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नवादा: सदर अस्पताल के SNCU वार्ड में फोटोथेरेपी की सुविधा फिर से शुरू

नवादा सदर अस्पताल में पिछले एक साल से खराब पड़ी फोटोथेरेपी मशीन को ठीक कर दिया गया है.अगस्त महीने में ईटीवी भारत ने प्रमुखता से मामले को उठाया था. जिसके बाद अधिकारियों की नींद खुली और फिर से मरीजों की सुविधा दे जा रही है.

सदर अस्पताल
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Published : Nov 5, 2020, 9:32 AM IST

नवादा: सदर अस्पताल में करीब सालभर से लाखों रुपए की लागत से निर्मित एसएनसीयू की खराब फोटोथेरेपी मशीन ने अब फिर से काम करना शुरू कर दिया है. ईटीवी भारत ने इस मामले को बीते अगस्त महीने में प्रमुखता से उठाया था और सिविल सर्जन ने शीघ्र ही मशीन ठीक करवाने का आश्वासन भी दिया था. जिसके ढाई महीने बाद अब एसएनसीयू वार्ड की फोटोथेरेपी मशीन सुचारू रुप से काम कर रही है. हालांकि, 7 खराब पड़ी मशीनों में से अभी चार ही मशीनों ने काम करना शुरू किया है.

'बच्चों के परिजनों को होती थी काफी परेशानी'
बता दें कि, फोटोथेरेपी मशीन के खराब हो जाने से नवजात शिशुओं का इलाज नहीं हो पा रहा था, जिसके चलते बच्चों के माता-पिता को काफी दिक्कतों से गुजरना पड़ रहा था, उन्हें निजी क्लीनिकों का सहारा लेना पड़ता था, जिसमें धन की अधिक क्षति होती थी और कई बार तो गरीब माता-पिता को मासूम बच्चों की जान भी गवानी पड़ जाती थी. यह हालात करीब सालभर चली आ रही थी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की नजर इस पर नहीं पड़ी.

देखें पूरी रिपोर्ट

'2017 में हुआ था एसएनसीयू का उद्घाटन'
2017 के जून महीने में तत्कालीन डीएम मनोज कुमार ने इस एसएनसीयू का उद्घाटन किया था. जो गरीब-गुरबा के बच्चे के लिए एक संजविनी की तरह काम कर रहा था. दरअसल, इसका मुख्य उद्देश्य शिशु मृत्यु दर को कम करना था, जिसमें गिरावटें भी देखी गई थी. नवादा में पहले जहां एक हजार शिशुओं पर 28 मौतें हुआ करती थी वहीं, यह घटकर 2018 में 25 हो गई थी.

'क्या काम है एसएनसीयू वार्ड का'
एसएनसीयू वार्ड में कई अत्याधुनिक मशीनें और विशेष सुविधाओं रहती है. जहां कम वजन वाले नवजात बच्चे, पीलिया बीमारी से ग्रसित बच्चे की 28 दिनों तक देखभाल की जाती है. इस वार्ड में बच्चों की देखरेख के लिए तीन शिशु रोग विशेषज्ञ, 12 जीएनएम, 17 रेडिएंट वार्मर, 7 फोटोथेरेपी मशीनें, ऑक्सीजन कांस्ट्रेंटर, पल्स ऑक्सीमीटर आदि मशीनें लगाई गई थी, जिनमें से 11 रेडिएंट वार्मर और 7 फोटोथेरेपी मशीन महीनें खराब पड़ी थी.

'हर साल देख-रेख में खर्च होते हैं 10 लाख रुपए'
एसएनसीयू का संचालन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत किया जाता है. इसकी देखभाल के लिए हर वर्ष जिला स्वास्थ समिति के कोष से 10 लाख रुपए की राशि भी दी जाती है, लेकिन बावजूद इसके घोर लापरवाही देखी जा रही है.

नवादा: सदर अस्पताल में करीब सालभर से लाखों रुपए की लागत से निर्मित एसएनसीयू की खराब फोटोथेरेपी मशीन ने अब फिर से काम करना शुरू कर दिया है. ईटीवी भारत ने इस मामले को बीते अगस्त महीने में प्रमुखता से उठाया था और सिविल सर्जन ने शीघ्र ही मशीन ठीक करवाने का आश्वासन भी दिया था. जिसके ढाई महीने बाद अब एसएनसीयू वार्ड की फोटोथेरेपी मशीन सुचारू रुप से काम कर रही है. हालांकि, 7 खराब पड़ी मशीनों में से अभी चार ही मशीनों ने काम करना शुरू किया है.

'बच्चों के परिजनों को होती थी काफी परेशानी'
बता दें कि, फोटोथेरेपी मशीन के खराब हो जाने से नवजात शिशुओं का इलाज नहीं हो पा रहा था, जिसके चलते बच्चों के माता-पिता को काफी दिक्कतों से गुजरना पड़ रहा था, उन्हें निजी क्लीनिकों का सहारा लेना पड़ता था, जिसमें धन की अधिक क्षति होती थी और कई बार तो गरीब माता-पिता को मासूम बच्चों की जान भी गवानी पड़ जाती थी. यह हालात करीब सालभर चली आ रही थी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की नजर इस पर नहीं पड़ी.

देखें पूरी रिपोर्ट

'2017 में हुआ था एसएनसीयू का उद्घाटन'
2017 के जून महीने में तत्कालीन डीएम मनोज कुमार ने इस एसएनसीयू का उद्घाटन किया था. जो गरीब-गुरबा के बच्चे के लिए एक संजविनी की तरह काम कर रहा था. दरअसल, इसका मुख्य उद्देश्य शिशु मृत्यु दर को कम करना था, जिसमें गिरावटें भी देखी गई थी. नवादा में पहले जहां एक हजार शिशुओं पर 28 मौतें हुआ करती थी वहीं, यह घटकर 2018 में 25 हो गई थी.

'क्या काम है एसएनसीयू वार्ड का'
एसएनसीयू वार्ड में कई अत्याधुनिक मशीनें और विशेष सुविधाओं रहती है. जहां कम वजन वाले नवजात बच्चे, पीलिया बीमारी से ग्रसित बच्चे की 28 दिनों तक देखभाल की जाती है. इस वार्ड में बच्चों की देखरेख के लिए तीन शिशु रोग विशेषज्ञ, 12 जीएनएम, 17 रेडिएंट वार्मर, 7 फोटोथेरेपी मशीनें, ऑक्सीजन कांस्ट्रेंटर, पल्स ऑक्सीमीटर आदि मशीनें लगाई गई थी, जिनमें से 11 रेडिएंट वार्मर और 7 फोटोथेरेपी मशीन महीनें खराब पड़ी थी.

'हर साल देख-रेख में खर्च होते हैं 10 लाख रुपए'
एसएनसीयू का संचालन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत किया जाता है. इसकी देखभाल के लिए हर वर्ष जिला स्वास्थ समिति के कोष से 10 लाख रुपए की राशि भी दी जाती है, लेकिन बावजूद इसके घोर लापरवाही देखी जा रही है.

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