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नवादा: छठ महापर्व में बांस के बने सामानों का है महत्व, जानें कारीगरों का हाल

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Published : Oct 29, 2019, 11:54 PM IST

जिले के गोविंदपुर प्रखंड स्थित एकतारा महादलित बस्ती के लोग छठ पर्व के लिए सूप, डाला, दउरा तैयार करते हैं. गांव में बांस के सामान बनाने वाले कारीगर अपने इस पुश्तैनी धंधे से ही अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं.

छठ महापर्व में बांस के बने सामानों का महत्व

नवादा: छठ को आस्था का महापर्व कहा जाता है. महापर्व पर बांस से बने सामानों का विशेष महत्व है. पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले सामानों में मुख्यत: सूप, डाला, डगड़ा और दउरा का खास महत्व होता है. इन सब चीजों के बिना छठ पर्व अधूरा माना जाता है.

बस्ती के लोगों का एकमात्र उद्योग
गौरतलब है कि जिले के गोविंदपुर प्रखंड स्थित एकतारा महादलित बस्ती के लोग छठ पर्व के लिए सूप, डाला, दउरा तैयार करते हैं. गांव में बांस के सामान बनाने वाले कारीगर अपने इस पुश्तैनी धंधे से ही अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं. बता दें कि सरकारी उदासीनता के कारण इन्हें आज तक किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल सका है. खास बात यह है कि एकतारा महादलित बस्ती के समस्त लोग इसी उद्योग में लगे हुए हैं.

नवादा
एकतारा महादलित बस्ती

सरकारी योजनाओं का नहीं मिला लाभ
यहां तकरीबन सौ परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी बांस के सामान बनाने के काम में सालों से जुटा है. इस रोजगार में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक लगे रहते हैं. कमाई का जरिया इन लोगों के लिए एकमात्र बांस के सामान बनाना ही है. इन लोगों को सरकार की तरफ से पीएम आवास योजना और वृद्धा पेंशन योजना का लाभ भी नहीं मिलता. इन्हें यह भी पता नहीं है कि सरकार की कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं.

बांस कारीगरों का जानें हाल

बांस की महंगाई की पड़ी मार
दिन रात मेहनत करने के बावजूद बाजार में दुकानदारों की ओर से इन्हें अच्छी कीमत नहीं मिल रही है. सूप-डाला बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि बांस की महंगाई की वजह से सामान महंगा होता जा रहा है. जिसके वजह से अधिक आमदनी नहीं हो पाती है. वहीं, दुकानदार इनके बनाए गए सामानों को नवादा बाजार में ऊंची कीमत पर बेचते हैं.

नवादा: छठ को आस्था का महापर्व कहा जाता है. महापर्व पर बांस से बने सामानों का विशेष महत्व है. पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले सामानों में मुख्यत: सूप, डाला, डगड़ा और दउरा का खास महत्व होता है. इन सब चीजों के बिना छठ पर्व अधूरा माना जाता है.

बस्ती के लोगों का एकमात्र उद्योग
गौरतलब है कि जिले के गोविंदपुर प्रखंड स्थित एकतारा महादलित बस्ती के लोग छठ पर्व के लिए सूप, डाला, दउरा तैयार करते हैं. गांव में बांस के सामान बनाने वाले कारीगर अपने इस पुश्तैनी धंधे से ही अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं. बता दें कि सरकारी उदासीनता के कारण इन्हें आज तक किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल सका है. खास बात यह है कि एकतारा महादलित बस्ती के समस्त लोग इसी उद्योग में लगे हुए हैं.

नवादा
एकतारा महादलित बस्ती

सरकारी योजनाओं का नहीं मिला लाभ
यहां तकरीबन सौ परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी बांस के सामान बनाने के काम में सालों से जुटा है. इस रोजगार में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक लगे रहते हैं. कमाई का जरिया इन लोगों के लिए एकमात्र बांस के सामान बनाना ही है. इन लोगों को सरकार की तरफ से पीएम आवास योजना और वृद्धा पेंशन योजना का लाभ भी नहीं मिलता. इन्हें यह भी पता नहीं है कि सरकार की कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं.

बांस कारीगरों का जानें हाल

बांस की महंगाई की पड़ी मार
दिन रात मेहनत करने के बावजूद बाजार में दुकानदारों की ओर से इन्हें अच्छी कीमत नहीं मिल रही है. सूप-डाला बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि बांस की महंगाई की वजह से सामान महंगा होता जा रहा है. जिसके वजह से अधिक आमदनी नहीं हो पाती है. वहीं, दुकानदार इनके बनाए गए सामानों को नवादा बाजार में ऊंची कीमत पर बेचते हैं.

Intro:नवादा। छठ को आस्था का महापर्व कहा जाता है जिसमें बांस से बने सामानों का विशेष महत्व है।छठ पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले सामानों में सूप-डाला- डगड़ा, दउरा का खास महत्व है इन सब चीजों के बिना छठ पर्व अधूरा है।

जिले के गोविंदपुर प्रखंड स्थिति एक गांव है। नाम है एकतारा। यह एक महादलित की बस्ती है। इन्हीं लोगों के द्वारा छठ के लिए सूप, डाला, दउरा तैयार किया जाता है जिसे लोग छठ में उपयोग में लाकर अपनी मन्नते पूरी तो कर लेते हैं लेकिन महीनों से दिन रात एककर बांस बनानेवालों की हसरतें पूरी नहीं हो पाती है। लिहाज़ा, ये लोग अपने बच्चे को अच्छे न पढ़ा पाते हैं और न ही अपनी जरूरतों को पूरा कर पाते हैं।


बाइट- कारू सूर्या, कलाकार




Body:दिन रात मेहनत करने के बाबजूद बाजार में दुकानदारों द्वारा इन्हें अच्छी कीमत नहीं मिल रही है सूप डाला बनानेवाले कारीगर की माने तो उनका कहना है कि बांस की महंगाई की वजह से सामान महंगा होता जा रहा है। जिसके वजह से अधिक आमदनी नहीं हो पाती है। जितना कमाते हैं उतना खाते हैं।वहीं, इनके द्वारा बनाए गए नवादा बाजार में इसे ऊंची कीमत पर दुकानदार बेच रहे हैं।

बाइट- चानो देवी, कलाकार




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