एक बात तो तय है कि कई चेहरों को बेनकाब भी कर गया है.