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नवादाः केंद्रीय पुस्तकालय में है कई समस्याएं, ना है नई किताब ना ही पूर्ण स्टाफ - nawada central library

नवादा के जिला केंद्रीय पुस्तकालय की हालत खराब है. पुस्तकालय का भवन जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं. साथ ही पुस्तकालय में नई पुस्तकों का घोर अभाव है. ऐसे में पुस्तकालय कर्मी को समय पर वेतन भी प्राप्त नहीं है.

जिला केंद्रीय पुस्तकालय, नवादा
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Published : Aug 22, 2019, 11:38 PM IST

नवादाः जिला मुख्यालय से महज दस कदम की दूरी पर स्थित केंद्रीय पुस्तकालय आज सरकारी उदासीनता का शिकार है. पुस्तकालय प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपनी बदहाली पर आंसू बहा है. जिला मुख्यालय के इतने करीब होते हुए भी पुस्तकालय में नई पुस्तकें नहीं है. भवन जर्जर है और यहां काम करनेवाले कर्मी को समय से वेतन नहीं दी जाती है. इस लाइब्रेरी में काफी पुरानी किताबें हैं. पिछले 4-5 वर्षों से पुस्तकों के लिए पैसे नहीं मिल रहे इसलिए लाइब्रेरी में नई किताबों का घोर अभाव है.

जिला केंद्रीय पुस्तकालय है सरकारी उदासीनता का शिकार

लाइब्रेरी का भवन है जर्जर
लाइब्रेरी का भवन काफी पुराना हो चुका है. आए-दिन छत झड़ती रहती है जिससे पाठक आशंकित होकर पुस्तकें पढ़ते हैं. इतना ही नहीं पुस्तकालय तक पहुंचने वाले मार्ग पर नशेड़ियों ने अपना अड्डा जमा रखा है. केंद्रीय पुस्तकालय के मुख्य प्रवेश द्वार के दाई तरफ खुले में पेशाब करने के कारण काफी बदबू भी आती रहती है.

नवादा लेटेस्ट न्यूज, नवादा जिला मुख्यालय के पास लाईब्रेरी, जिला केंद्रीय पुस्तकालय नवादा
पुस्तकालय का जर्जर भवन

पुस्तकालय कर्मी को समय पर वेतन नहीं
पुस्तकालय की स्थापना 1956 में हुई थी. शिक्षा के विकास में इस पुस्तकालय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. बल्कि इसे एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जाता था. लेकिन सरकार और प्रसाशन की उपेक्षा के कारण लाईब्रेरी में अब पर्याप्त जगह नहीं है. जिसके कारण पुस्तकें आलमारी में ही कैद होकर रह गई हैं. इसमें काम करनेवाले कर्मी को समय वेतन नहीं मिल पाता है. छह महीने या सालभर पर दौड़-धूप करने पर एकबार वेतन मिलता है. जबकि सरकार ने इन्हें मूल वेतन देने की बात कही थी.

नवादा लेटेस्ट न्यूज, नवादा जिला मुख्यालय के पास लाईब्रेरी, जिला केंद्रीय पुस्तकालय नवादा
पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण पुस्तकें आलमारी में ही कैद है

2008 में प्राधिकार बनाने की बात
2008 में पुस्तकालय को प्राधिकार बनाने की बात कही गई थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पहले ही कार्यकाल में राज्य पुस्तकालय एवं सूचना केंद्र प्राधिकार के गठन की घोषणा की थी. ऐसे में उन्होंने पुस्तकालय की व्यवस्था दुरुस्त करने के उद्देश्य दिए थे. जिसके बाद पुस्तकालय कर्मियों में यह उम्मीदें जगी थी कि अब उनके विभाग के दिन बदलेंगें लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

नवादा लेटेस्ट न्यूज, नवादा जिला मुख्यालय के पास लाईब्रेरी, जिला केंद्रीय पुस्तकालय नवादा
पुस्तकालय का झड़ता छत

क्या कहते हैं पाठक और पुस्तकाल अध्यक्ष
पाठक नवीन कुमार का कहना है कि नई किताबें यहां उपलब्ध नहीं है. पुरानी पुस्तकें यहां काफी हैं पर नई किताबें जो टेक्निकल दृष्टिकोण से खोजी जा रही हैं, उनकी कमी है. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि जिले के इस पुस्तकालय में संसाधन की उपलब्धता कराए. वहीं, अनिल कुमार सिंह का कहना है कि दो-चार वर्षों से किताबों की खरीद-बिक्री नहीं होने से यहां नई पुस्तकें नहीं है.

पुस्तकालय अध्यक्ष सह सचिव विनय शंकर का कहना है कि अभी तीन-चार वर्षों से पुस्तकों की खरीद-बिक्री की कोई राशि नहीं मिली है. इसलिए किताबें नहीं हैं. स्टाफ की भी कमी है और कैटलॉग की आवश्यकता है. कैटलॉग रहता है तो पुस्तक के रख-रखाव और संचालन में आसानी होती है.

नवादाः जिला मुख्यालय से महज दस कदम की दूरी पर स्थित केंद्रीय पुस्तकालय आज सरकारी उदासीनता का शिकार है. पुस्तकालय प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपनी बदहाली पर आंसू बहा है. जिला मुख्यालय के इतने करीब होते हुए भी पुस्तकालय में नई पुस्तकें नहीं है. भवन जर्जर है और यहां काम करनेवाले कर्मी को समय से वेतन नहीं दी जाती है. इस लाइब्रेरी में काफी पुरानी किताबें हैं. पिछले 4-5 वर्षों से पुस्तकों के लिए पैसे नहीं मिल रहे इसलिए लाइब्रेरी में नई किताबों का घोर अभाव है.

जिला केंद्रीय पुस्तकालय है सरकारी उदासीनता का शिकार

लाइब्रेरी का भवन है जर्जर
लाइब्रेरी का भवन काफी पुराना हो चुका है. आए-दिन छत झड़ती रहती है जिससे पाठक आशंकित होकर पुस्तकें पढ़ते हैं. इतना ही नहीं पुस्तकालय तक पहुंचने वाले मार्ग पर नशेड़ियों ने अपना अड्डा जमा रखा है. केंद्रीय पुस्तकालय के मुख्य प्रवेश द्वार के दाई तरफ खुले में पेशाब करने के कारण काफी बदबू भी आती रहती है.

नवादा लेटेस्ट न्यूज, नवादा जिला मुख्यालय के पास लाईब्रेरी, जिला केंद्रीय पुस्तकालय नवादा
पुस्तकालय का जर्जर भवन

पुस्तकालय कर्मी को समय पर वेतन नहीं
पुस्तकालय की स्थापना 1956 में हुई थी. शिक्षा के विकास में इस पुस्तकालय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. बल्कि इसे एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जाता था. लेकिन सरकार और प्रसाशन की उपेक्षा के कारण लाईब्रेरी में अब पर्याप्त जगह नहीं है. जिसके कारण पुस्तकें आलमारी में ही कैद होकर रह गई हैं. इसमें काम करनेवाले कर्मी को समय वेतन नहीं मिल पाता है. छह महीने या सालभर पर दौड़-धूप करने पर एकबार वेतन मिलता है. जबकि सरकार ने इन्हें मूल वेतन देने की बात कही थी.

नवादा लेटेस्ट न्यूज, नवादा जिला मुख्यालय के पास लाईब्रेरी, जिला केंद्रीय पुस्तकालय नवादा
पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण पुस्तकें आलमारी में ही कैद है

2008 में प्राधिकार बनाने की बात
2008 में पुस्तकालय को प्राधिकार बनाने की बात कही गई थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पहले ही कार्यकाल में राज्य पुस्तकालय एवं सूचना केंद्र प्राधिकार के गठन की घोषणा की थी. ऐसे में उन्होंने पुस्तकालय की व्यवस्था दुरुस्त करने के उद्देश्य दिए थे. जिसके बाद पुस्तकालय कर्मियों में यह उम्मीदें जगी थी कि अब उनके विभाग के दिन बदलेंगें लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

नवादा लेटेस्ट न्यूज, नवादा जिला मुख्यालय के पास लाईब्रेरी, जिला केंद्रीय पुस्तकालय नवादा
पुस्तकालय का झड़ता छत

क्या कहते हैं पाठक और पुस्तकाल अध्यक्ष
पाठक नवीन कुमार का कहना है कि नई किताबें यहां उपलब्ध नहीं है. पुरानी पुस्तकें यहां काफी हैं पर नई किताबें जो टेक्निकल दृष्टिकोण से खोजी जा रही हैं, उनकी कमी है. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि जिले के इस पुस्तकालय में संसाधन की उपलब्धता कराए. वहीं, अनिल कुमार सिंह का कहना है कि दो-चार वर्षों से किताबों की खरीद-बिक्री नहीं होने से यहां नई पुस्तकें नहीं है.

पुस्तकालय अध्यक्ष सह सचिव विनय शंकर का कहना है कि अभी तीन-चार वर्षों से पुस्तकों की खरीद-बिक्री की कोई राशि नहीं मिली है. इसलिए किताबें नहीं हैं. स्टाफ की भी कमी है और कैटलॉग की आवश्यकता है. कैटलॉग रहता है तो पुस्तक के रख-रखाव और संचालन में आसानी होती है.

Intro:नवादा। जिला मुख्यालय से महज दस कदम की दूरी पर स्थित केंद्रीय पुस्तकालय सरकारी उदासीनता और प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपनी बदहाली पर आंसू बहा है। जिला मुख्यालय के इतने करीब होते हुए भी पुस्तकालय में नये पुस्तक नहीं है, भवन भी जर्जर है और यहाँ काम करनेवाले कर्मी को समय से वेतन नहीं दी जा रही हैं। इस लाइब्रेरी में काफी पुरानी किताबें हैं लेकिन नए किताबों की घोर अभाव है। पिछले 4-5 वर्षों से पुस्तक के लिए पैसे नहीं मिल पा रहे हैं। भवन भी काफी पुराना हो चुका है आये दिन छत से लीलटर गिरते रहते हैं जिससे पाठकों काफी आशंकित होकर पुस्तकें पढ़ पाते हैं। इतना ही नहीं पुस्तकालय तक पहुंचने वाले मार्ग पर नशेड़ी-गजेड़ी ने अपना अड्डा जमा रखा है। केंद्रीय पुस्तकालय में मुख्य प्रवेश द्वार के दाईं तरफ खुले में पेशाब करने के कारण काफी बदबू देती रहती है। शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले पुस्तकालय आज अपनी ही बदहाली को पर आंसू बहाने को मजबूर है।


Body:1956 में हुई थी स्थापना पूर्व में पुस्तकालय का शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है बल्कि इसे महत्वपूर्ण अंग के रूपमें देखा जाता था। यही वजह है कि समाज मे शिक्षा व स्वाध्यन की भावना को जागृत करने के लिए जिले के प्रजातंत्र चौक के समीप 15 अगस्त 1956 को यहां के कुछ शिक्षाप्रेमी के अथक प्रयास से इसका शुभारंभ किया गया था लेकिन सरकार और प्रसाशन की उपेक्षा के कारण भवन जर्जर हैं पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण पुस्तकें आलमारी में कैद होकर रह गई है। समय पर नहीं मिलते हैं कर्मी को वेतन पुस्तकालय को चलाने के लिए कम से कम तीन कर्मी आवश्यक है लेकिन सिर्फ कर्मी जिसमें एक लाइब्रेरीयन और गार्ड ही कार्यरत है जबकि, पुस्तकालय को बंद करने और खोलने के लिए शटर की जरूरत है। इसमें काम करनेवाले कर्मी को ससमय वेतन नहीं मिल पाता है छह महीना सालभर पर एकबार वेतन मिलता है वो भी बिना दौड़-धूप किए नहीं मिलता। जबकि इन्हें सरकार मूल वेतन देने की बात कही थी। लेकिन अभी तक मूल वेतन सरकार से नहीं मिल पा रही है। 2008 में कही गई थी प्राधिकार बनाने की बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में सूबे में पुस्तकालय की व्यवस्था दुरुस्त करने के उद्देश्य से राज्य पुस्तकालय एवं सूचना केंद्र प्राधिकार का गठन की घोषणा की थी जिसके बाद पुस्तकालय कर्मियों को यह उम्मिन्दें जगी थी कि अब उनके विभाग और उनके के दिन बदलेंगें लेकिन इससे भी कुछ लाभ अभी तक नहीं मिल सका है। क्या कहते हैं पाठक नवीन कुमार का कहना है नई किताबें यहां उपलब्ध नहीं है। पुरानी पुस्तकें काफी उपलब्ध है पर नई किताबें जो टेक्निकल दृष्टिकोण से खोज हो रही है वो नहीं है। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि जिला के इस पुस्तकालय में संसाधन की उपलब्धता कराया जाए। वहीं, अनिल कुमार सिंह का कहना है दो-चार वर्षों से किताब की खरीद बिक्री नहीं होने के कारण नई पुस्तकें की कमी है। क्या कहते हैं पुस्तकालयाध्यक्ष सह सचिव पुस्तकालयाध्यक्ष सह सचिव विनय शंकर का कहना है कि, अभी तीन-चार वर्षों से पुस्तक खरीद-बिक्री मद में कोई राशि नहीं मिली है। इसलिए किताब नहीं कर सके हैं। स्टॉफ़ की कमी है शॉटर और कैटलॉग की आवश्यकता है। कैटलॉग रहता है तो रख-रखाव और संचालन में आसानी होती है। भवन जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं। भवन मरम्मती के नाम पर विभाग से अभी तक फंड नहीं मिला है।


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