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JDU में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नेताओं को सहना पड़ा अपमान, कई को छोड़नी पड़ी पार्टी

Lalan Singh Resign: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ललन सिंह ने जेडीयू अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, जिस वजह से वो चर्चा में चल रहे हैं. इससे पहले भी ऐसे कई नेता थे जो इस्तीफा देने की वजह से चर्चा में आए और यह काफिला आगे बढ़ता गया. आगे पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 30, 2023, 10:15 AM IST

पटना: जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के कारण ललन सिंह चर्चा में है लेकिन ललन सिंह पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं है, जिन्हें समय से पहले इस्तीफा देना पड़ा हो. इससे पहले पार्टी के संस्थापक जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव और आरसीपी सिंह को भी इस्तीफा देना पड़ा था. नीतीश कुमार ने अब तक जेडीयू में जैसा चाहा वैसा फैसला लिया है, जिसने विरोध किया उसे पार्टी से बाहर जाना पड़ा, इसमें शरद यादव और आरसीपी सिंह सबसे बड़े उदाहरण हैं.

जॉर्ज फर्नांडिस ने भी दिया था इस्तीफा: बिहार की सत्ताधारी दल जेडीयू में सबसे पहले 30 अक्टूबर 2003 से अप्रैल 2006 तक जॉर्ज फर्नांडिस राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे थे लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने उनके साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया. जॉर्ज फर्नांडिस के स्थान पर अप्रैल 2006 शरद यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. शरद यादव 2016 तक राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे लेकिन नीतीश कुमार से अनबन होने के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ी, बाद में शरद यादव को पार्टी से भी बाहर निकलना पड़ा.


2020 में आरसीपी सिंह को बनाया राष्ट्रीय अध्यक्ष: शरद यादव से राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी लेकर खुद नीतीश कुमार ने अपने पास रख ली और अप्रैल 2016 से 27 दिसंबर, 2020 तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे. 27 दिसंबर 2020 को नीतीश कुमार ने यह कहकर आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया कि मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद एक साथ संभालने में परेशानी हो रही है. संगठन का कामकाज ठीक से नहीं देख पा रहे हैं. आरसीपी सिंह उस समय पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव संगठन का काम देख रहे थे. 31 जुलाई 2021 तक आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे.

आरसीपी सिंह ने छोड़ी पार्टी: केंद्र में मंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ललन सिंह को दे दिया. केंद्र में मंत्री नहीं बनने से ललन सिंह नाराज थे और एक तरह से मरहम लगाने की कोशिश नीतीश कुमार के तरफ से की गई. हालांकि आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी उस समय छोड़ना नहीं चाहते थे और इसी के बाद नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच विवाद बढ़ा, स्थिति यहां तक पहुंच गई की आरसीपी सिंह को दोबारा राज्यसभा भी नहीं भेजा गया और इसके कारण उन्हें केंद्र में मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा. विवाद बढ़ने के बाद पार्टी से भी इस्तीफा देना पड़ा और मजबूरन बीजेपी में उन्हें शामिल होना पड़ा.

बीजेपी का एजेंट होने का लगा आरोप: ललन सिंह 31 जुलाई, 2021 से जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 2022 दिसंबर में दोबारा चुनाव के बाद फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और अब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. आरसीपी सिंह पर ललन सिंह ने उस समय बीजेपी का एजेंट होने का आरोप लगाया था. यह आरोप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तरफ से भी लगाया गया. अब यही आरोप ललन सिंह पर भी लग रहा है. उपेंद्र कुशवाहा सहित कई नेताओं ने लालू प्रसाद के एजेंट के तौर पर जदयू में काम करने का आरोप ललन सिंह पर लगाया था.

आरजेडी से ललन सिंह की नजदीकियां: ऐसे में ललन सिंह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं और नीतीश कुमार के साथ उनका पहले भी विवाद हो चुका है. विवाद के कारण ललन सिंह को पार्टी छोड़ना पड़ा था, कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़े हालांकि जीत हासिल नहीं हुई. इस बार जिस लालू यादव के हमेशा विरोध में ललन सिंह रहते थे उन्हीं से नजदीकियां बढ़ाने के कारण कुर्सी गमानी पड़ी है. ऐसे केवल यही एक कारण नहीं है, ललन सिंह को हटाने के पीछे नीतीश कुमार की दूरगामी राजनीतिक सोच भी है, हालांकि देखना है उसमें नीतीश कुमार कितना सफल हो पाते हैं.

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पटना: जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के कारण ललन सिंह चर्चा में है लेकिन ललन सिंह पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं है, जिन्हें समय से पहले इस्तीफा देना पड़ा हो. इससे पहले पार्टी के संस्थापक जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव और आरसीपी सिंह को भी इस्तीफा देना पड़ा था. नीतीश कुमार ने अब तक जेडीयू में जैसा चाहा वैसा फैसला लिया है, जिसने विरोध किया उसे पार्टी से बाहर जाना पड़ा, इसमें शरद यादव और आरसीपी सिंह सबसे बड़े उदाहरण हैं.

जॉर्ज फर्नांडिस ने भी दिया था इस्तीफा: बिहार की सत्ताधारी दल जेडीयू में सबसे पहले 30 अक्टूबर 2003 से अप्रैल 2006 तक जॉर्ज फर्नांडिस राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे थे लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने उनके साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया. जॉर्ज फर्नांडिस के स्थान पर अप्रैल 2006 शरद यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. शरद यादव 2016 तक राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे लेकिन नीतीश कुमार से अनबन होने के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ी, बाद में शरद यादव को पार्टी से भी बाहर निकलना पड़ा.


2020 में आरसीपी सिंह को बनाया राष्ट्रीय अध्यक्ष: शरद यादव से राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी लेकर खुद नीतीश कुमार ने अपने पास रख ली और अप्रैल 2016 से 27 दिसंबर, 2020 तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे. 27 दिसंबर 2020 को नीतीश कुमार ने यह कहकर आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया कि मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद एक साथ संभालने में परेशानी हो रही है. संगठन का कामकाज ठीक से नहीं देख पा रहे हैं. आरसीपी सिंह उस समय पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव संगठन का काम देख रहे थे. 31 जुलाई 2021 तक आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे.

आरसीपी सिंह ने छोड़ी पार्टी: केंद्र में मंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ललन सिंह को दे दिया. केंद्र में मंत्री नहीं बनने से ललन सिंह नाराज थे और एक तरह से मरहम लगाने की कोशिश नीतीश कुमार के तरफ से की गई. हालांकि आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी उस समय छोड़ना नहीं चाहते थे और इसी के बाद नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच विवाद बढ़ा, स्थिति यहां तक पहुंच गई की आरसीपी सिंह को दोबारा राज्यसभा भी नहीं भेजा गया और इसके कारण उन्हें केंद्र में मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा. विवाद बढ़ने के बाद पार्टी से भी इस्तीफा देना पड़ा और मजबूरन बीजेपी में उन्हें शामिल होना पड़ा.

बीजेपी का एजेंट होने का लगा आरोप: ललन सिंह 31 जुलाई, 2021 से जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 2022 दिसंबर में दोबारा चुनाव के बाद फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और अब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. आरसीपी सिंह पर ललन सिंह ने उस समय बीजेपी का एजेंट होने का आरोप लगाया था. यह आरोप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तरफ से भी लगाया गया. अब यही आरोप ललन सिंह पर भी लग रहा है. उपेंद्र कुशवाहा सहित कई नेताओं ने लालू प्रसाद के एजेंट के तौर पर जदयू में काम करने का आरोप ललन सिंह पर लगाया था.

आरजेडी से ललन सिंह की नजदीकियां: ऐसे में ललन सिंह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं और नीतीश कुमार के साथ उनका पहले भी विवाद हो चुका है. विवाद के कारण ललन सिंह को पार्टी छोड़ना पड़ा था, कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़े हालांकि जीत हासिल नहीं हुई. इस बार जिस लालू यादव के हमेशा विरोध में ललन सिंह रहते थे उन्हीं से नजदीकियां बढ़ाने के कारण कुर्सी गमानी पड़ी है. ऐसे केवल यही एक कारण नहीं है, ललन सिंह को हटाने के पीछे नीतीश कुमार की दूरगामी राजनीतिक सोच भी है, हालांकि देखना है उसमें नीतीश कुमार कितना सफल हो पाते हैं.

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