पटना: बिहार में 2 सीटों पर हो रहे विधानसभा के उपचुनाव (Bihar By Election) में युवा राजनीति का जो रंग दिख रहा है उससे एक बात तो साफ है कि बिहार की राजनीति ने अब दूसरे अध्याय पर कुछ न कुछ लिखना शुरू कर दिया है. युवा राजनीति को दिशा दे रहे हैं. युवाओं से लड़ने के लिए वर्तमान सरकार को तैयार रहना होगा. यही वजह है कि बिहार में दिशा और नेतृत्व को लेकर नीतीश कुमार की ही पार्टी सबसे पुरानी रह गई है.
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अब दुहाई देने के लिए, बताने के लिए, सियासत में उत्तर देने के लिए और राजनीति में जवाबदेही का उत्तरदायित्व खड़ा करने के लिए नीतीश कुमार को उन्हीं यूथ ब्रिगेड से लड़ना है जिन लोगों ने बिहार में अपनी सियासी मजबूती के लिए लड़ाई शुरू कर दी है. यह सही बात है कि बिहार के कई नेता छात्र राजनीति से उभर कर सामने आए थे, लेकिन बिहार के कई दलों ने छात्रों को राजनीति में उभरने ही नहीं दिया. यही वजह है कि जो युवा बाहर के हैं वे राजनीति में उभरकर आ रहे हैं. यह दिगर बात है कि राजद, लोजपा और दूसरे राजनीतिक दल जो बिहार से हैं वे अपने राजनीतिक वजूद के लिए संघर्ष भी कर रहे हैं और चल रही सरकार के लिए चुनौती भी पेश कर रहे हैं.
तेजस्वी ने संभाल ली राजद की कमान
बिहार में तेजस्वी यादव ने राजद की कमान संभाल ली है. हर नीति, हर व्यवस्था, हर बयान, राष्ट्रीय जनता दल का तेजस्वी यादव के स्वरूप के साथ होता है. परिवार में चल रहे विभेद के बाद भी तेजस्वी यादव पार्टी को दिशा दे रहे हैं. पार्टी की नीतियां बना रहे हैं. पार्टी का टिकट जारी कर रहे हैं. पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं. पार्टी को खड़ा करने के लिए एक परिपक्व नेता के तौर पर जितनी सियासत करनी है सारा तेजस्वी यादव के जिम्मे है. उनसे लड़ने के लिए अगर जदयू में कोई है तो नीतीश कुमार और बाकी लोग सिर्फ बयान देते हैं. यही वजह है कि राजद में तेजस्वी यादव का वजूद और सियासत में तेजस्वी यादव का रंग अगर जदयू के नजरिए से देखा जाए तो लड़ने के लिए भी नीतीश हैं और उत्तर देने के लिए भी नीतीश हैं. राजद यूथ ब्रिगेड की सियासत में अब आगे बढ़ चुका है.
38% है युवा वोटरों की संख्या
बात दूसरे राजनीतिक दलों की करें तो कांग्रेस ने जिन 3 लोगों को बिहार की राजनीति के लिए 21 अक्टूबर को उतारा है उससे साफ है कि कांग्रेस की मंशा क्या है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है बिहार में 39 साल तक के वोटरों की संख्या लगभग 38% है. अब युवा राजनीति को दिशा दे रहे हैं या युवाओं को राजनीति युवा के माध्यम से ही दिशा दे सकती है. यह सभी राजनीतिक दल बेहतर तरीके से सोच रहे हैं. राजद से कांग्रेस का विरोध भले हो गया है, लेकिन युवाओं की राजनीति में कांग्रेस राजद से कहीं पीछे नहीं है. रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी रहे चिराग पासवान अपनी पार्टी के टूट जाने के बाद भी चुनावी मैदान में हैं और लोजपा को पूरे युवा दमखम के साथ खड़ा कर रहे हैं.
प्लुरल्स पार्टी की पुष्पम प्रिया भी काफी युवा हैं और बिहार में युवा राजनीति के लिए लड़ाई लड़ रही हैं. मुद्दों की भी और विकास की भी. अगर बात पशुपति वाले लोजपा की कर लें तो वहां की रणनीति प्रिंस राज बना रहे हैं. क्योंकि 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में पशुपति वाली लोजपा जदयू के साथ खड़ी है. ऐसे में टिकट की न तो मारामारी है न पक्ष विपक्ष की राजनीति. लेकिन नीतीश के साथ खड़ा होकर एक चीज तो उन्होंने साफ किया है कि भले ही रामविलास पासवान की पशुपति पारस वाली लोजपा हो लेकिन इसके लिए नीतियां देने का काम प्रिंस राज ही कर रहे हैं. सरकार के साथ जो लोग शामिल हैं उसमें हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षक के तौर पर जीतन राम मांझी भले हैं, लेकिन उनके बड़े बेटे युवा राजनीति के साथ जुड़े हुए हैं. अब बात वीआईपी कि कर लें तो वहां भी मुकेश सहनी युवा राजनीति का ही चेहरा हैं. ये तमाम लोग यूथ ब्रिगेड बिहार की सियासत में एक नया समीकरण खड़ा किए हुए हैं.
चुनावी मैदान में नीतीश कुमार को उतरना होगा
बात जदयू की करें तो चाहे राजद के तेजस्वी यादव हो, कांग्रेस के कन्हैया हो, हार्दिक पटेल हो या फिर चिराग पासवान की बात हो, पुष्पम प्रिया की बात हो, पप्पू यादव, रंजीता रंजन की बात हो या फिर तमाम वैसे नेताओं की जो युवा राजनीति को दिशा दे रहे हैं. निश्चित तौर पर जदयू के लिए चुनौती का विषय है. क्योंकि इन सभी नौजवानों का उत्तर देने के लिए या तो चुनावी मैदान में नीतीश कुमार को उतरना होगा या फिर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को. युवाओं का उत्तर देने के लिए जदयू का युवा ब्रिगेड इतना मजबूत नहीं है कि सिर्फ उसके बूते नीतीश कुमार चुनावी वैतरणी पार लगा लें.
क्योंकि अगर तेजस्वी यादव से लड़ना है तो नीतीश कुमार को जाना होगा. चिराग से लड़ना है तो नीतीश कुमार को जाना होगा. कन्हैया से लड़ना है तो नीतीश कुमार को जाना होगा. यूथ ब्रिगेड से लड़ना है तो नीतीश कुमार को जाना होगा. क्योंकि नीतीश कुमार कि जदयू में यूथ ब्रिगेड है ही नहीं और ना ही उन्हें इस तरह का प्रशिक्षण भी दिया गया है कि अगर यह युवा राजनीति चुनावी मोर्चे पर सामने खड़ी होती है तो उनका जवाब देने के लिए कौन जाएगा. समकालीन राजनीति के जो भी नेता हैं उनका जवाब देना नीतीश कुमार के लिए निश्चित तौर पर समकालीन राजनीति का ही पर्याय होता, लेकिन आज की राजनीति पर नीतीश कुमार का जवाब देना न तो पर्याय की राजनीति का उत्तर होगा और ना ही यह उत्तर उस राजनीति का पर्याय ही. लेकिन विकास के मुद्दे की जो लकीर नीतीश कुमार ने खींची है सवाल उसी पर खड़ा हो रहा है. तो संभव है जवाब तो नीतीश को ही देना होगा.
जदयू खड़ा नहीं कर पाया युवा राजनीति का फार्मूला
अब एक राजनीति यहां से भी शुरू हो रही है कि बिहार की इस युवा ब्रिगेड से नीतीश कुमार का कुनबा कैसे निपटेगा और कब तक निपटेगा. यह तो राजनीति करने वाले नेता ही जाने, लेकिन एक बात तो साफ है कि 2 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में दूसरे राजनीतिक दलों ने युवाओं की जो फौज उतारी है उससे लड़ने के लिए जदयू युवा राजनीति का वह फार्मूला नहीं खड़ा कर पाया है. यह तो बिल्कुल तय है और बिहार का नया यूथ ब्रिगेड निश्चित तौर पर बदलाव की कोई न कोई कहानी आज नहीं कल तो लिखेगा और अगर इससे लड़ना है तो नीतीश कुमार को सोचना होगा कि जदयू का कौन सा यूथ ब्रिगेड सामने आएगा या फिर जदयू की प्रौढ़ और परिपक्व राजनीति ही जवाब देगी जिसे देने के लिए खुद नीतीश कुमार हैं. अब बिहार है, जदयू है और नीतीश कुमार हैं.
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