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तमिलनाडु से पहले बिहार में भी हो चुकी है मंदिरों में दलित पुजारी की नियुक्ति की पहल, खास था मकसद

सौ फीसदी 'आरक्षण' के तहत मंदिरों में अमूमन ब्राह्मणों को ही पूजा-पाठ कराने की जिम्मेदारी मिलती है. हालिया दिनों तमिलनाडु में गैर-ब्राह्मण को मंदिर का पुजारी बनाने का निर्णय लिया गया है. हालांकि बिहार में काफी साल पहले ऐसी कोशिश हो चुकी है. वास्तव में मंदिर से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता है. ये खास रिपोर्ट पढ़ें...

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Published : Aug 24, 2021, 10:23 PM IST

मंदिरों में पुजारी
मंदिरों में पुजारी

पटना: हिंदू धर्म (Hindu Religion) में मंदिरों की देखभाल या पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिरों में पुजारी (Priests in Temple) रहते हैं. ये पुजारी सामान्यत: ब्राह्मण (Brahmins) समाज से होते हैं. ब्राह्मणों के अलावे दूसरी किसी भी जाति के पुजारी शायद ही किसी मंदिर में देखने को मिलता है. अभी तमिलनाडु ने इस दिशा में बड़ा फैसला लिया है. हालांकि अब से कई साल पहले बिहार के कई मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति की गई थी.

ये भी पढ़ें: 'बैठे-बैठे पाना चाहते हैं 20 करोड़', हनुमान मंदिर की तरह आप भी बताएं अपनी कमाई- हनुमानगढ़ी के दावे पर बोले आचार्य

बिहार सरकार ने यह पहल राज्य में सामाजिक समरसता कायम करने के मकसद से की थी. जिसके तहत कई मंदिरों में दलित पुजारियों को नियुक्त किया था. यहां तक कि राज्य के सबसे प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में भी दलित पुजारी को रखा गया था.

देखें रिपोर्ट

पटना के पालीगंज स्थित राम जानकी मंदिर और बिहटा के शिव मंदिर समेत कई ऐसे मंदिर हैं, जिसमें दलित पुजारी नियुक्त किए गए थे. तब किशोर कुणाल (Kishore Kunal) धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष हुए थे.

किशोर कुणाल ने यह ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए दलित समुदाय के लोगों को भी मंदिरों में पूजा-पाठ और साफ-सफाई के लिए नियुक्त किया था. उनकी यह सोच थी कि इससे सामाजिक समरसता बनी रहेगी. दलित पुजारी रखने के बाद उन्होंने बताया कि देश के बहुत से धर्म स्थलों से भी संपर्क किया गया था.

माना जाता है कि मंदिरों में पूजा-पाठ और अन्य कार्यों के साथ ही आसपास स्थित दुकानों में रोजगार की काफी संभावना होती है. धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष अखिलेश कुमार जैन (Akhilesh Kumar Jain) बताते हैं कि प्रदेश में लगभग 4500 रजिस्टर्ड मंदिर है.

वहीं, लगभग 8000 ऐसे मंदिर हैं, जो किसी कारणवश रजिस्टर्ड नहीं हो पाए हैं. रजिस्ट्रेशन के पहले कुछ कागजी प्रक्रिया होती है. जो इसे पूरी नहीं कर पाते हैं, उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाता है.

अखिलेश कुमार जैन कहते हैं कि जहां तक मंदिर से रोजगार और आय के संबंध हैं तो ऐसे कई मंदिर हैं, जहां मंदिर के 100-200 दुकानें है. इन दुकानों से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. हालांकि कोरोना के कारण मंदिर बंद रहे, जिस वजह से दुकानें भी नहीं चल पाईं.

ये भी पढ़ें: पटना: महावीर मंदिर बंद होने से दुकानदारों की कमाई ठप, घर चलाना हुआ मुश्किल

धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष कहते हैं कि एक मंदिर में 4 या 5 पुजारी और सफाई कर्मी होते हैं. जाहिर तौर पर उन सभी को मंदिर से ही रोजगार मिलता है. मंदिर के सचिव के द्वारा मंदिर के महंत-पुजारी और सफाई कर्मी को भी पैसे मिलते हैं.

आपको बताएं कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने गैर ब्राह्मणों को पुजारी बनाने के आदेश दिए हैं. इसके मुताबिक आने वाले दिनों में प्रदेश में 200 गैर ब्राह्मणों को 100 दिन के प्रशिक्षण के बाद शिव अर्चक बनाया जाएगा. इसके बाद तमिलनाडु के मंदिरों में उनकी नियुक्ति की जाएगी.

पटना: हिंदू धर्म (Hindu Religion) में मंदिरों की देखभाल या पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिरों में पुजारी (Priests in Temple) रहते हैं. ये पुजारी सामान्यत: ब्राह्मण (Brahmins) समाज से होते हैं. ब्राह्मणों के अलावे दूसरी किसी भी जाति के पुजारी शायद ही किसी मंदिर में देखने को मिलता है. अभी तमिलनाडु ने इस दिशा में बड़ा फैसला लिया है. हालांकि अब से कई साल पहले बिहार के कई मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति की गई थी.

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बिहार सरकार ने यह पहल राज्य में सामाजिक समरसता कायम करने के मकसद से की थी. जिसके तहत कई मंदिरों में दलित पुजारियों को नियुक्त किया था. यहां तक कि राज्य के सबसे प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में भी दलित पुजारी को रखा गया था.

देखें रिपोर्ट

पटना के पालीगंज स्थित राम जानकी मंदिर और बिहटा के शिव मंदिर समेत कई ऐसे मंदिर हैं, जिसमें दलित पुजारी नियुक्त किए गए थे. तब किशोर कुणाल (Kishore Kunal) धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष हुए थे.

किशोर कुणाल ने यह ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए दलित समुदाय के लोगों को भी मंदिरों में पूजा-पाठ और साफ-सफाई के लिए नियुक्त किया था. उनकी यह सोच थी कि इससे सामाजिक समरसता बनी रहेगी. दलित पुजारी रखने के बाद उन्होंने बताया कि देश के बहुत से धर्म स्थलों से भी संपर्क किया गया था.

माना जाता है कि मंदिरों में पूजा-पाठ और अन्य कार्यों के साथ ही आसपास स्थित दुकानों में रोजगार की काफी संभावना होती है. धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष अखिलेश कुमार जैन (Akhilesh Kumar Jain) बताते हैं कि प्रदेश में लगभग 4500 रजिस्टर्ड मंदिर है.

वहीं, लगभग 8000 ऐसे मंदिर हैं, जो किसी कारणवश रजिस्टर्ड नहीं हो पाए हैं. रजिस्ट्रेशन के पहले कुछ कागजी प्रक्रिया होती है. जो इसे पूरी नहीं कर पाते हैं, उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाता है.

अखिलेश कुमार जैन कहते हैं कि जहां तक मंदिर से रोजगार और आय के संबंध हैं तो ऐसे कई मंदिर हैं, जहां मंदिर के 100-200 दुकानें है. इन दुकानों से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. हालांकि कोरोना के कारण मंदिर बंद रहे, जिस वजह से दुकानें भी नहीं चल पाईं.

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धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष कहते हैं कि एक मंदिर में 4 या 5 पुजारी और सफाई कर्मी होते हैं. जाहिर तौर पर उन सभी को मंदिर से ही रोजगार मिलता है. मंदिर के सचिव के द्वारा मंदिर के महंत-पुजारी और सफाई कर्मी को भी पैसे मिलते हैं.

आपको बताएं कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने गैर ब्राह्मणों को पुजारी बनाने के आदेश दिए हैं. इसके मुताबिक आने वाले दिनों में प्रदेश में 200 गैर ब्राह्मणों को 100 दिन के प्रशिक्षण के बाद शिव अर्चक बनाया जाएगा. इसके बाद तमिलनाडु के मंदिरों में उनकी नियुक्ति की जाएगी.

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