पटना: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने फरवरी 2021 में एक डाटा रिलीज किया है. जिसके मुताबिक पूरे देश में बिहार बेरोजगारी में 11.5% के साथ 7वें स्थान पर है. बिहार में 95% लड़कियां ऐसी हैं, जिनके पास नौकरी नहीं है.
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बिहार में 95% लड़कियां बेरोजगार
ईटीवी भारत ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि सरकार की इतनी योजनाओं के बावजूद बिहार की लड़कियां और महिलाओं के पास रोजगार या नौकरी नहीं है. इसके लिए हमने पटना के विभिन्न इलाकों की लड़कियों से बात की तो उन्होंने बताया कि फैमिली प्रॉब्लम उनकी सबसे बड़ी समस्या है. जब हम इंटर की पढ़ाई कर रहे होते हैं या ग्रेजुएशन में दाखिला ले रहे होते हैं, उसी समय से फैमिली प्रेशर बनने लगता है.
लड़कियों पर परिवार का प्रेशर
बिहार की ज्यादातर लड़कियों के साथ यह समस्या होती है. घर से शादी का प्रेशर होने लगता है. लोग कहते हैं कि शादी कर लो उसके बाद जो करना होगा करना. वहीं, शिक्षा में भी काफी समस्या होती है, अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती है. लड़कियां यहां सिर्फ 12वीं और 10वीं इसलिए करते हैं, क्योंकि पैसे मिलते हैं. परिवार वाले भी इसलिए पढ़ाते हैं. लोग भी काफी कुछ कहते हैं, कोई ये नहीं कहता कि लड़की है महिला है तो इसे आगे बढ़ाओ बेहतर करेगी.
पारिवारिक समस्याएं बनी रोड़ा
वहीं, कुछ छात्राओं ने बताया कि बिहार के 90% लड़कियों के साथ फैमिली की समस्या होती है. 12वीं होते ही शादी की बात शुरू हो जाती है. लड़कियों से ये नहीं पूछा जाता कि वह आगे क्या करना चाहती हैं, क्या बनना चाहती हैं. वहीं, कुछ ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या लोगों की मानसिकता है. लोग ये सोचते हैं कि लड़की है तो सिर्फ घर का काम करेगी, घर पर रहेगी, शादी के बाद पढ़कर या नौकरी करके क्या करेगी.
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सरकारी जॉब है तो अच्छा है..
वहीं, अगर सरकारी जॉब लग जाता है, तब तक ठीक रहता है. लेकिन प्राइवेट में कोई जाने नहीं देता. लोग सोचते हैं कि वहां पर पुरुषों की संख्या अधिक होती है. वहां पर किस तरीके से काम होगा. इस वजह से भी काफी लोग लड़कियों को या महिलाओं को काम पर नहीं जाने देते. अगर कुछ लड़कियां या महिलाएं काम भी करती हैं, तो उन्हें समाज में ताना सुनने को मिलता है.
लोग बदले अपनी मानसिकता
अगर लड़कियों को बेहतर शिक्षा मिलने लगे तो वह खुद आगे पढ़ना चाहेंगे और अगर लोगों की मानसिकता बदले और लोग लड़कियों को सपोर्ट करें, तो वह और बेहतर कर सकती हैं. आज के समय में हर क्षेत्र में महिलाएं और लड़कियां काफी बेहतर कर रही हैं. इसलिए अगर समाज अपनी सोच बदल ले और पढ़ाई का स्तर बेहतर हो जाए, तो काफी लाभ मिलेगा.
''ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो इन हायर एजुकेशन 18 वर्ष की उम्र से लेकर 23 वर्ष की उम्र तक देखा जाता है. जिसमें ग्रेजुएशन करने वाले लोगों की संख्या मात्र 13.6% है. बात करें लड़कियों की तो ग्रेजुएशन करने वाली लड़कियां 40 से 45% हैं. वहीं, अगर प्राइमरी और मिडिल स्कूल में 30 से 35%लड़कियां स्कूल आती हैं. हाई स्कूल में तो महज 20% लड़कियां ही सरकारी स्कूल में पढ़ने आती हैं. वहीं, इंटरमीडिएट में तो महज 3% लड़कियां ही होती हैं''- विद्यार्थी विकास, इकोनॉमिस्ट
बिहार में बेहतर शिक्षा की कमी
बिहार की लड़कियों और महिलाओं के पास रोजगार और नौकरी इसलिए नहीं है, क्योंकि यहां पर बेहतर शिक्षा नहीं है. कहीं ना कहीं हमारे पास बेहतर शिक्षा की कमी है. सरकार की विभिन्न योजनाएं तो जरूर चल रही हैं, लेकिन धरातल पर बेहतर तरीके से योजनाएं उतर नहीं पा रही है. अगर बेहतर शिक्षा मिलेगी तो सब कुछ खुद ही ठीक हो जाएगा. महिलाएं पढ़ेंगी तो बेहतर करेंगी और खुद उन्हें रोजगार मिलेगा.
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शिक्षा का स्तर सुधारने की जरूरत
दूसरा सबसे बड़ा कारण सामाजिक सोच और वातावरण है. लड़कियों पर फैमिली प्रेशर काफी अधिक होता है. समाज की सोच है कि लड़कियों को पढ़ लिखकर क्या करना है, शादी ही तो करनी है, इसे हम समाज की कुरीतियां कह सकते हैं. जब तक यह दूर नहीं होगी तब तक ये आंकड़ा इसी प्रकार रहेगा. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह सबसे पहले शिक्षा के स्तर को सुधारें. जो योजनाएं चल रही है, उसे धरातल पर ठीक तरीके से उतारे, तभी जाकर ये आंकड़ा कम हो सकता है.
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