हैदराबाद: लिंग के आधार पर जंगल और उसके संरक्षण के लिए डिजिटल सर्विलांस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल और महिलाओं द्वारा विकसित किए गए जेंडर-एनवायरनमेंट संबंधों पर रिसर्च कर रही कैम्ब्रिज के एक स्कॉलर त्रिशांत सिमलाई को महिलाओं ने इंटरव्यू दिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि वे जंगल में स्वतंत्र महसूस करती हैं.
अध्ययन के लेखक के अनुसार उसने भारत में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) के जंगलों की लिंग आधारित प्रकृति और उनके विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचों को प्रदर्शित किया. उसने यह भी बताया कि CTR के वन क्षेत्रों का उपयोग महिलाएं विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक और आजीविका आवश्यकताओं के लिए कैसे करती हैं.
मॉनिटरिंग के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
वन्यजीवों और प्राकृतिक आवासों की मॉनिटरिंग करने और संरक्षित प्राकृतिक क्षेत्रों पर नजर रखने के लिए संरक्षण विज्ञान में रिमोटली कैमरा ट्रैप, साउंड रिकॉर्डर और ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से किया जा रहा है.
उत्तराखंड में CTR का अध्ययन करने वाले कैम्ब्रिज के रिसर्चर्स ने पाया कि स्थानीय सरकार और पुरुष ग्रामीणों द्वारा महिलाओं की सहमति के बिना उन पर नजर रखने के लिए जानबूझकर इन तकनीकों का दुरुपयोग किया जा रहा है. उन्होंने यह भी पाया कि वन्यजीव निगरानी तकनीकों का इस्तेमाल महिलाओं को डराने और उन पर जासूसी करने के लिए किया जा रहा था.
क्या है स्टडी?
जेंडर बेस्ड फॉरेस्ट: डिजिटल सर्विलांस टेक्नोलॉजी फॉर कंजर्वेशन एंड एनवायरेमेंट रिलेशनशिप नामक की इस स्टडी को पर्यावरण और प्लानिंग मैगजीन में पब्लिश किया गया था. अध्ययन के लेखक कैम्ब्रिज के रिसर्चर त्रिशांत सिमलाई ने 14 महीने में उत्तरी भारत में राष्ट्रीय उद्यान के आसपास रहने वाले 270 स्थानीय लोगों का इंटरव्यू किया था. इंटरव्यू देने वाली मुख्य रूप से आस-पास के गांवों की महिलाएं थीं.
रिपोर्ट से पता चला कि कैसे राष्ट्रीय उद्यान में वन रेंजर जानबूझकर स्थानीय महिलाओं को जंगल से बाहर निकालने के लिए उनके ऊपर ड्रोन उड़ाते हैं और उन्हें प्राकृतिक संसाधनों को इकट्ठा करने से रोकते हैं, जबकि ऐसा करना उनका कानूनी अधिकार है.
महिलाओं की कमजोरी
स्टडी करने वाली सिमलाई ने कहा कि महिलाएं जो पहले अपने पुरुष-प्रधान गांवों से दूर जंगल में शरण लेती थीं, कैमरे से उनकी निगरानी की जा रही है, जिससे वह बाधित महसूस करती हैं, इसलिए वे बहुत धीरे से बात करती हैं और गाती हैं. इससे हाथियों और बाघों जैसे संभावित खतरनाक वन्यजीवों के साथ अचानक मुठभेड़ की संभावना बढ़ जाती है. रिसर्चर ने जिस महिला का साक्षात्कार लिया, वह बाद में बाघ के हमले में मारी गई.
अध्ययन में जानबूझकर ह्यूमन मॉनिटरिंग और डराने-धमकाने की सबसे खराब स्थिति का पता चलता है, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि कई अन्य स्थानों पर - यहां तक कि यूके के राष्ट्रीय उद्यानों में भी-लोगों को अनजाने में वाइल्डलाइफ मॉनिटरिंग डिवाइस के जरिए उनकी जानकारी के बिना उन्हें रिकॉर्ड किया जा रहा है.
नकारात्मक प्रभाव
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सोशल साइंस डिपार्टमेंट में शोधकर्ता और रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका सिमलाई ने कहा कि किसी को भी यह एहसास नहीं हो सकता था कि स्तनधारियों की निगरानी के लिए भारतीय जंगल में लगाए गए कैमरा ट्रैप वास्तव में इन स्थानों का उपयोग करने वाली स्थानीय महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के कंजर्वेशन लीडरशिप प्रोग्राम के डायरेक्टर प्रोफेसर क्रिस सैंडब्रुक ने कहा कि इन निष्कर्षों ने संरक्षण समुदाय में काफी हलचल मचा दी है. वन्यजीवों की निगरानी के लिए इन तकनीकों का उपयोग करना परियोजनाओं के लिए बहुत आम बात है, लेकिन यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि हमें वास्तव में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे अनजाने में नुकसान न पहुंचाए.
उन्होंने आगे कहा, "सर्विलांस टेक्नोलॉजी जो जानवरों पर नजर रखने के लिए होती हैं, उनका इस्तेमाल आसानी से लोगों पर नजर रखने के लिए किया जा सकता है. संरक्षण के कई महत्वपूर्ण क्षेत्र मानव उपयोग के क्षेत्रों से ओवरलैप होते हैं. शोधकर्ता संरक्षणवादियों से रिमोट मॉनिटरिंग टेक्नोलॉजी के उपयोग के सामाजिक निहितार्थों के बारे में सावधानी से सोचने का आह्वान करते हैं और कहते हैं कि क्या सर्वे जैसे कम आक्रामक तरीकों से उन्हें आवश्यक जानकारी मिल सकती है.
'धमकी और अपमान'
जलाऊ लकड़ी और जड़ी-बूटियां इकट्ठा करने से लेकर पारंपरिक गीतों के जरिए जीवन की मुश्किलें साझा करने तक. भारत के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पास रहने वाली महिलाएं जंगल का रोजाना ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करती हैं, जो उनके जीवन के लिए अहम हैं.
इस ग्रामीण क्षेत्र में घरेलू हिंसा और शराबखोरी व्यापक समस्याएं हैं और कई महिलाएं मुश्किल घरेलू परिस्थितियों से बचने के लिए लंबे समय तक जंगल में बिताती हैं. एक अन्य स्थानीय निवासी महिला ने कहा, "महिलाएं जंगल में आजाद महसूस करती हैं. उन्हें अपने ससुर की घूरती निगाहों को बर्दाश्त नहीं करना पड़ता और अपने पतियों के ताने और हिंसा को सहना नहीं पड़ता."
इंटरव्यू में शामिल एक अन्य महिला ने कहा, जब जंगल में कैमरे होते हैं, तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ गलत कर रही हूं या जंगल से कुछ चोरी कर रही हूं, यहां तक कि जब मैं सूखी लकड़ी उठा रही होती हूं तब भी.
सिमलाई ने महिलाओं के हवाले से कहा कि वन्यजीव निगरानी परियोजनाओं की आड़ में इस्तेमाल की गई नई तकनीकों का इस्तेमाल उन्हें डराने और उन पर नियंत्रण करने के लिए किया जा रहा है.
महिलाों का उत्पीड़न
सिमलाई ने कहा, "जंगल में शौचालय जाती एक महिला की तस्वीर - जिसे कथित तौर पर वन्यजीव निगरानी के लिए लगाए गए कैमरा ट्रैप में कैद किया गया था - उसे स्थानीय फेसबुक और वॉट्सऐप ग्रुप पर जानबूझकर उत्पीड़न के तौर पर प्रसारित किया गया." इस घटना के बाद, ग्रामीणों ने हर कैमरा ट्रैप को तोड़ दिया और आग लगा दी. एक ग्रामीण ने कहा कि हमारे गांव की एक बेटी को इस तरह बेशर्मी से अपमानित किया गया.
इंटरव्यू के दौरान एक उच्च जाति के वन रक्षक ने कहा कि इस गांव की महिलाएं मुख्य रूप से जलाऊ लकड़ी या घास के लिए जंगल में नहीं बल्कि गलत काम के लिए जाती हैं, वे बहुत चालाक हैं.
वहीं, स्थानीय सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि सीटीआर के वन प्रशासन का हमारे गांव के साथ लंबे समय से संघर्ष चल रहा है, हम गरीब हैं और हमारे पास बहुत कम राजनीतिक शक्ति है, अगर महिला हाशिए पर पड़ी जाति समूह से नहीं होती तो वे ऐसा कभी नहीं करते.
एक महिलाओं ने कहा कि हम कैमरे के सामने नहीं चल सकते या अपनी कुर्तियों को घुटनों से ऊपर करके क्षेत्र में नहीं बैठ सकते, हमें डर है कि हमारी तस्वीरें खींची जा सकती हैं या गलत तरीके से रिकॉर्ड किया जा सकता है.
'शांति' क्यों खतरनाक है?
सिमलाई ने कहा, "मैंने पाया कि स्थानीय महिलाएं जंगल में साथ काम करते हुए मजबूत बंधन बनाती हैं और वे हाथियों और बाघों के हमलों को रोकने के लिए जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करते समय गाती हैं. जब वे कैमरा ट्रैप देखती हैं तो वे खुद को रोक लेती हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता होता कि कौन उन्हें देख रहा है या सुन रहा है - और परिणामस्वरूप वे अलग तरह से व्यवहार करती हैं - अक्सर बहुत शांत रहती हैं, जो उन्हें खतरे में डाल देता है."
एक स्थानीय निवासी महिला ने कहा, "दुर्घटनाएं तब होती हैं जब बाघ हमारी उपस्थिति से आश्चर्यचकित हो जाते हैं, हम जंगल में प्रवेश करने से पहले और जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करते समय जोर से गाते हैं, ताकि उन्हें पता चले कि हम यहां हैं."
एक अन्य वन रक्षक ने दावा किया कि ये महिलाएं अपने गीतों के माध्यम से हमें नियमित रूप से चिढ़ाती हैं. दूसरे दिन गश्त के दौरान हम इन महिलाओं से मिले जो पहले न्यौली (भक्ति गीत) गा रही थीं, जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, उन्होंने हम वन रक्षकों पर व्यंग्यात्मक गीत गाना शुरू कर दिया.
उत्तरी भारत जैसे स्थानों में, स्थानीय महिलाओं की पहचान जंगल के भीतर उनकी दैनिक गतिविधियों और सामाजिक भूमिकाओं से निकटता से जुड़ी हुई है. अध्ययन में कहा गया है कि स्थानीय महिलाओं द्वारा वनों का उपयोग करने के विभिन्न तरीकों को समझना प्रभावी वन प्रबंधन रणनीतियों के लिए महत्वपूर्ण है.
वन निभाग ने किया कहा?
वहीं, स्टडी सामने आने के बाद उत्तराखंड प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) आर के मिश्रा ने ईटीवी भारत से कहा, "यह मामला मेरे संज्ञान में है. यह विचलित करने वाली चीज है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे सिस्टम में किसी ने ऐसा किया होगा. हम ग्रामीणों का सम्मान करते हैं, जो अलग-अलग कामों के लिए जंगल में जाते हैं. यह दुर्भागपूर्ण घटना है."
उन्होंने कहा कि यह सर्विलांस डिवाइस जंगल में क्राइम को रोकने के लिए लगाए जाना जरूरी है. हमारी मंशा किसी की निजता की बात करना नहीं है. हमने इस मामले को गंभीरता से लिया है. हम मामले की जांच कर रहे हैं. इस मामले में रिसर्चर्स की भी जांच की जाएगी. गहम गांव वालों को भी भरोसे में भी लेंगे.
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