ETV Bharat / state

जल संकट से त्राहिमाम: एक तो तपती गर्मी, ऊपर से बूंद-बूंद पानी को तरसते लोग

एक चापाकल होने से सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए लोगों का हैंडपंप पर जमावड़ा लगा रहता है . खासकर महिलाओं को अधिक परेशानी होती है.

author img

By

Published : May 11, 2019, 12:13 PM IST

पानी के लाइन में लगे लोग

नवादाः बढ़ती गर्मी के साथ जिले में जल संकट की स्थिति भी उत्पन्न होने लगी है. पानी के बगैर लोग त्राहिमाम कर रहे हैं. कई गांव पानी के लिए जद्दोजहद में लगे हुए हैं. बड़े लोगों की जिंदगी तो सबमर्सिबल से कट जाती है. लेकिन उन गरीबों को पानी नसीब नहीं हो रहा, जो दो जून की रोटी के लिए कमाये पैसों से सबमर्सिबल नहीं लगा सकते.

एक ही हैंडपंप से मिलता है पानी
ऐसी ही स्थिति है नारदीगंज प्रखंड के सीतारामपुर गांव की. जहां, लगभग 1 हजार की आबादी पर सिर्फ दो हैंडपंप है. जिनमें से एक ही हैंडपंप काम करता है. उसमें से भी पानी निकालने के लिए काफी कसरत करनी पड़ती है. यह गांव पानी की किल्लत के मामले में टॉप 30 क्रिटीकल गांवों में से एक है. जिला में कार्यरत पीएचईडी के अधिकारी ने बाकायदा इसकी सूची भी बनाई थी और इन गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था की बात भी की थी. लेकिन जब ईटीवी के संवाददाता ने इस गांव का हाल जानना चाहा तो हकीकत कुछ और थी.

चंदा कर ठीक कराते हैं चापाकल
गांव में जाने पर पता चला कि पंद्रह सौ आबादी वाले सीतारामपुर गांव में वर्तमान में सिर्फ एक चापाकल चालू स्थिति में है. उसमें से भी पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं निकल पाता है. यह गांव दलितों की है. जो कि हंडिया पंचायत में आता है. ये लोग चंदा कर हैंडपंप को ठीक करवाते रहते हैं. सरकारी कर्मी आए चापाकल गाड़ दिया और उसके बाद चल दिए. लेकिन वही चापाकल खराब हो जाता है तो उसे कोई देखने वाला नहीं रहता.

village
पहाड़ की तराई में बसा गांव

पहाड़ियों की तराई में है गांव
सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए लोगों का चापाकल पर जमावड़ा लगा रहता है . खासकर महिलाओं को अधिक परेशानी होती है. चिलचिलाती धूप में गांव की महिलाएं और लड़कियां पानी भरने आती है. जब लंबी लाइन देखती हैं तो धूप से बचने के लिए पेड़ की छांव का सहारा लेकर खड़ी रहती है. नालंदा के बॉर्डर पर स्थिति यह गांव पहाड़ियों के तराई में बिल्कुल सटा हुआ है. जिसके वजह से भी यहां पानी की समस्या बनी रहती है. पहाड़ पर सिर्फ पहाड़ी चापाकल ही काम कर पाता है.

पानी के लिए लाईन में खड़े लोग और जानकारी देते संवाददाता

क्रिटीकल गांव की सूची
इस जिले के कई क्रिटीकल पंचायत हैं जहां पानी की समस्या है. उनमें सवैयाटांड, चितरकोली, हरदिया, सहबाजपुर सराय, मेसकौर, बिसिआइत, बारात, माधोपुर, सरकंडा, गोविमदपुर, सुघड़ी, बुधवारा, चौकिया,खटांगी, बांघी, भदोखरा, लोहरपुर, कादिरगंज, खखड़ी, चमदिनोवा, सोनसा, कैथिर, तुंगी, चितरगघट्टी, दोना, हंडिया, सरौनी, महुडर, और बुधुआ शामिल हैं. इन गांवों में पानी की भारी किलल्त है.

क्या कहते हैं स्थानीय लोग
चापाकल पर पानी भरने आई महिलाएं कहती है, यहां पानी की बहुत किल्लत है. धूप में बच्चे लोग बाल्टी लेकर तसला लेकर पानी भरने में लगे रहते हैं. पानी के लिए बहू लोग आपस में लड़ जाती है. वोट लेने के समय नेता कहते हैं कि पानी देंगें और वोट लेने के बाद कोई आता ही नहीं है. वहीं, गांव के युवक का कहना है कि 150 घर वाले इस गांव में पानी की काफी समस्या है. इतनी आबादी में सिर्फ एक चापाकल चालू स्थिति में है. जब ये भी खराब हो जाता है तो हम लोग चंदा करके ठीक करवाते हैं. कोई कर्मी यहां हमलोगों को देखने नहीं आते हैं.

जल्द होगी समस्या दूर
वहीं, पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता चंदेश्वर राम का कहना है कि, जल संकट से निपटने के लिए हमने वैकल्पिक व्यवस्था भी कर रखी है. जहां चापाकल खराब है और पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है वहां टैंकर से भी पानी पहुंचाने की व्यवस्था है. पानी के समस्या से निपटने के लिए चापाकल भी लगवाए जा रहे हैं.

नवादाः बढ़ती गर्मी के साथ जिले में जल संकट की स्थिति भी उत्पन्न होने लगी है. पानी के बगैर लोग त्राहिमाम कर रहे हैं. कई गांव पानी के लिए जद्दोजहद में लगे हुए हैं. बड़े लोगों की जिंदगी तो सबमर्सिबल से कट जाती है. लेकिन उन गरीबों को पानी नसीब नहीं हो रहा, जो दो जून की रोटी के लिए कमाये पैसों से सबमर्सिबल नहीं लगा सकते.

एक ही हैंडपंप से मिलता है पानी
ऐसी ही स्थिति है नारदीगंज प्रखंड के सीतारामपुर गांव की. जहां, लगभग 1 हजार की आबादी पर सिर्फ दो हैंडपंप है. जिनमें से एक ही हैंडपंप काम करता है. उसमें से भी पानी निकालने के लिए काफी कसरत करनी पड़ती है. यह गांव पानी की किल्लत के मामले में टॉप 30 क्रिटीकल गांवों में से एक है. जिला में कार्यरत पीएचईडी के अधिकारी ने बाकायदा इसकी सूची भी बनाई थी और इन गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था की बात भी की थी. लेकिन जब ईटीवी के संवाददाता ने इस गांव का हाल जानना चाहा तो हकीकत कुछ और थी.

चंदा कर ठीक कराते हैं चापाकल
गांव में जाने पर पता चला कि पंद्रह सौ आबादी वाले सीतारामपुर गांव में वर्तमान में सिर्फ एक चापाकल चालू स्थिति में है. उसमें से भी पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं निकल पाता है. यह गांव दलितों की है. जो कि हंडिया पंचायत में आता है. ये लोग चंदा कर हैंडपंप को ठीक करवाते रहते हैं. सरकारी कर्मी आए चापाकल गाड़ दिया और उसके बाद चल दिए. लेकिन वही चापाकल खराब हो जाता है तो उसे कोई देखने वाला नहीं रहता.

village
पहाड़ की तराई में बसा गांव

पहाड़ियों की तराई में है गांव
सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए लोगों का चापाकल पर जमावड़ा लगा रहता है . खासकर महिलाओं को अधिक परेशानी होती है. चिलचिलाती धूप में गांव की महिलाएं और लड़कियां पानी भरने आती है. जब लंबी लाइन देखती हैं तो धूप से बचने के लिए पेड़ की छांव का सहारा लेकर खड़ी रहती है. नालंदा के बॉर्डर पर स्थिति यह गांव पहाड़ियों के तराई में बिल्कुल सटा हुआ है. जिसके वजह से भी यहां पानी की समस्या बनी रहती है. पहाड़ पर सिर्फ पहाड़ी चापाकल ही काम कर पाता है.

पानी के लिए लाईन में खड़े लोग और जानकारी देते संवाददाता

क्रिटीकल गांव की सूची
इस जिले के कई क्रिटीकल पंचायत हैं जहां पानी की समस्या है. उनमें सवैयाटांड, चितरकोली, हरदिया, सहबाजपुर सराय, मेसकौर, बिसिआइत, बारात, माधोपुर, सरकंडा, गोविमदपुर, सुघड़ी, बुधवारा, चौकिया,खटांगी, बांघी, भदोखरा, लोहरपुर, कादिरगंज, खखड़ी, चमदिनोवा, सोनसा, कैथिर, तुंगी, चितरगघट्टी, दोना, हंडिया, सरौनी, महुडर, और बुधुआ शामिल हैं. इन गांवों में पानी की भारी किलल्त है.

क्या कहते हैं स्थानीय लोग
चापाकल पर पानी भरने आई महिलाएं कहती है, यहां पानी की बहुत किल्लत है. धूप में बच्चे लोग बाल्टी लेकर तसला लेकर पानी भरने में लगे रहते हैं. पानी के लिए बहू लोग आपस में लड़ जाती है. वोट लेने के समय नेता कहते हैं कि पानी देंगें और वोट लेने के बाद कोई आता ही नहीं है. वहीं, गांव के युवक का कहना है कि 150 घर वाले इस गांव में पानी की काफी समस्या है. इतनी आबादी में सिर्फ एक चापाकल चालू स्थिति में है. जब ये भी खराब हो जाता है तो हम लोग चंदा करके ठीक करवाते हैं. कोई कर्मी यहां हमलोगों को देखने नहीं आते हैं.

जल्द होगी समस्या दूर
वहीं, पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता चंदेश्वर राम का कहना है कि, जल संकट से निपटने के लिए हमने वैकल्पिक व्यवस्था भी कर रखी है. जहां चापाकल खराब है और पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है वहां टैंकर से भी पानी पहुंचाने की व्यवस्था है. पानी के समस्या से निपटने के लिए चापाकल भी लगवाए जा रहे हैं.

Intro:नवादा। बढ़ते गर्मियों के साथ जल संकट की स्थिति जिले में उत्पन्न होने लगी है। पानी बग़ैर लोग त्राहिमाम! त्राहिमाम! कर रहे हैं। गांव के गांव पानी के लिए जद्दोजहद में लगे हुए हैं। सक्षम की जिंदगी तो समर्सिबुल से कट जा रही है लेकिन उन गरीबों को पानी सही से नसीब नहीं हो रहा जिन्हें दो जून की रोटिनके लिए कमाये पैसे से समर्सिबुल लगा सके। कुछ ऐसे ही हालात हैं नारदीगंज प्रखंड के सीतारामपुर गांव का जहां लगभग हजार की आबादी पर सिर्फ दो हैंडपंप हैं जिनमें से एक ही हैंडपंप काम कर पा रहा है। उसमें से भी पानी निकालने के लिए काफी कसरत करनी पड़ जा रही है। जबकि यह गांव पानी के किल्लत की टॉप 30 क्रिटीकल गांवों में से एक है। जिला में कार्यरत पीएचईडी के अधिकारी ने बाक़ायदा इसकी सूची भी बनाई थी और इन गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था की बात भी की थी लेकिन जब ईटीवी के संवाददाता ने इस गांव दौरा किया तो हकीक़त कुछ और बयां कर रही थी।




Body:1000 की आबादी पर चालू स्थिति में एक चापाकल

पंद्रह सौ आबादीवाले सीतारामपुर गांव में वर्तमान में सिर्फ एक चापाकल चालू स्थिति में है उसमें से भी पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं निकल पाती है। यह गांव दलितों की है। जोकि हंडिया पंचायत में आती है।

चापाकल ख़राब होने पर चंदा कर कराते हैं ठीक

पानी बगैर भला कौन रह सकता? जिंदगी जीना है तो कुछ न कुछ रास्ते ढूंढ़ने पड़ते हैं और इसलिए शायद पेयजल आपूर्ति कराने वाले विभाग अनदेखी के वजह से ये लोग चंदा कर हैंडपंप को ठीक करवाते रहते हैं। सरकारी कर्मी का क्या आया चापाकल गाड़ दिया और उसके बाद चल दिया लेकिन वही चापाकल खराब हो जाता है तो उसे कोई देखनेवाला नहीं रहता।

सुबह से शाम तक बगैर धूप का परवाह किए पानी के लिए लगा रहता है आना-जाना

सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए लोगों का चापाकल पर लगा रहता है जमावड़ा। ख़ासकर महिलाओं को होती अधिक परेशानी। चिलचिलाती धूप में गांव की महिलाएं और लड़कियां भरने आती है। जब लंबी लाइन को देखती है तो धूप से बचने के लिए पेड़ की छांव का लेती रहती है सहारा।


पहाड़ की तराई में गांव का होना बन रहा मुसिबत

नालंदा के बॉर्डर पर स्थिति यह गांव पहाड़ियों के तराई में बिल्कुल सटा हुआ है जिसके वजह से भी यहां पानी की समस्या बनी रहती है। पहाड़ पर सिर्फ बामुश्किल पहाड़ी चापाकल ही काम कर पाता है।

ये है क्रिटीकल पंचायतों की सूचि

सवैयाटांड, चितरकोली,हरदिया, सहबाजपुर सराय, मेसकौर, बिसिआइत, बारात, माधोपुर, सरकंडा, गोविमदपुर, सुघड़ी, बुधवारा, चौकिया,खटांगी, बांघी, भदोखरा, लोहरपुर, कादिरगंज, खखड़ी, चमदिनोवा, सोनसा, कैथिर, तुंगी, चितरगघट्टी, दोना, हंडिया, सरौनी, महुडर, बुधुआ आदि।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

चापाकल पर पानी भरने आई महिलाएं कहती है, यहां पानी का बहुत किल्लत है धूप।में बच्चा लोग बाल्टी लेकर तसला लेकर पानी भरने में लगा रहता है। पानी के लिए बहू लोग आपस में लड़ जाती है। वोट लेने समय कहते हैं कि पानी देंगें और वोट लेने का समय चला जाता है तो कोई पानी देते ही नहीं है। हमलोग चापाकल खराब होने की स्थिति में दूसरे गांव से मांग-मांग कर पानी पीते हैं। वहीं, गांव के युवक का कहना हैं कि 150 घर वाले इस गांव में पानी की काफी समस्या है इतनी आबादी में सिर्फ एक चापाकल चालू स्थिति में है जब खराब हो जाता है तो नट-ढिबली हमलोग चंदा करके लगते हैं कोई कर्मी यहां हमलोगों को देखने नहीं आते हैं।


क्या कहते हैं अधिकारी

वहीं, पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता चंदेश्वर राम का कहना है कि, जल संकट से निपटने के लिए हमने वैकल्पिक व्यवस्था भी कर रखी है जहां चापाकल खराब है और पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रही है वहां टैंकर से भी पानी पहुंचाने की व्यवस्था है और पानी के समस्या से निपटने के लिए चापाकल भी गराई कर रहे हैं।












Conclusion:जल ही जीवन है पर पीने के लिए जल नहीं मिला रहा। लोग बेचैन हैं प्रशासन दावे पे दावे कर रही है और जनता और जनता उनके दावे को पोल खोल रही है सवाल अब बना हुआ है कहाँ है पानी ? और जिला प्रशासन प्रशासन की तैयारी।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.