नवादाः घरों की चारदीवारी में सिमट रह रही महिलाएं अब किसी पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहती. वो अब पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है. जिले के वारसलीगंज प्रखंड अंतर्गत मसूदा गांव की महिलाएं बदलाव की कहानी लिख रही है. ये महिलाएं चूड़ी बनाकर उसे खुद ही बेचती है और परिवार को आर्थिक सहयोग दे रही है.
स्वावलंबन बनाने का प्रयास
दरअसल, गांव की मीना देवी ने महिलाओं को स्वावलंबन बनाने के लिए नया प्रयास नाम से एक संस्था की शुरुआत की. अप्रैल 2018 में इसकी शुरुआत कर इन्होंने 90 महिलाओं को संस्था से जोड़ा. फिर 30-30 महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें चूड़ी बनाने का प्रशिक्षण दिया. अब ये महिलाएं न सिर्फ चूड़ियां बना रही है बल्कि खुद ही उसकी मार्केटिंग भी करती है.
लड़कियां भी हो रही है प्ररित
मीना देवी ने बताया कि शुरुआत में काम सीखने के लिए महिलाओं को बुलाना पड़ता था, लेकिन अब महिलाएं खुद आ रही है. इन्हें काम करते देख लड़कियां भी काम सीखने के लिए प्रेरित हो रही है. वो भी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है. मीना देवी बताती हैं कि महिलाओं को घर का काम-काज करने के बाद जो समय मिलता है उस में चूड़ी बनाती है और महीने का 2000-2500 रुपये तक कमा लेती है. कुछ महीलाएं तो 4-5 हजार रूपए भी कमा रही है.
नाबार्ड से मिलता है सहयोग
मीना देवी ने बताया कि काम करने वाली महिलाओं को नाबार्ड की ओर से सहयोग राशि दी जाती है. ताकि महिलाएं चूड़ी बनाने की सामाग्री खरीद सके. संस्था से जुड़ी हर महिला का बैंक खाता खुलवाया गया. जिसमें इन्हें10-25 हजार रूपये तक का सहयोग राशि भी मिला है. वो बताती हैं कि नाबार्ड से मिलने वाली राशि नाकाफी है. यदी इन्हें मिलने वाली सहयोग राशि को बढ़ाकर 50 हजार कर दी जाए तो इनकी आमदनी बढ़ जाएगी.
पूंजी है अभाव
चूड़ी बनाने का काम कर रही कमल देवी ने कहा की उन्हें10 हजार रुपये मिला थे. उस पूंजी से काम शुरू की और 2000 से 2500 रुपये कमा लेती है. वहीं, शांति देवी ने बताया कि हमलोग घर पर निकम्मा बैठे थे. इस संस्था से जुड़कर चूड़ी बनाना सीखे. चूड़ी बनाकर इसे घर-घर घूमकर बेचते हैं. कभी बाजार तो कभी मेले में जाकर भी बेच लेते हैं. उन्होंने कहा की चूड़ी बनाने की सामाग्री मंहगी है. सरकार को चाहिए की सहयोग राशी बढ़ाकर दे. तो हम ज्यादा चूड़ी तैयार कर सकेंगे, जिससे हमारी आमदनी बढ़ जाएगी.