पटना: पटना के पीएमसीएच (PMCH) में एचआईवी (HIV) मरीजों के लिए एआरटी (Anti Retroviral Therapy) सेंटर है मगर यहां चिकित्सकों की भारी कमी है. इस वजह से एचआईवी पीड़ित मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पीएमसीएच में एचआईवी मरीजों की सुविधा के लिए एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) सेंटर है. यहां काफी संख्या में एचआईवी के मरीज निशुल्क दवा और चिकित्सीय परामर्श के लिए हर महीने आते हैं. महीने भर की अपनी दवा की खुराक के साथ पंद्रह 100 रुपये की सहायता राशि ही प्राप्त कर जाते हैं.
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प्रतिदिन यहां एआरटी सेंटर में 150 से 200 की संख्या में एचआईवी के मरीज पहुंचते हैं. ऐसे में सेंटर में चिकित्सकों की कमी की वजह से कई बार ऐसा होता है कि सुबह से मरीज डॉक्टर से दिखाने के लिए लाइन में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करते रह जाते हैं. शाम हो जाती है लेकिन बारी नहीं आती है. मरीज को फिर अगले दिन का नंबर मिलता है और वह अगले दिन दिखा पाते हैं.
बताते चलें कि पीएमसीएच के एआरटी सेंटर में शिक्षकों के 3 पद स्वीकृत हैं. इस पर फिलहाल अभी एक चिकित्सक कार्यरत हैं. 2 चिकित्सकों के पद खाली हैं. पीएमसीएच में डॉ. मुकुल चौबे एकमात्र डॉक्टर हैं जो एचआईवी मरीजों का चेकअप करते हैं. ऐसे में प्रतिदिन डेढ़ सौ से 200 मरीज दिखाने के लिए पहुंचते हैं जिसमें 5 से 10 नए मरीज होते हैं. ऐसे में सभी मरीजों को देखने में काफी समय लग जाता है. डॉक्टर सुबह 9:00 बजे से चेकअप शुरू करते हैं तो शाम 5:00 बजे तक वह मरीजों की इलाज करते रह जाते हैं और कई बार ऐसा होता है कि वह सभी मरीजों का चेकअप भी नहीं कर पाते.
बताते चलें कि एचआईवी एक गुप्त बीमारी है ऐसे में इस बीमारी के मरीज अपने घर से काफी दूर के सेंटर से अपने लिए दवाइयां खरीदना और डॉक्टर से दिखाना पसंद करते हैं. ऐसे में पीएमसीएच में बिहार के सुदूर कोने से एचआईवी के मरीज पहुंचते हैं और अस्पताल में चिकित्सक की कमी की वजह से इन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है. समस्तीपुर से मासिक दवा और रूटीन चेकअप के लिए पीएमसीएच पहुंचे एचआईवी मरीज बिरजू शाह (काल्पनिक नाम) ने बताया कि वे सुबह 7:00 बजे से दिखाने के लिए एआरटी सेंटर में लाइन लगाए हुए थे. 3:00 बजे उम्मीद जगी कि अब उनका नंबर आ जाएगा क्योंकि उनके आगे मात्र 4 मरीज ही थे.
बताते चलें कि पीएमसीएच के एआरटी सेंटर में मैन पावर की घोर कमी है. यहां तीन चिकित्सकों के कार्य के बोझ को एक चिकित्सक ही संभाल रहे हैं. वहीं, सेंटर में एक भी नर्सिंग स्टाफ नहीं है और ना ही कोई फार्मासिस्ट है. सेंटर में चार काउंसलर हैं जो एचआईवी मरीजों की नियमित काउंसलिंग करते हैं. सेंटर में नर्सिंग स्टाफ की कमी होने की वजह से काउंसलर ही नर्सिंग स्टाफ और फार्मासिस्ट का काम करते हैं. एचआईवी मरीजों को मासिक दवा का वितरण हो या उनके लिए नर्सिंग की जरूरत, सभी काम काउंसलर ही बारी-बारी से किया करते हैं.
प्रतिदिन दो काउंसलरों की ड्यूटी काउंसलिंग से बदलकर ड्रग सेंटर में और नर्सिंग के लिए लगा दी जाती है. हाल ही में एक फार्मासिस्ट की सेंटर पर नियुक्ति हुई है मगर उसने अब तक योगदान नहीं दिया है. सेंटर में सभी प्रकार के मैन पावर की कमी होने की वजह से एचआईवी मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. बताते चलें कि 2 वर्ष पूर्व इस सेंटर पर दो डॉक्टर तैनात थे जिसके बाद एक चिकित्सक ने त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद 2 वर्षों से एआरटी सेंटर चिकित्सकों की कमी की समस्या झेल रहा है.
एआरटी सेंटर के एक कर्मी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि कोरोना के कारण काफी संख्या में एचआईवी मरीज अपनी दवा का रेगुलर डोज नहीं ले पाए हैं. कई दिन उनकी दवाइयां छूट गई हैं. कोरोना संक्रमण की पहली लहर में यह समस्या अधिक थी. परिवहन की सुविधा नहीं होने से मरीज सेंटर पर नहीं पहुंच पाए और दवा नहीं ले पाए थे.
इस वजह से कई मरीजों की तबीयत भी काफी बिगड़ गई. मरीजों की cd4 काउंट काफी नीचे आ गई. ऐसे मरीजों की संख्या लगभग 50 फीसदी थी. कोरोना की दूसरी लहर में कई एनजीओ जो एचआईवी के लिए काम करते हैं, उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से मरीजों को घर तक दवा उपलब्ध कराये. दवा पहुंचाने के बाद मरीज के एआरटी बुक में इसकी एंट्री भी की. उन्होंने बताया कि एआरटी सेंटर में मैन पावर की कमी के कारण जितने भी यहां कर्मी हैं, उन पर काम का बोझ ज्यादा है. मरीजों को भी काफी परेशानी होती है.