पटना: टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) 2020 में हॉकी में भारतीय खिलाड़ियों ने जो प्रदर्शन किया, उससे एक बार फिर हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी (National Sport Hockey) सुर्खियों में आ गया. राष्ट्रीय खेल के प्रोत्साहन को लेकर चारों तरफ चर्चाएं होने लगीं. लेकिन ओलंपिक खेल के 1 महीने बाद ही सभी चर्चाएं बंद हो गईं. बात अगर बिहार की करें तो प्रदेश में राष्ट्रीय खेल हॉकी सरकारी उदासीनता का शिकार है.
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हॉकी खेल के विकास और प्रोत्साहन को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि प्रदेश में एक भी एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान नहीं है. बहुत कम लोग ये जानते हैं कि 1928 ओलंपिक में जब हॉकी में पहली बार भारत ने गोल्ड मेडल जीता था, उस समय हॉकी टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा बिहार के ही रहने वाले थे. लेकिन टोक्यो ओलंपिक 2020 में गए भारतीय टीम में ना ही महिला वर्ग से और ना ही पुरुष वर्ग में बिहार का कोई खिलाड़ी शामिल था.
बिहार के खिलाड़ी कई दशकों से एस्ट्रोटर्फ मैदान की सरकार से मांग कर रहे हैं. हॉकी के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के जो मैच होते हैं, वह एस्ट्रोटर्फ मैदान पर ही खेले जाते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग 12 साल पहले खेल दिवस के दिन हॉकी के लिए एस्ट्रोटर्फ मैदान बनाने की घोषणा की थी. पटना के राजेंद्र नगर फिजिकल कॉलेज में एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान बनाने की बात कही गई. साल 2011 में कला संस्कृति मंत्री सुखदा पांडेय ने राजेंद्र नगर फिजिकल कॉलेज में एस्ट्रोटर्फ मैदान बनाने का शिलान्यास किया. लेकिन 10 साल बीत जाने के बावजूद नतीजा सिफर रहा.
शिलान्यास के बाद मैदान बनाने का काम शुरू नहीं हुआ. स्थिति यह है कि मैदान तालाब में तब्दील हो चुका है. लंबी-लंबी घनी झाड़ियां उगी हुई हैं. एस्ट्रोटर्फ मैदान के नाम पर सिर्फ बाउंड्री वॉल का निर्माण हुआ. छोटा सा पवेलियन भी बना. लेकिन एस्ट्रोटर्फ मैदान नहीं बन सका. यहां के खिलाड़ी जो हॉकी खेलना चाहते हैं वह प्रैक्टिस के लिए पड़ोसी राज्य ओडिशा का रुख करते हैं.
पड़ोसी राज्य ओडिशा में हॉकी के चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन किया जाता है. लगातार 2-2 हॉकी वर्ल्ड कप का आयोजन किया जा रहा है (पहला 2019 और दूसरा 2023 में). वहीं दूसरी तरफ बिहार में कई सालों से स्टेट चैंपियनशिप क्या हॉकी के लिए जिला लेवल पर भी टूर्नामेंट का नियमित आयोजन नहीं हो पाया है.
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राष्ट्रीय खेल हॉकी को लेकर सरकार की संजीदगी का पता इस बात से भी आप लगा सकते हैं कि सरकारी स्कूलों के सीनियर सेकेंडरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को यह तक नहीं मालूम कि हॉकी कैसे खेली जाती है. पटना मिलर हाई स्कूल में पढ़ने वाले दसवीं के छात्र रॉकी कुमार ने कहा कि उन्होंने कभी हॉकी नहीं खेला. बस वह इतना जानते हैं कि यह हमारा राष्ट्रीय खेल है.
'स्कूल की तरफ से कभी हॉकी का कोई मैच नहीं कराया गया है. बस एक बार टीवी पर थोड़े समय के लिए हॉकी का मैच देखा है. लेकिन कम समय देखने की वजह से हम समझ नहीं पाए कि खिलाड़ी कैसे खेल रहे हैं. खेल में स्कोर कैसे बनाया जाता है यह भी नहीं पता'- रॉकी कुमार, छात्र, मिलर हाई स्कूल पटना
'जानते हैं कि हॉकी एक खेल है. जिसमें 11 खिलाड़ी खेलते हैं. खिलाड़ियों के हाथ में एक डंडा होता है और एक छोटे से बॉल से वह खेलते हैं, कैसे खेला जाता है इसकी जानकारी नहीं है. स्कूल में भी आज तक उन्हें हॉकी नहीं खेलाया गया है.' - आकाश कुमार, छात्र, राम लखन सिंह हाई स्कूल पटना
इस सिलसिले में बिहार मेंस प्लेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री खेल और खिलाड़ियों को प्रमोट करने की बात करते हैं. सभी सांसदों से अपील करते हैं कि वह अपने सांसद निधि से खेल और खेल के मैदान को डेवलप करें. बिहार में 40 में से 39 सांसद प्रधानमंत्री की पार्टी के हैं. लेकिन स्थिति यह है कि खेल को लेकर जो भी केंद्रीय योजनाएं हैं, वह बिहार में धरातल पर नहीं उतर पा रही है.
'प्रदेश में सरकार खेल के विकास को लेकर जो भी बातें करती है वह सरासर झूठी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगभग 12 वर्ष पूर्व हॉकी के लिए एस्ट्रोटर्फ मैदान बनाने की घोषणा की. शिलान्यास भी हो गया, लेकिन आज तक मैदान बनकर तैयार नहीं हुआ, भारतीय हॉकी में बिहार के खिलाड़ियों का काफी योगदान रहा है. यह प्रदेश के लिए काफी शर्मनाक स्थिति है कि राष्ट्रीय खेल के लिए भी कोई राष्ट्रीय स्तर का मैदान नहीं है'- मृत्युंजय तिवारी, अध्यक्ष, बिहार मेंस प्लेयर एसोसिएशन
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मृत्युंजय तिवारी ने ये भी कहा कि आगामी 27 सितंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर बिहार के खिलाड़ियों के साथ एकदिवसीय धरना प्रदर्शन करेंगे. जिसके माध्यम से वह केंद्र सरकार का ध्यान बिहार में खेल के हालात पर आकृष्ट कराएंगे.
हालांकि कहना गलत नहीं होगा कि बिहार में सरकार चाहे जिस पार्टी की रही हो. खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने की रफ्तार हमेशा धीमी रही. फिर भी बिहार के खिलाड़ियों की ख्याति कोई कम नहीं हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार के खिलाड़ियों ने बड़ा नाम कमाया है. अगर खिलाड़ियों को सरकारी मदद मिलती रहे, तो बिहार भी खेल के मैदान में बाजी मारने में पीछे नहीं रहेगा.