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ये है भिखारी ठाकुर का प्रभाव, अमेरिका तक राकेश 'लौंडा नाच' का लहरा रहे परचम, बोले- 'लोग क्या कहते हैं, फर्क नहीं पड़ता'

आज भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की 140वीं जयंती है. भिखारी ठाकुर ने रंगमंच के जरीए समाज सुधार की एक अलग अलख जगाई थी. इसके साथ ही ‘लौंडा नाच’ के जनक भी माने जाते है. जहां एक तरफ भिखारी ठाकुर के नाटकों पर शोध हो रहे है, वही, इनकी लोकनृत्य लौंडा नाच को भी अलग आयाम मिल रहा है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 18, 2023, 6:38 PM IST

Updated : Dec 18, 2023, 7:05 PM IST

पटना : समाज में फैली जिन कुरीतियों को लेकर सरकार और समाज सुधारक मशक्कत कर रहे हैं. लगभग 14 दशक पहले भोजपुर और छपरा के बीच में बसे गांव कुतुबपुर दियारा में जन्मे भिखारी ठाकुर ने बड़ी ही आसानी से इन तमाम कुरीतियों पर बड़ा प्रहार किया था. जी हां, 18 दिसंबर 1887 को कुतुबपुर दियारा में हजाम के घर में जन्मे भिखारी ठाकुर ने बिना पढ़े लिखे ही समाज में फैली कुरीतियों पर 18 ऐसे नाटक लिखे जो आज मील के पत्थर साबित हो रहे हैं. भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है.

भिखारी ठाकुर की जयंती पर सैंड आर्टिस्ट ने बालू पर उकेरी आकृति
भिखारी ठाकुर की जयंती पर सैंड आर्टिस्ट ने बालू पर उकेरी आकृति

भोजपुरी के शेक्सपीयर की कृतियां : भिखारी ठाकुर ने अपने जीवन काल में पलायन के दंश, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बुजुर्गों की उपेक्षा, नशाबंदी, बेमेल विवाह, बाल विवाह सहित कई ऐसे नाटक पेश किये, जो समाज के ठेकेदारों को आइना दिखा रही थी. जिस तरह से भिखारी ठाकुर ने मंच पर पुरुष होकर महिला का वेश धारण करके नाटकों को किया, उस समय से लेकर अब तक यह काफी चैलेंजिंग रहा है. इसे 'लौंडा नाच' कहते हैं.

'लौंडा नाच एक कला' : बिदेशिया, भाई विरोध, बेटी बेचवा, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा आसमान, विधवा विलाप, पुत्रवध, ननंद भोजाई जैसे नाटक काफी प्रसिद्ध हुए और बाद के दिनों में इन नाटकों को कई बार मंच पर अलग-अलग तरीके से पेश किया गया. भिखारी ठाकुर के नाटकों पर तो शोध भी होने लगा है. भिखारी ठाकुर से प्रेरित होकर बिहार के सिवान के रहने वाले राकेश कुमार ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से 'लौंडा नाच' पर विशेष प्रशिक्षण लिया और आज राकेश कुमार देश दुनिया में लौंडा नाच को पेश करते हैं.

भिखारी ठाकुर के लौंडा नाच को प्रस्तुत करते राकेश कुमार
भिखारी ठाकुर के लौंडा नाच को प्रस्तुत करते राकेश कुमार

राकेश कुमार से खास बातचीत : 'लौंडा नाच' में पहले पुरुषों को महिला का वेश धारण करना सही और इज्जत वाला काम नहीं माना जाता था. लेकिन, भिखारी ठाकुर ने इन सबके बावजूद अपनी सभी नाटकों में पुरुष कलाकारों को महिला बनकर नाटक किया और वह काफी प्रसिद्ध और चर्चित हुए. विलुप्त हो रही विधा 'लौंडा नाच' को अब लोगों के बीच पेश करके राकेश कुमार खूब वाहवाही बटोर रहे है. ईटीवी भारत ने राकेश कुमार से खास बात की.

ईटीवी भारत का सवाल - एनएसडी में लौंडा नाच को क्यों चुना?
राकेश कुमार का जवाब - ''लौंडा नाच को लेकर मैं लगातार काम करता रहा हूं. नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में भी इसको मैंने पेश किया और इस पर मैं विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है. मैं बचपन से जिस माहौल में पला- बढ़ा हूं, उस माहौल में इस विधा को मैं देखता रहा हूं, मैंने लौंडा नाच की अहमियत को समझा, यह एक कला है. एक सांस्कृतिक धरोहर है. यह बिहार का फोक है. लौंडा नाच, नाच पार्टी का दौर बहुत खराब चल रहा था, मैं एनएसडी में आया और वह मैंने इस पर विशेष काम किया. देश और विदेशों में भी लौंडा नाच के शो कर रहा हूं.''

ईटीवी भारत का सवाल - भिखारी ठाकुर से कैसे प्रेरणा मिली ?
राकेश कुमार का जवाब - ''नाटक में कई संदेश हैं. उन्होंने समय से पहले तमाम चीजों को नाटक के जरिए पेश कर दिया था. पलायन और विदेश जाकर दूसरी शादी करने को लेकर विदेशिया नाटक लिखा. आज भी वही चीज हो रही है लेकिन, समय बदल चुका है, आज मॉडर्न युग है, भाई विरोध, गबरघिचोर, बेटी बेचवा जेसे नाडक किए थे, आज भी तमाम घटनाएं हो रही हैं. उन्होंने समाज को पहले ही आइना दिखा दिया. उनके नाटक से कुछ परिवर्तन भी हुए. बेटी बेचवा नाटक इसलिए किया था कि पहले लोग अपनी बेटी को मेला में बेच दिया करते थे. उनके जितने भी नाटक हैं वह समाज से रिलेटेड नाटक थे, जो समाज को प्रभावित करते हैं.''

ईटीवी भारत का सवाल - 'विलुप्त हो रही विधा लौंडा नाच'?
राकेश कुमार का जवाब - ''पहले जब लौंडा नाच होता था, नाच पार्टी होती थी तो, लोग उस कलाकार को काफी गंदी निगाह से देखते थे, कमेंट करते थे कि यह देखो नचनिया जा रहा है, लोग लौंडा नाच करने वाले कलाकारों के साथ बदतमीजी करते थे, छेड़छाड़ करते थे, आज भी लोग उनको गलत नजर से देखते हैं. उनको कलाकारों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था. जब मैं इन सब चीजों को देखा तो मुझे लगा कि एक कलाकार के नजरिए से यह बहुत ही गलत है. जब मैं एनएसडी गया तो मुझसे पूछा गया कि आपके बिहार में अलग क्या है तो मैं 'लौंडा नाच' को प्रस्तुत किया. यह बिहार का लोक नृत्य है. यह नृत्य धीरे-धीरे खत्म हो रहा है, कलाकार खत्म हो रहे हैं, मैंने एनएसडी में इस चीज को रखा और धीरे-धीरे मैं वहां प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली.''

लौंडा नाच से पहले तैयार होते कलाकार राकेश कुमार
लौंडा नाच से पहले तैयार होते कलाकार राकेश कुमार

ईटीवी भारत का सवाल - अब लोग क्या कहते हैं, फर्क पड़ता है या नहीं पड़ता?
राकेश कुमार का जवाब - ''अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है. मैं अब कहीं भी जाकर लौंडा नाच करता हूं. मैं यूएस में जाकर लौंडा नाच पर सेमिनार किया था. अब मुझे गर्व महसूस होता है कि जो लोग गलत निगाह से इस विधा को देखते थे, अब मैं उस चीज को एक अलग लेवल पर लेकर आ गया हूं. अब मैं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा करता हूं. लोगों को बता रहा हूं कि बिहार की एक लोक नृत्य है.''

ईटीवी भारत का सवाल - 'घर में कभी विरोध हुआ था?'
राकेश कुमार का जवाब - ''शुरू में घर के लोग विरोध करते थे, लोग कहते थे कि इस तरह का काम मत करो. यह अच्छा चीज नहीं है. लेकिन, गांव के नाटक दुर्गा पूजा महोत्सव मेला में मैं लड़की बनकर काम करता था, डांस करता था. धीरे-धीरे जब मैं बड़ा हुआ तो उसे मैं लगातार करने लगा. मैं पढ़ाई के साथ-साथ स्टेज शो करने लगा. फिर परिवार के लोगों को समझाया कि मैं पढ़ाई भी कर रहा हूं और यह काम भी कर रहा हूं. फिर मैं जब एनएसडी गया तो, सभी मान गए.''

ईटीवी भारत का सवाल - 'क्या अब फिल्मों में लौंडा नाच देखने को मिलेगा?'
राकेश कुमार का जवाब - ''लौंडा नाच को लेकर मैने कई फिल्मों में काम किया है. धर्मा प्रोडक्शन की एक फिल्म आने वाली है, जिसमें लौंडा नाच दिखाया जाएगा. पहले मैंने महारानी वेब सीरीज में लौंडा लॉन्च किया है. खाकी बेवसीरीज में मैं लौंडा नाच को पेश किया था. मैंने कई सीरियल किए हैं कई डेली शो किए हैं.''

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पटना : समाज में फैली जिन कुरीतियों को लेकर सरकार और समाज सुधारक मशक्कत कर रहे हैं. लगभग 14 दशक पहले भोजपुर और छपरा के बीच में बसे गांव कुतुबपुर दियारा में जन्मे भिखारी ठाकुर ने बड़ी ही आसानी से इन तमाम कुरीतियों पर बड़ा प्रहार किया था. जी हां, 18 दिसंबर 1887 को कुतुबपुर दियारा में हजाम के घर में जन्मे भिखारी ठाकुर ने बिना पढ़े लिखे ही समाज में फैली कुरीतियों पर 18 ऐसे नाटक लिखे जो आज मील के पत्थर साबित हो रहे हैं. भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता है.

भिखारी ठाकुर की जयंती पर सैंड आर्टिस्ट ने बालू पर उकेरी आकृति
भिखारी ठाकुर की जयंती पर सैंड आर्टिस्ट ने बालू पर उकेरी आकृति

भोजपुरी के शेक्सपीयर की कृतियां : भिखारी ठाकुर ने अपने जीवन काल में पलायन के दंश, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बुजुर्गों की उपेक्षा, नशाबंदी, बेमेल विवाह, बाल विवाह सहित कई ऐसे नाटक पेश किये, जो समाज के ठेकेदारों को आइना दिखा रही थी. जिस तरह से भिखारी ठाकुर ने मंच पर पुरुष होकर महिला का वेश धारण करके नाटकों को किया, उस समय से लेकर अब तक यह काफी चैलेंजिंग रहा है. इसे 'लौंडा नाच' कहते हैं.

'लौंडा नाच एक कला' : बिदेशिया, भाई विरोध, बेटी बेचवा, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा आसमान, विधवा विलाप, पुत्रवध, ननंद भोजाई जैसे नाटक काफी प्रसिद्ध हुए और बाद के दिनों में इन नाटकों को कई बार मंच पर अलग-अलग तरीके से पेश किया गया. भिखारी ठाकुर के नाटकों पर तो शोध भी होने लगा है. भिखारी ठाकुर से प्रेरित होकर बिहार के सिवान के रहने वाले राकेश कुमार ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से 'लौंडा नाच' पर विशेष प्रशिक्षण लिया और आज राकेश कुमार देश दुनिया में लौंडा नाच को पेश करते हैं.

भिखारी ठाकुर के लौंडा नाच को प्रस्तुत करते राकेश कुमार
भिखारी ठाकुर के लौंडा नाच को प्रस्तुत करते राकेश कुमार

राकेश कुमार से खास बातचीत : 'लौंडा नाच' में पहले पुरुषों को महिला का वेश धारण करना सही और इज्जत वाला काम नहीं माना जाता था. लेकिन, भिखारी ठाकुर ने इन सबके बावजूद अपनी सभी नाटकों में पुरुष कलाकारों को महिला बनकर नाटक किया और वह काफी प्रसिद्ध और चर्चित हुए. विलुप्त हो रही विधा 'लौंडा नाच' को अब लोगों के बीच पेश करके राकेश कुमार खूब वाहवाही बटोर रहे है. ईटीवी भारत ने राकेश कुमार से खास बात की.

ईटीवी भारत का सवाल - एनएसडी में लौंडा नाच को क्यों चुना?
राकेश कुमार का जवाब - ''लौंडा नाच को लेकर मैं लगातार काम करता रहा हूं. नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में भी इसको मैंने पेश किया और इस पर मैं विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है. मैं बचपन से जिस माहौल में पला- बढ़ा हूं, उस माहौल में इस विधा को मैं देखता रहा हूं, मैंने लौंडा नाच की अहमियत को समझा, यह एक कला है. एक सांस्कृतिक धरोहर है. यह बिहार का फोक है. लौंडा नाच, नाच पार्टी का दौर बहुत खराब चल रहा था, मैं एनएसडी में आया और वह मैंने इस पर विशेष काम किया. देश और विदेशों में भी लौंडा नाच के शो कर रहा हूं.''

ईटीवी भारत का सवाल - भिखारी ठाकुर से कैसे प्रेरणा मिली ?
राकेश कुमार का जवाब - ''नाटक में कई संदेश हैं. उन्होंने समय से पहले तमाम चीजों को नाटक के जरिए पेश कर दिया था. पलायन और विदेश जाकर दूसरी शादी करने को लेकर विदेशिया नाटक लिखा. आज भी वही चीज हो रही है लेकिन, समय बदल चुका है, आज मॉडर्न युग है, भाई विरोध, गबरघिचोर, बेटी बेचवा जेसे नाडक किए थे, आज भी तमाम घटनाएं हो रही हैं. उन्होंने समाज को पहले ही आइना दिखा दिया. उनके नाटक से कुछ परिवर्तन भी हुए. बेटी बेचवा नाटक इसलिए किया था कि पहले लोग अपनी बेटी को मेला में बेच दिया करते थे. उनके जितने भी नाटक हैं वह समाज से रिलेटेड नाटक थे, जो समाज को प्रभावित करते हैं.''

ईटीवी भारत का सवाल - 'विलुप्त हो रही विधा लौंडा नाच'?
राकेश कुमार का जवाब - ''पहले जब लौंडा नाच होता था, नाच पार्टी होती थी तो, लोग उस कलाकार को काफी गंदी निगाह से देखते थे, कमेंट करते थे कि यह देखो नचनिया जा रहा है, लोग लौंडा नाच करने वाले कलाकारों के साथ बदतमीजी करते थे, छेड़छाड़ करते थे, आज भी लोग उनको गलत नजर से देखते हैं. उनको कलाकारों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था. जब मैं इन सब चीजों को देखा तो मुझे लगा कि एक कलाकार के नजरिए से यह बहुत ही गलत है. जब मैं एनएसडी गया तो मुझसे पूछा गया कि आपके बिहार में अलग क्या है तो मैं 'लौंडा नाच' को प्रस्तुत किया. यह बिहार का लोक नृत्य है. यह नृत्य धीरे-धीरे खत्म हो रहा है, कलाकार खत्म हो रहे हैं, मैंने एनएसडी में इस चीज को रखा और धीरे-धीरे मैं वहां प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली.''

लौंडा नाच से पहले तैयार होते कलाकार राकेश कुमार
लौंडा नाच से पहले तैयार होते कलाकार राकेश कुमार

ईटीवी भारत का सवाल - अब लोग क्या कहते हैं, फर्क पड़ता है या नहीं पड़ता?
राकेश कुमार का जवाब - ''अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है. मैं अब कहीं भी जाकर लौंडा नाच करता हूं. मैं यूएस में जाकर लौंडा नाच पर सेमिनार किया था. अब मुझे गर्व महसूस होता है कि जो लोग गलत निगाह से इस विधा को देखते थे, अब मैं उस चीज को एक अलग लेवल पर लेकर आ गया हूं. अब मैं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा करता हूं. लोगों को बता रहा हूं कि बिहार की एक लोक नृत्य है.''

ईटीवी भारत का सवाल - 'घर में कभी विरोध हुआ था?'
राकेश कुमार का जवाब - ''शुरू में घर के लोग विरोध करते थे, लोग कहते थे कि इस तरह का काम मत करो. यह अच्छा चीज नहीं है. लेकिन, गांव के नाटक दुर्गा पूजा महोत्सव मेला में मैं लड़की बनकर काम करता था, डांस करता था. धीरे-धीरे जब मैं बड़ा हुआ तो उसे मैं लगातार करने लगा. मैं पढ़ाई के साथ-साथ स्टेज शो करने लगा. फिर परिवार के लोगों को समझाया कि मैं पढ़ाई भी कर रहा हूं और यह काम भी कर रहा हूं. फिर मैं जब एनएसडी गया तो, सभी मान गए.''

ईटीवी भारत का सवाल - 'क्या अब फिल्मों में लौंडा नाच देखने को मिलेगा?'
राकेश कुमार का जवाब - ''लौंडा नाच को लेकर मैने कई फिल्मों में काम किया है. धर्मा प्रोडक्शन की एक फिल्म आने वाली है, जिसमें लौंडा नाच दिखाया जाएगा. पहले मैंने महारानी वेब सीरीज में लौंडा लॉन्च किया है. खाकी बेवसीरीज में मैं लौंडा नाच को पेश किया था. मैंने कई सीरियल किए हैं कई डेली शो किए हैं.''

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Last Updated : Dec 18, 2023, 7:05 PM IST
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