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कोरोना काल में 'कैद' हुआ बचपन, बच्चों की रीडिंग स्पीड और लिखावट भी हुई कमजोर - कोरोना में बच्चों का पढ़ाई

लॉकडाउन और स्कूलों से दूर रहकर पढ़ाई करने के बाद अब बच्चे स्कूल की ओर लौट रहे हैं. लेकिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है. इसके साथ ही बच्चों की लेखनी और उनकी रीडिंग क्षमता भी कमजोर हो गई है. इस समस्या को लेकर ETV Bharat की टीम ने कुछ अभिभावक और शिक्षकों से बात की...

बच्चों का पढ़ाई
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Published : Oct 20, 2021, 7:30 AM IST

पटना: कोविड-19 महामारी (Covid-19) ने लोगों के जीवन को हर तरह से प्रभावित किया है. इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को जन्म दिया है. इस बीमारी ने खासतौर पर बच्चों की जिंदगी भी बदलकर रख दी है. करीब दो साल से घरों में कैद बच्चों की बदली लाइफस्टाइल ने उनके जीवन पर असर डाला है. इसके साथ ही बच्चों की पढ़ाई (Children Studies During Covid) पर भी बुरा असर पड़ा है. प्राइवेट स्कूल लगभग 18 महीने बंद रहे ऐसे में कक्षा 1 से 5 के बच्चों की बात करें तो इन बच्चों की पढ़ाई डेढ़ वर्षों में काफी कमजोर हो गई. स्कूल प्रबंधन अभी इस बात से परेशान है कि बच्चा जिस स्टैंडर्ड में है, उसे स्टैंडर्ड के लायक उसका ज्ञान और कौशल नहीं है.

इसे भी पढ़ें: किताबों को बनाइए अपना साथी, देखिए कैसे जिंदगी को जीने और देखने का बदल जाएगा नजरिया

लॉकडाउन के दौरान काफी सारे प्राइवेट स्कूलों ने ऑनलाइन माध्यम से क्लास जरूर चलाए, लेकिन इससे बच्चों को अधिक मदद नहीं मिल पायी. कोरोना की वजह से स्कूल बंद रहे और इसके कारण बच्चों की लेखनी काफी कमजोर हो गई है. हैंडराइटिंग खराब होने के साथ-साथ लिखने की स्पीड भी कम हो गई है. ऐसे में स्कूल में शिक्षक जब बोर्ड पर क्लास वर्क करा रहे हैं, तो उसे सही से बच्चे नोट डाउन भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसी स्थिति में बच्चों के लिखने की स्पीड बढ़ाने के लिए शिक्षकों को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है.

देखें रिपोर्ट.
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किताब खरीदने के लिए पैसे पहुंचे अकाउंट में, फिर भी बिना पुस्तक बच्चे कर रहे पढ़ाई

पटना निवासी अभिभावक सोनी कुमारी ने कहा कि मेरा बच्चा शौर्य कुमार एक निजी विद्यालय पटना दून पब्लिक में पांचवी कक्षा में पढ़ता है. जब उसने तीसरी कक्षा का फाइनल एग्जाम दिया था, तो उसके बाद से ही स्कूल बंद हो गए और पांचवी कक्षा का साल आधा बीत जाने के बाद स्कूल अब खुला है. इस बीच बच्चों में पढ़ाई को लेकर सीरियसनेस कम हो गई है. उन्होंने कहा कि जब बच्चा तीसरी कक्षा में था, उस वक्त जो इसकी लेखनी थी आज उससे खराब है. उन्होंने कहा कि क्लासरूम पढ़ाई के दौरान बच्चे पढ़ाई को लेकर सीरियस रहते थे और अपने होमवर्क को कंप्लीट करके स्कूल जाते थे. लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन क्लासेज चलने लगे, तो शिक्षकों ने नियमित होमवर्क चेक नहीं किया.

ऐसे में बच्चों में चैप्टर को रीडिंग देने की आदत खत्म हो गई और लिखने की स्पीड भी कम हो गई. लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन एग्जाम लिए जाते थे, तो शॉट और वन वर्ड क्वेश्चन ज्यादा रहते थे, कई मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन रहते थे. ऐसे में इन सब वजहों से बच्चा लिखने में कमजोर हो गया. अब जब लंबे समय के बाद स्कूल खुला, तो धीरे-धीरे बच्चे में लिखने की आदत आ रही है. क्योंकि स्कूल की तरफ से भी होमवर्क में लिखने का काम ज्यादा दिया जा रहा है. अभिभावक ने कहा कि अभी क्लास रूम में जो पढ़ाया जा रहा है, उसे नोट डाउन करने में बच्चे विफल हो रहे हैं. लगभग सभी बच्चों की हालत ऐसे ही हो गई है. ऐसे में टीचर चैप्टर के क्वेश्चन और आंसर को पीडीएफ फॉर्मेट में व्हाट्सएप कर रहे हैं.

'लॉकडाउन के बाद जब बच्चे स्कूल आए, तो उनकी लेखनी में काफी गिरावट देखने को मिला. जो बच्चे सुंदर सुलेख लिखा करते थे उनकी हैंडराइटिंग खराब हो गई. यह समस्या छोटे बच्चों के साथ ज्यादा आई खासकर कक्षा KG से 5 तक के बच्चों में. बच्चों की हैंडराइटिंग खराब होने के साथ-साथ उनके लिखने की स्पीड भी कम हुई और चैप्टर को रीडिंग देने में भी उन्हें काफी दिक्कत आने लगी. ऐसी स्थिति में बच्चों को पढ़ाना भी काफी टफ हो रहा है.' -सतीश कुमार, शिक्षक, नेशनल कॉन्वेट स्कूल, गर्दनीबाग

शिक्षक ने कहा कि हमलोगों के लिए एक चुनौती है कि बच्चों की लेखनी सुधारा जाए और साथ ही साथ बच्चे अपने क्लास के चैप्टर को सही से रीडिंग दे सके यह सीख सकें. उन्होंने बताया कि अभी के समय वह क्लास रूम में बच्चों को अधिक से अधिक लिखने का काम दे रहे हैं और पहले जहां एक पेज हैंड राइटिंग लिखवाया करते थे अब दो पेज लिखवाते हैं. इसके साथ ही अंग्रेजी में कर्सिव हैंडराईटिंग बच्चों को साफ-साफ लिखवाने का प्रयास किया जा रहा है.

'उनकी काफी सारे प्राइवेट स्कूल संचालकों से बात हुई है और सभी का कहना है कि लंबे समय के बाद जब बच्चे विद्यालय आए हैं, तो वह पढ़ाई में काफी कमजोर हो गए हैं. बच्चों के लिखने की क्षमता कम हो गई है और उनकी हैंडराइटिंग भी काफी खराब हो गई है. बच्चे तेजी में लिख नहीं पा रहे हैं और 1-2 पेज लिखने में ही वह थक जा रहे हैं. सही से चैप्टर को रीडिंग नहीं दे पा रहे हैं और पढ़ाई में भी काफी कमजोर हो गए हैं. इसके अलावा बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है. काफी बच्चे मोटापा और सुस्ती की बीमारी से ग्रसित हो गए हैं.' -शमायल अहमद, अध्यक्ष प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय

शमायल अहमद ने बताया कि बच्चों के पढ़ाई में कमजोर होने के पीछे पूरी तरह से जिम्मेदार उनके अभिभावक हैं और अभिभावकों ने जिम्मेदारी पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन क्लासेज चलते थे और ऐसे में ऑनलाइन एग्जाम लिया जाता था, तो बच्चे काफी अच्छा नंबर लाते थे लेकिन वहीं क्लास में पढ़ाई में काफी कमजोर दिखे. बाद में पता चला कि यह बच्चे एग्जाम देते वक्त अपने माता-पिता को पुस्तक लेकर बैठा लेते थे और बच्चे के बजाय उनके माता-पिता क्वेश्चन सॉल्व करते थे.

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान फिजिकल गतिविधि नहीं हुई और खाने-पीने के बच्चों के सभी डिमांड को पैरंट्स ने पूरा किया. ऐसे में जूनियर क्लासेज में काफी बच्चे मोटापा से ग्रसित हो गए हैं. बच्चों में पढ़ाई की कंटिन्यूटी खत्म हो गई है यानी कि एक घंटे से अधिक बैठकर पढ़ नहीं पा रहे हैं और शिक्षक उन्हें किसी तरह क्लास रूम में बैठने की आदत डाल रहे हैं.

शमायल अहमद ने कहा कि अभी स्कूल खुल गया है ऐसे में वह सभी पेरेंट्स को आश्वस्त करेंगे कि सभी स्कूल प्रबंधन बच्चों के पीछे छूट चुकी पढ़ाई को कंप्लीट कराने और बच्चों का सही विकास हो इसके लिए प्रतिबद्ध हैं. एक्स्ट्रा एफर्ट डालकर मेहनत कर रहे हैं. जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं, उनके लिए कई विद्यालय कैचअप कोर्स करा रहे हैं. इसके अलावा बच्चों के फिजिकल एक्टिविटी को भी स्कूल में बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि बच्चे शारीरिक रूप से फिट रहे.

पटना: कोविड-19 महामारी (Covid-19) ने लोगों के जीवन को हर तरह से प्रभावित किया है. इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को जन्म दिया है. इस बीमारी ने खासतौर पर बच्चों की जिंदगी भी बदलकर रख दी है. करीब दो साल से घरों में कैद बच्चों की बदली लाइफस्टाइल ने उनके जीवन पर असर डाला है. इसके साथ ही बच्चों की पढ़ाई (Children Studies During Covid) पर भी बुरा असर पड़ा है. प्राइवेट स्कूल लगभग 18 महीने बंद रहे ऐसे में कक्षा 1 से 5 के बच्चों की बात करें तो इन बच्चों की पढ़ाई डेढ़ वर्षों में काफी कमजोर हो गई. स्कूल प्रबंधन अभी इस बात से परेशान है कि बच्चा जिस स्टैंडर्ड में है, उसे स्टैंडर्ड के लायक उसका ज्ञान और कौशल नहीं है.

इसे भी पढ़ें: किताबों को बनाइए अपना साथी, देखिए कैसे जिंदगी को जीने और देखने का बदल जाएगा नजरिया

लॉकडाउन के दौरान काफी सारे प्राइवेट स्कूलों ने ऑनलाइन माध्यम से क्लास जरूर चलाए, लेकिन इससे बच्चों को अधिक मदद नहीं मिल पायी. कोरोना की वजह से स्कूल बंद रहे और इसके कारण बच्चों की लेखनी काफी कमजोर हो गई है. हैंडराइटिंग खराब होने के साथ-साथ लिखने की स्पीड भी कम हो गई है. ऐसे में स्कूल में शिक्षक जब बोर्ड पर क्लास वर्क करा रहे हैं, तो उसे सही से बच्चे नोट डाउन भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसी स्थिति में बच्चों के लिखने की स्पीड बढ़ाने के लिए शिक्षकों को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है.

देखें रिपोर्ट.
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पटना निवासी अभिभावक सोनी कुमारी ने कहा कि मेरा बच्चा शौर्य कुमार एक निजी विद्यालय पटना दून पब्लिक में पांचवी कक्षा में पढ़ता है. जब उसने तीसरी कक्षा का फाइनल एग्जाम दिया था, तो उसके बाद से ही स्कूल बंद हो गए और पांचवी कक्षा का साल आधा बीत जाने के बाद स्कूल अब खुला है. इस बीच बच्चों में पढ़ाई को लेकर सीरियसनेस कम हो गई है. उन्होंने कहा कि जब बच्चा तीसरी कक्षा में था, उस वक्त जो इसकी लेखनी थी आज उससे खराब है. उन्होंने कहा कि क्लासरूम पढ़ाई के दौरान बच्चे पढ़ाई को लेकर सीरियस रहते थे और अपने होमवर्क को कंप्लीट करके स्कूल जाते थे. लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन क्लासेज चलने लगे, तो शिक्षकों ने नियमित होमवर्क चेक नहीं किया.

ऐसे में बच्चों में चैप्टर को रीडिंग देने की आदत खत्म हो गई और लिखने की स्पीड भी कम हो गई. लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन एग्जाम लिए जाते थे, तो शॉट और वन वर्ड क्वेश्चन ज्यादा रहते थे, कई मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन रहते थे. ऐसे में इन सब वजहों से बच्चा लिखने में कमजोर हो गया. अब जब लंबे समय के बाद स्कूल खुला, तो धीरे-धीरे बच्चे में लिखने की आदत आ रही है. क्योंकि स्कूल की तरफ से भी होमवर्क में लिखने का काम ज्यादा दिया जा रहा है. अभिभावक ने कहा कि अभी क्लास रूम में जो पढ़ाया जा रहा है, उसे नोट डाउन करने में बच्चे विफल हो रहे हैं. लगभग सभी बच्चों की हालत ऐसे ही हो गई है. ऐसे में टीचर चैप्टर के क्वेश्चन और आंसर को पीडीएफ फॉर्मेट में व्हाट्सएप कर रहे हैं.

'लॉकडाउन के बाद जब बच्चे स्कूल आए, तो उनकी लेखनी में काफी गिरावट देखने को मिला. जो बच्चे सुंदर सुलेख लिखा करते थे उनकी हैंडराइटिंग खराब हो गई. यह समस्या छोटे बच्चों के साथ ज्यादा आई खासकर कक्षा KG से 5 तक के बच्चों में. बच्चों की हैंडराइटिंग खराब होने के साथ-साथ उनके लिखने की स्पीड भी कम हुई और चैप्टर को रीडिंग देने में भी उन्हें काफी दिक्कत आने लगी. ऐसी स्थिति में बच्चों को पढ़ाना भी काफी टफ हो रहा है.' -सतीश कुमार, शिक्षक, नेशनल कॉन्वेट स्कूल, गर्दनीबाग

शिक्षक ने कहा कि हमलोगों के लिए एक चुनौती है कि बच्चों की लेखनी सुधारा जाए और साथ ही साथ बच्चे अपने क्लास के चैप्टर को सही से रीडिंग दे सके यह सीख सकें. उन्होंने बताया कि अभी के समय वह क्लास रूम में बच्चों को अधिक से अधिक लिखने का काम दे रहे हैं और पहले जहां एक पेज हैंड राइटिंग लिखवाया करते थे अब दो पेज लिखवाते हैं. इसके साथ ही अंग्रेजी में कर्सिव हैंडराईटिंग बच्चों को साफ-साफ लिखवाने का प्रयास किया जा रहा है.

'उनकी काफी सारे प्राइवेट स्कूल संचालकों से बात हुई है और सभी का कहना है कि लंबे समय के बाद जब बच्चे विद्यालय आए हैं, तो वह पढ़ाई में काफी कमजोर हो गए हैं. बच्चों के लिखने की क्षमता कम हो गई है और उनकी हैंडराइटिंग भी काफी खराब हो गई है. बच्चे तेजी में लिख नहीं पा रहे हैं और 1-2 पेज लिखने में ही वह थक जा रहे हैं. सही से चैप्टर को रीडिंग नहीं दे पा रहे हैं और पढ़ाई में भी काफी कमजोर हो गए हैं. इसके अलावा बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है. काफी बच्चे मोटापा और सुस्ती की बीमारी से ग्रसित हो गए हैं.' -शमायल अहमद, अध्यक्ष प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय

शमायल अहमद ने बताया कि बच्चों के पढ़ाई में कमजोर होने के पीछे पूरी तरह से जिम्मेदार उनके अभिभावक हैं और अभिभावकों ने जिम्मेदारी पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब ऑनलाइन क्लासेज चलते थे और ऐसे में ऑनलाइन एग्जाम लिया जाता था, तो बच्चे काफी अच्छा नंबर लाते थे लेकिन वहीं क्लास में पढ़ाई में काफी कमजोर दिखे. बाद में पता चला कि यह बच्चे एग्जाम देते वक्त अपने माता-पिता को पुस्तक लेकर बैठा लेते थे और बच्चे के बजाय उनके माता-पिता क्वेश्चन सॉल्व करते थे.

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान फिजिकल गतिविधि नहीं हुई और खाने-पीने के बच्चों के सभी डिमांड को पैरंट्स ने पूरा किया. ऐसे में जूनियर क्लासेज में काफी बच्चे मोटापा से ग्रसित हो गए हैं. बच्चों में पढ़ाई की कंटिन्यूटी खत्म हो गई है यानी कि एक घंटे से अधिक बैठकर पढ़ नहीं पा रहे हैं और शिक्षक उन्हें किसी तरह क्लास रूम में बैठने की आदत डाल रहे हैं.

शमायल अहमद ने कहा कि अभी स्कूल खुल गया है ऐसे में वह सभी पेरेंट्स को आश्वस्त करेंगे कि सभी स्कूल प्रबंधन बच्चों के पीछे छूट चुकी पढ़ाई को कंप्लीट कराने और बच्चों का सही विकास हो इसके लिए प्रतिबद्ध हैं. एक्स्ट्रा एफर्ट डालकर मेहनत कर रहे हैं. जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं, उनके लिए कई विद्यालय कैचअप कोर्स करा रहे हैं. इसके अलावा बच्चों के फिजिकल एक्टिविटी को भी स्कूल में बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि बच्चे शारीरिक रूप से फिट रहे.

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