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11 अगस्त की क्रांति: विधानसभा भवन पर झंडा फहराने की कोशिश में शहीद हुए थे रामानंद सिंह

9 अगस्त को अगस्त क्रांति (August Kranti) की रूपरेखा तैयार हुई और निर्णय लिया गया कि 11 अगस्त 1942 को प्रदेश के सभी सरकारी दफ्तरों पर आजाद भारत का झंडा लहराया जाएगा. झंडा फहराने के लिए 11 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया था क्योंकि इसी दिन खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी.

indian freedom fighters
अगस्त क्रांति
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Published : Aug 11, 2021, 5:54 PM IST

पटना: भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने देश की युवा शक्ति का आह्वान कर 'अगस्त क्रांति' का बिगुल फूंका था. गांधीजी की एक आवाज पर 1942 में बिहार के 7 सपूत अंग्रेजों से लोहा लेने और पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने के लिए निकल पड़े. इन्हीं में से एक थे रामानंद सिंह. रामानंद सिंह (Ramanand Singh) ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए खेल को हथियार बनाया.

यह भी पढ़ें- मुजफ्फरपुर : 'एकबार विदाई दे मां.' नारों से गूंजा खुदीराम बोस केंद्रीय कारावास

पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ मायानंद ने बताया कि रामानंद सिंह उन 7 शहीदों में से थे जो 11 अगस्त के दिन वर्तमान विधानसभा भवन पर झंडा फहराने जा रहे थे. इस दौरान डीएम आर्चर ने गोली चलवा दी थी, जिससे सभी सातों साथी शहीद हो गए थे. दयानंद ने बताया कि रामानंद सिंह फुटबॉल के बेहतरीन खिलाड़ी थे. उनके सभी साथी खिलाड़ी थे. खेल के माध्यम से सभी एकजुट होते थे और आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देते थे.

देखें वीडियो

पंडित रामानंद सिंह राजाराम सेमिनरी स्कूल में पढ़ते थे और कदमकुआं स्थित मैदान में खेल की प्रैक्टिस करते थे. इसी दौरान सभी साथियों को एकजुट कर आजादी के लिए चल रही लड़ाई को लेकर रणनीति तैयार की जाती थी. रामानंद सिंह को साइकिल चलाने का भी काफी शौक था. वह अपने दोस्तों के साथ खूब साइकिलिंग करते थे.

डॉक्टर मायानंद ने बताया कि 9 अगस्त को अगस्त क्रांति की रूपरेखा तैयार हुई. निर्णय लिया गया कि 11 अगस्त 1942 को प्रदेश के सभी सरकारी दफ्तरों पर आजाद भारत का झंडा लहड़ाया जाए. झंडा फहराने के लिए 11 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया था क्योंकि 11 अगस्त को ही खुदीराम बोस (Khudiram Bose) को फांसी दी गई थी. देवीपद चौधरी के नेतृत्व में रामानंद सिंह समेत सातों साथियों ने वर्तमान विधानसभा भवन पर झंडा फहराने का निर्णय लिया था.

सातों क्रांतिकारी दीवार फांदकर विधानसभा भवन में घुसे थे. उनलोगों ने विधानसभा गेट पर आजाद भारत का झंडा फहरा दिया था. विधानसभा भवन पर झंडा फहराने जाते समय तत्कालीन डीएम आर्चर ने इनपर गोली चलाने का आदेश दिया था. सबसे पहले गोली देवीपद चौधरी को लगी. इसके बाद रविंद्र सिंह और रामानंद सिंह को गोली लगी. इसी प्रकार सभी सातों साथियों को गोली लगी और वे मौके पर शहीद हो गए.

"आजादी के बाद कांग्रेस का लंबे समय तक शासन रहा. ऐसे में आजादी का इतिहास सही ढंग से नहीं लिखा गया. कांग्रेस से जुड़े लोग बड़े लोग थे. उन्हीं में से कुछ का इतिहास लिखा गया. स्थानीय स्तर के कई स्वतंत्रता सेनानी के योगदान का इतिहास में उल्लेख नहीं किया गया. अगस्त क्रांति में बिहार में कई जगह झंडा फहराने के दौरान लोग शहीद हुए थे. ऐसे में जरूरी है कि एक बार फिर से इतिहास को व्यापक तौर पर लिखा जाए. बिहार सरकार ने अपने संग्रहालय में अगस्त क्रांति का अभिलेख बनाया है, मगर जरूरी है कि बिहार की शिक्षा में अगस्त क्रांति के इतिहास को जोड़ा जाए ताकि गुमनाम शहीदों के योगदान को लोग याद रख सकें."- डॉक्टर मायानंद, प्रोफेसर, इतिहास विभाग, पटना विश्वविद्यालय

यह भी पढ़ें- पटना के खतरनाक घाटों पर तैनात होंगे सुरक्षाकर्मी, CM नीतीश कुमार ने निरीक्षण कर दिया निर्देश

पटना: भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने देश की युवा शक्ति का आह्वान कर 'अगस्त क्रांति' का बिगुल फूंका था. गांधीजी की एक आवाज पर 1942 में बिहार के 7 सपूत अंग्रेजों से लोहा लेने और पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने के लिए निकल पड़े. इन्हीं में से एक थे रामानंद सिंह. रामानंद सिंह (Ramanand Singh) ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए खेल को हथियार बनाया.

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पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ मायानंद ने बताया कि रामानंद सिंह उन 7 शहीदों में से थे जो 11 अगस्त के दिन वर्तमान विधानसभा भवन पर झंडा फहराने जा रहे थे. इस दौरान डीएम आर्चर ने गोली चलवा दी थी, जिससे सभी सातों साथी शहीद हो गए थे. दयानंद ने बताया कि रामानंद सिंह फुटबॉल के बेहतरीन खिलाड़ी थे. उनके सभी साथी खिलाड़ी थे. खेल के माध्यम से सभी एकजुट होते थे और आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देते थे.

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पंडित रामानंद सिंह राजाराम सेमिनरी स्कूल में पढ़ते थे और कदमकुआं स्थित मैदान में खेल की प्रैक्टिस करते थे. इसी दौरान सभी साथियों को एकजुट कर आजादी के लिए चल रही लड़ाई को लेकर रणनीति तैयार की जाती थी. रामानंद सिंह को साइकिल चलाने का भी काफी शौक था. वह अपने दोस्तों के साथ खूब साइकिलिंग करते थे.

डॉक्टर मायानंद ने बताया कि 9 अगस्त को अगस्त क्रांति की रूपरेखा तैयार हुई. निर्णय लिया गया कि 11 अगस्त 1942 को प्रदेश के सभी सरकारी दफ्तरों पर आजाद भारत का झंडा लहड़ाया जाए. झंडा फहराने के लिए 11 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया था क्योंकि 11 अगस्त को ही खुदीराम बोस (Khudiram Bose) को फांसी दी गई थी. देवीपद चौधरी के नेतृत्व में रामानंद सिंह समेत सातों साथियों ने वर्तमान विधानसभा भवन पर झंडा फहराने का निर्णय लिया था.

सातों क्रांतिकारी दीवार फांदकर विधानसभा भवन में घुसे थे. उनलोगों ने विधानसभा गेट पर आजाद भारत का झंडा फहरा दिया था. विधानसभा भवन पर झंडा फहराने जाते समय तत्कालीन डीएम आर्चर ने इनपर गोली चलाने का आदेश दिया था. सबसे पहले गोली देवीपद चौधरी को लगी. इसके बाद रविंद्र सिंह और रामानंद सिंह को गोली लगी. इसी प्रकार सभी सातों साथियों को गोली लगी और वे मौके पर शहीद हो गए.

"आजादी के बाद कांग्रेस का लंबे समय तक शासन रहा. ऐसे में आजादी का इतिहास सही ढंग से नहीं लिखा गया. कांग्रेस से जुड़े लोग बड़े लोग थे. उन्हीं में से कुछ का इतिहास लिखा गया. स्थानीय स्तर के कई स्वतंत्रता सेनानी के योगदान का इतिहास में उल्लेख नहीं किया गया. अगस्त क्रांति में बिहार में कई जगह झंडा फहराने के दौरान लोग शहीद हुए थे. ऐसे में जरूरी है कि एक बार फिर से इतिहास को व्यापक तौर पर लिखा जाए. बिहार सरकार ने अपने संग्रहालय में अगस्त क्रांति का अभिलेख बनाया है, मगर जरूरी है कि बिहार की शिक्षा में अगस्त क्रांति के इतिहास को जोड़ा जाए ताकि गुमनाम शहीदों के योगदान को लोग याद रख सकें."- डॉक्टर मायानंद, प्रोफेसर, इतिहास विभाग, पटना विश्वविद्यालय

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