नवादाः जिला मुख्यालय से महज दस कदम की दूरी पर स्थित केंद्रीय पुस्तकालय आज सरकारी उदासीनता का शिकार है. पुस्तकालय प्रशासनिक लापरवाही के कारण अपनी बदहाली पर आंसू बहा है. जिला मुख्यालय के इतने करीब होते हुए भी पुस्तकालय में नई पुस्तकें नहीं है. भवन जर्जर है और यहां काम करनेवाले कर्मी को समय से वेतन नहीं दी जाती है. इस लाइब्रेरी में काफी पुरानी किताबें हैं. पिछले 4-5 वर्षों से पुस्तकों के लिए पैसे नहीं मिल रहे इसलिए लाइब्रेरी में नई किताबों का घोर अभाव है.
लाइब्रेरी का भवन है जर्जर
लाइब्रेरी का भवन काफी पुराना हो चुका है. आए-दिन छत झड़ती रहती है जिससे पाठक आशंकित होकर पुस्तकें पढ़ते हैं. इतना ही नहीं पुस्तकालय तक पहुंचने वाले मार्ग पर नशेड़ियों ने अपना अड्डा जमा रखा है. केंद्रीय पुस्तकालय के मुख्य प्रवेश द्वार के दाई तरफ खुले में पेशाब करने के कारण काफी बदबू भी आती रहती है.
पुस्तकालय कर्मी को समय पर वेतन नहीं
पुस्तकालय की स्थापना 1956 में हुई थी. शिक्षा के विकास में इस पुस्तकालय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. बल्कि इसे एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जाता था. लेकिन सरकार और प्रसाशन की उपेक्षा के कारण लाईब्रेरी में अब पर्याप्त जगह नहीं है. जिसके कारण पुस्तकें आलमारी में ही कैद होकर रह गई हैं. इसमें काम करनेवाले कर्मी को समय वेतन नहीं मिल पाता है. छह महीने या सालभर पर दौड़-धूप करने पर एकबार वेतन मिलता है. जबकि सरकार ने इन्हें मूल वेतन देने की बात कही थी.
2008 में प्राधिकार बनाने की बात
2008 में पुस्तकालय को प्राधिकार बनाने की बात कही गई थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पहले ही कार्यकाल में राज्य पुस्तकालय एवं सूचना केंद्र प्राधिकार के गठन की घोषणा की थी. ऐसे में उन्होंने पुस्तकालय की व्यवस्था दुरुस्त करने के उद्देश्य दिए थे. जिसके बाद पुस्तकालय कर्मियों में यह उम्मीदें जगी थी कि अब उनके विभाग के दिन बदलेंगें लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
क्या कहते हैं पाठक और पुस्तकाल अध्यक्ष
पाठक नवीन कुमार का कहना है कि नई किताबें यहां उपलब्ध नहीं है. पुरानी पुस्तकें यहां काफी हैं पर नई किताबें जो टेक्निकल दृष्टिकोण से खोजी जा रही हैं, उनकी कमी है. हम सरकार से आग्रह करते हैं कि जिले के इस पुस्तकालय में संसाधन की उपलब्धता कराए. वहीं, अनिल कुमार सिंह का कहना है कि दो-चार वर्षों से किताबों की खरीद-बिक्री नहीं होने से यहां नई पुस्तकें नहीं है.
पुस्तकालय अध्यक्ष सह सचिव विनय शंकर का कहना है कि अभी तीन-चार वर्षों से पुस्तकों की खरीद-बिक्री की कोई राशि नहीं मिली है. इसलिए किताबें नहीं हैं. स्टाफ की भी कमी है और कैटलॉग की आवश्यकता है. कैटलॉग रहता है तो पुस्तक के रख-रखाव और संचालन में आसानी होती है.