नवादा: आजादी के 70 साल गुजर चुका है. देश की जनता को आज भी अपने घर से मेन रोड पर जाने के लिए चचरी पुल का सहारा लेना पड़ रहा है. यह महज बांस की लकड़ियों से बनी है. बारिश में लोगों को इस पुल से गुजरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जहां देश न्यू इंडिया का सपना देख रहा है ग्रामीण क्षेत्रों में हालत बद से बद्तर है.
नवादा में हकीकत कोसों दूर है
मामला नवादा जिले के राहुलनगर का है. यहां अभी भी विकास हकीक़त से कोसों दूर है। लोगों को यहां अपने को जोखिम में डालकर नहर पार करना पड़ता है. अगर थोड़ी भी चूक हुई तो जान जाने की संभावना है. बरसात के दिनों में स्थिति और ही भयावह हो जाती है.
सरपंच ने दी मुखिया को सूचना
गांव के सरपंच मनीष कुमार का कहना है कि इस चचरी पुल से गिरकर एक-दो बच्चों का हाथ-पैर भी टूट चुका है. एक बार बच्चे पानी में बह भी गए थे. हालांकि इसकी सूचना मुखिया को दे दिया गया है.
लाइफलाइन साबित हुआ चचरी पुल
बात दें कि अपनी कठिनायों को देखते हुए लोगों ने अपने श्रमदान से चचरी पुल का निर्माण किया है. वर्तमान में यह चचरी पुल लोगों के लिए लाइफलाइन साबित हुआ है. विचारणीय है कि लेकिन गांव के मुखिया, स्थानीय विधायक और सासंद गिरिराज सिंह तक इसकी सुध लेने नहीं पहुंचे हैं.
सिर्फ चुनाव के समय नेता सुनते हैं गुहार
वहीं, शिभिया देवी का कहना है कि उन्हें पुल को पार करने में बहुत डर लगता है. बच्चे- बूढ़े और बीमार लोगों को पुल को पार करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. चुनाव नजदीक आते ही नेता जनप्रतिनिधियों वोट मांगने तो आ जाते हैं लेकिन जनता की परेशानियों से उनेहें कोई मतलब नहीं होता है.
तो कैसे पूरा होगा न्यू इंडिया का सपना
अब सवाल यह उठता है कि न्यू इंडिया का सपना देखने वाला देश के लोग आखिर कब तक इस चचरी पुल के सहारे जीवन काटते रहेंगे.