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कैसे पूरा होगा न्यू इंडिया का सपना, चचरी पुल के सहारे नहर पार कर रहे हैं लोग

नवादा के राहुलनगर इलाके में लोग आज भी चचरी पुल का उपयोग कर रहे हैं. लोगों को खासकर बारिश के मौसम में पुल से गुजरने में डर लगता है.

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Published : Mar 20, 2019, 9:29 AM IST

Updated : Mar 20, 2019, 9:47 AM IST

चचरी पुल से गुजरते लोग

नवादा: आजादी के 70 साल गुजर चुका है. देश की जनता को आज भी अपने घर से मेन रोड पर जाने के लिए चचरी पुल का सहारा लेना पड़ रहा है. यह महज बांस की लकड़ियों से बनी है. बारिश में लोगों को इस पुल से गुजरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जहां देश न्यू इंडिया का सपना देख रहा है ग्रामीण क्षेत्रों में हालत बद से बद्तर है.

नवादा में हकीकत कोसों दूर है
मामला नवादा जिले के राहुलनगर का है. यहां अभी भी विकास हकीक़त से कोसों दूर है। लोगों को यहां अपने को जोखिम में डालकर नहर पार करना पड़ता है. अगर थोड़ी भी चूक हुई तो जान जाने की संभावना है. बरसात के दिनों में स्थिति और ही भयावह हो जाती है.

मीडिया से बातचीत करते सरपंच

सरपंच ने दी मुखिया को सूचना

गांव के सरपंच मनीष कुमार का कहना है कि इस चचरी पुल से गिरकर एक-दो बच्चों का हाथ-पैर भी टूट चुका है. एक बार बच्चे पानी में बह भी गए थे. हालांकि इसकी सूचना मुखिया को दे दिया गया है.

लाइफलाइन साबित हुआ चचरी पुल
बात दें कि अपनी कठिनायों को देखते हुए लोगों ने अपने श्रमदान से चचरी पुल का निर्माण किया है. वर्तमान में यह चचरी पुल लोगों के लिए लाइफलाइन साबित हुआ है. विचारणीय है कि लेकिन गांव के मुखिया, स्थानीय विधायक और सासंद गिरिराज सिंह तक इसकी सुध लेने नहीं पहुंचे हैं.

सिर्फ चुनाव के समय नेता सुनते हैं गुहार

वहीं, शिभिया देवी का कहना है कि उन्हें पुल को पार करने में बहुत डर लगता है. बच्चे- बूढ़े और बीमार लोगों को पुल को पार करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. चुनाव नजदीक आते ही नेता जनप्रतिनिधियों वोट मांगने तो आ जाते हैं लेकिन जनता की परेशानियों से उनेहें कोई मतलब नहीं होता है.

तो कैसे पूरा होगा न्यू इंडिया का सपना

अब सवाल यह उठता है कि न्यू इंडिया का सपना देखने वाला देश के लोग आखिर कब तक इस चचरी पुल के सहारे जीवन काटते रहेंगे.

नवादा: आजादी के 70 साल गुजर चुका है. देश की जनता को आज भी अपने घर से मेन रोड पर जाने के लिए चचरी पुल का सहारा लेना पड़ रहा है. यह महज बांस की लकड़ियों से बनी है. बारिश में लोगों को इस पुल से गुजरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जहां देश न्यू इंडिया का सपना देख रहा है ग्रामीण क्षेत्रों में हालत बद से बद्तर है.

नवादा में हकीकत कोसों दूर है
मामला नवादा जिले के राहुलनगर का है. यहां अभी भी विकास हकीक़त से कोसों दूर है। लोगों को यहां अपने को जोखिम में डालकर नहर पार करना पड़ता है. अगर थोड़ी भी चूक हुई तो जान जाने की संभावना है. बरसात के दिनों में स्थिति और ही भयावह हो जाती है.

मीडिया से बातचीत करते सरपंच

सरपंच ने दी मुखिया को सूचना

गांव के सरपंच मनीष कुमार का कहना है कि इस चचरी पुल से गिरकर एक-दो बच्चों का हाथ-पैर भी टूट चुका है. एक बार बच्चे पानी में बह भी गए थे. हालांकि इसकी सूचना मुखिया को दे दिया गया है.

लाइफलाइन साबित हुआ चचरी पुल
बात दें कि अपनी कठिनायों को देखते हुए लोगों ने अपने श्रमदान से चचरी पुल का निर्माण किया है. वर्तमान में यह चचरी पुल लोगों के लिए लाइफलाइन साबित हुआ है. विचारणीय है कि लेकिन गांव के मुखिया, स्थानीय विधायक और सासंद गिरिराज सिंह तक इसकी सुध लेने नहीं पहुंचे हैं.

सिर्फ चुनाव के समय नेता सुनते हैं गुहार

वहीं, शिभिया देवी का कहना है कि उन्हें पुल को पार करने में बहुत डर लगता है. बच्चे- बूढ़े और बीमार लोगों को पुल को पार करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. चुनाव नजदीक आते ही नेता जनप्रतिनिधियों वोट मांगने तो आ जाते हैं लेकिन जनता की परेशानियों से उनेहें कोई मतलब नहीं होता है.

तो कैसे पूरा होगा न्यू इंडिया का सपना

अब सवाल यह उठता है कि न्यू इंडिया का सपना देखने वाला देश के लोग आखिर कब तक इस चचरी पुल के सहारे जीवन काटते रहेंगे.

Intro:नवादा। आजदी के 70 साल बाद भी अगर देश की आम जनता को चचरी पुल पर ही आश्रित होना पर रहा है तो इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। देश न्यू इंडिया का सपना देख रहा, देश विश्व गुरु बनाने की बात चल है लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जो हालात हैं वो अब किसी से छुपी नहीं है।


Body:दरअसल, यह मामला सूबे के मुख्यमंत्री के गृह जिले से सटे नवादा जिले के राहुलनगर का है। जहां, अभी भी विकास हकीक़त से कोशों दूर है। जरा गौर से देखिए इस तस्वीर को, लोग किस प्रकार जान ज़ोखिम में डालकर नहर पार कर रहे हैं। तनिक भी चूक हुई तो जान भी जा सकती है। बरसात के दिनों में तो स्थिति और ही भयावह हो जाती है। गांव के सरपंच मनीष कुमार का कहना है, अब तक इस चचरी पुल से गिरकर पानी एक-दो बच्चे का हाथ-पैर भी टूटा है। एकबार बच्चे पानी में बह भी गए हैं। इसकी सूचना मुखिया को दे दिया गया है जिसपे मुखिया की संज्ञान लिए भी हैं। यह विकासात्मक कार्य हैं इसके लिए मुखिया जबाव देह हैं।

वहीं, शिभिया देवी का कहना है, दिक्कत है, पार होने पर गोर(पैर)-हाथ टूटता है। बच्चा-बूढ़ी और बीमार लोग कभी नहीं पार हो सकता। कभी दह(बह) जाता है, तो कभी डूब जाता है। इसके लिए पुराना और नया मुखिया को भी बोले। वो कहती है 200 रुपया जतरा के लिए दो सौ रुपया खर्चा भी किए पता नहीं किसने रुकवा दिया। वहीं, एक और ग्रामीण का कहना है कि, विधायक जी को भी कहे भी, जब भी बात नहीं मानते हैं कहते हैं हो जाएगा। जनप्रतिनिधि से क्या उम्मीद करेंगें। करते तो कुछ हैं नहीं खाली कहते हैं वोट दो और बाद में कुछ काम होता ही नहीं है।

बात दें कि, अपनी कठिनाई को देखते हुए लोगों ने अपने श्रमदान से चचरी पुल का निर्माण किया है और यही चचरी पुल लोगों के लिए लाइफलाइन बना हुआ है।





लेकिन इसपे न गांव के मुखिया, स्थानीय विधायक और गिरिराज सिंह का आज तक ध्यान गया जा सका है।


Conclusion:सवाल यह उठता है कि न्यू इंडिया का सपना देखनेवाला देश के लोग कब तक चचरी पुल के सहारे जीवन जीते रहेंगें। चुनावी समर है नेताओं का अब घर-घर आना-जाना जारी रहेगा। वोट लेंगें और चल देंगें लेकिन जनता की जस की तस बनी रहेगी। आखिर समाज आम जनता के दिन कब बहुरेंगे?
Last Updated : Mar 20, 2019, 9:47 AM IST
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