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तक्षशिला के समकालीन विवि का मिला था अवशेष, अब तक सरकार नहीं करा सकी विकास

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Published : Feb 15, 2019, 12:33 PM IST

बिहार सरकार की पहल पर 70-80 के दशक में यहां पर तीन बार खुदाई हुई थी, जिसमें 'अग्रहार' मिले थे जो तक्षशिला के समकालीन माना जाता है

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नवादा: जिले के वारसलीगंज प्रखंड के अपसढ़ गांव में 70-80 के दशक में खुदाई के दौरान तक्षशिला के समय के अवशेष मिले थे. दुनिया के सबसे प्राचीन इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिलने के बाद इसके विकास के बातें की गई थी. लेकिन सूबे की सरकार और प्रशासनिक उदासीनता के कारण ऐतिहासिक प्रमाणों को अपने अंदर समेटे हुये यह स्थान धीर-धीरे संकीर्ण होती चली गई.

ये वही तस्वीरें है जहां 1970-80 के दशक में बिहार सरकार के तत्कालीन कला संस्कृति मंत्रालय के निदेशक डॉ. प्रकाश शरण प्रसाद की अगुआई में अपसढ़ में खुदाई की गई थी. इसमें तक्षशिला के समकक्ष अवशेष पाए गए थे. अपसढ़ के ही पास के क्षेत्र शाहपुर से जो प्राचीन मूर्तियां मिलीं उसमें 'अग्रहार' की चर्चा की गई है. डॉ. प्रकाश की माने तो यह तक्षशिला के समकालीन था.

जानकारी देते इतिहासकार

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70-80 के दशक में हुई थी खुदाई
विरासत बचाओ अभियान के बिहार के संयोजक और युवा इतिहासकार अशोक प्रियदर्शी का कहना है कि अपसढ़ एक गांव ही नहीं एक सांस्कृतिक विश्वविद्यालय का अवशेष है. बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना महाराजा विक्रमादित्य ने की था. यहां तक़रीबन हिन्दू धर्म के सभी पीठ की मूर्तियां आपको मिल जाएगी. श्री प्रियदर्शी का भी यही कहना है कि बिहार सरकार की पहल पर 70-80 के दशक में यहां पर तीन बार खुदाई हुई थी, जिसमें 'अग्रहार' मिले थे जो तक्षशिला के समकालीन माना जाता है. इसके अलावा यहां एक वाराह की मूर्ति है जो संभवतः भारत की दूसरी अद्वितीय मूर्ति है. आपको यहां हर घर में प्राचीन मूर्तियां मिल जाएंगी. एक प्रकार से कहा जाए तो अपसढ़ मूर्तियों का संग्रहालय है. ये बात अलग है कि जितना विकास इस इलाके का होना चाहिये था उस तरह से नहीं हो सका.

शिवलिंगों की है बहुतायत
अभी भी अपसढ़ में जहां-तहां काले रंग के शिवलिंग मिल जाएंगे. बताया जाता है कि कुछ वर्ष पहले तक लोग शिवलिंग की संख्या अधिक होने के कारण उसका उपयोग गाय, भैंस या बैल बांधने के उपयोग में लाते थे. फिलहाल शिवलिंग में तो नहीं लेकिन उसके नीचे के हिस्से में अभी भी मवेशी बंधे हुए आप देख सकते है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों सरकार इसके प्रति इतनी उदासीन है.

नवादा: जिले के वारसलीगंज प्रखंड के अपसढ़ गांव में 70-80 के दशक में खुदाई के दौरान तक्षशिला के समय के अवशेष मिले थे. दुनिया के सबसे प्राचीन इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिलने के बाद इसके विकास के बातें की गई थी. लेकिन सूबे की सरकार और प्रशासनिक उदासीनता के कारण ऐतिहासिक प्रमाणों को अपने अंदर समेटे हुये यह स्थान धीर-धीरे संकीर्ण होती चली गई.

ये वही तस्वीरें है जहां 1970-80 के दशक में बिहार सरकार के तत्कालीन कला संस्कृति मंत्रालय के निदेशक डॉ. प्रकाश शरण प्रसाद की अगुआई में अपसढ़ में खुदाई की गई थी. इसमें तक्षशिला के समकक्ष अवशेष पाए गए थे. अपसढ़ के ही पास के क्षेत्र शाहपुर से जो प्राचीन मूर्तियां मिलीं उसमें 'अग्रहार' की चर्चा की गई है. डॉ. प्रकाश की माने तो यह तक्षशिला के समकालीन था.

जानकारी देते इतिहासकार

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70-80 के दशक में हुई थी खुदाई
विरासत बचाओ अभियान के बिहार के संयोजक और युवा इतिहासकार अशोक प्रियदर्शी का कहना है कि अपसढ़ एक गांव ही नहीं एक सांस्कृतिक विश्वविद्यालय का अवशेष है. बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना महाराजा विक्रमादित्य ने की था. यहां तक़रीबन हिन्दू धर्म के सभी पीठ की मूर्तियां आपको मिल जाएगी. श्री प्रियदर्शी का भी यही कहना है कि बिहार सरकार की पहल पर 70-80 के दशक में यहां पर तीन बार खुदाई हुई थी, जिसमें 'अग्रहार' मिले थे जो तक्षशिला के समकालीन माना जाता है. इसके अलावा यहां एक वाराह की मूर्ति है जो संभवतः भारत की दूसरी अद्वितीय मूर्ति है. आपको यहां हर घर में प्राचीन मूर्तियां मिल जाएंगी. एक प्रकार से कहा जाए तो अपसढ़ मूर्तियों का संग्रहालय है. ये बात अलग है कि जितना विकास इस इलाके का होना चाहिये था उस तरह से नहीं हो सका.

शिवलिंगों की है बहुतायत
अभी भी अपसढ़ में जहां-तहां काले रंग के शिवलिंग मिल जाएंगे. बताया जाता है कि कुछ वर्ष पहले तक लोग शिवलिंग की संख्या अधिक होने के कारण उसका उपयोग गाय, भैंस या बैल बांधने के उपयोग में लाते थे. फिलहाल शिवलिंग में तो नहीं लेकिन उसके नीचे के हिस्से में अभी भी मवेशी बंधे हुए आप देख सकते है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों सरकार इसके प्रति इतनी उदासीन है.

Intro:नवादा। जिले के वारसलीगंज प्रखंड अंतर्गत एक अपसढ़ गांव है जहाँ 70-80 के दशक में खुदाई के दौरान तक्षशिला के समय के अवशेष मिले थे। जिसे प्राचीन धार्मिक विश्वविद्यालय के रूप में माना जाता है। लेकिन सूबे की सरकार के उदासीनता के कारण दिन-ब-दिन ऐतिहासिक प्रमाणों को अपने अंदर समेटे यह स्थान धीर-धीरे संकीर्ण होती चली गई।


Body:जी हां, यह वही तस्वीर है जहां 1970-80 के दशक में बिहार सरकार के तत्कालीन कला संस्कृति मंत्रालय के निदेशक डॉ. प्रकाश शरण प्रसाद की अगुआई में अपसढ़ में खुदाई की गई थी जिसमें तक्षशिला के समकक्ष के अवशेष पाए गए थे। अपसढ़ के ही पास के क्षेत्र शाहपुर से जो प्राचीन मूर्तियां मिली उसमें 'अग्रहार' की चर्चा की गई है। डॉ. प्रकाश की माने तो यह तक्षशिला के समकालीन था।

वहीं, विरासत बचाओ अभियान, बिहार के संयोजक और युवा इतिहासकार अशोक प्रियदर्शी का कहना है, अपसढ़ को गांव ही नहीं एक सांस्कृतिक विश्वविद्यालय का अवशेष है। बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय का स्थापना महाराजा विक्रमादित्य ने किया था। यहां तक़रीबन हिन्दू धर्म के सभी पीठ की मूर्तियां आपको मिल जाएगी। श्री प्रियदर्शी का भी यही कहना है कि एक बिहार सरकार के पहल 70-80 के दशक में तीन यहां तीन बार खुदाई हुई थी। जिसमें 'अग्रहार' मिले थे जो तक्षशिला के समकालीन माना जाता है यानी यहां भी नालंदा से पूर्व विश्व विश्वविद्यालय रहे हैं। इसके अलावा यहां एक वराह की मूर्ति है जो संभवतः भारत का दूसरा अद्वितीय मूर्ति है। आपको यहां हर घर में प्राचीन मूर्तियां मिल जाएंगी। एक प्रकार से कहा जाए तो अपसढ़ मूर्तियों का संग्रहालय है। ये बात अलग हैं कि जितनी विकास इसकी होनी चाहिए थी वो नहीं हो सकी जो चिंता का विषय है।

अभी भी अपसढ़ में जहां-तहां काले रंग के शिवलिंग मिल जाएंगे। बताया जाता है कि कुछ वर्ष पहले तक लोग शिवलिंग की संख्या अधिक होने के कारण उसका उपयोग गाय, भैंस या बैल बांधने के उपयोग में लाते थे। फिलहाल शिवलिंग में तो नहीं लेकिन उसके नीचे के हिस्से में अभी भी मवेशी बंधे हुए आप देख सकते है।


Conclusion:सवाल ये उठता है आख़िर क्यों सरकार इसके प्रति इतनी उदासीन है क्या वर्तमान सरकार के मुखिया को अपने गृह क्षेत्र नालंदा लोकप्रियता कम होने की ख़तरा है? यक़ीनन अगर यहां सही ढंग से अतिक्रमण किए घर को हटाकर खुदाई की जाए तो और कई बड़े साक्ष्य मिल सकते हैं।
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