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नवादा: आजादी के 72 साल बाद भी झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं सरकारी स्कूल के बच्चे

नवादा जिले के हैदरचक में विद्यालय स्थापना के लिए 2010 में मान्यता तो दे दी गई. लेकिन अभी तक वहां भवन नहीं बन सका है.

झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर सरकारी स्कूल के बच्चे
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Published : Sep 4, 2019, 11:56 PM IST

नवादा: प्रदेश की सरकार शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों की स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है. जिले के हैदरचक में एक महादलित बस्ती है. यहां विद्यालय स्थापना के लिए 2010 में मान्यता तो दे दी गई, लेकिन अभी तक वहां भवन नहीं बन सका है. विद्यालय भवन के अभाव में छोटे-छोटे बच्चे झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं. गांव का एकमात्र शिक्षा का साधन यह विद्यालय अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहा है.

झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर सरकारी स्कूल के बच्चे

कड़ी धूप और बरसात में पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे
गर्मी के मौसम में बच्चे कड़ी धूप में और बरसात में झोपड़ी से टपकते पानी की बूंदों के बीच पढ़ने को मजबूर हैं. इस बारे में पांचवीं कक्षा कि छात्रा माला ने बताया कि हमारे विद्यालय के पास भवन नहीं है. बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता है. ठंड के दिनों में सर्द जमीन पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है. वहीं, तीसरी कक्षा की श्रीयंशु कुमारी का कहना है कि जमीन पर बैठने में दिक्कत होती है बरसात के दिनों में भी काफी दिक्कतें होती हैं.

nawada
झोपड़ी में पढ़ते बच्चे

क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीण महेंद्र प्रसाद ने बताया कि 2010 से इस स्कूल का यही हाल है. यहां से दो किमी दूर एक स्कूल है भी तो वहां बच्चे जा नहीं पाते हैं. शिक्षक प्रयास कर रहे हैं. लेकिन किसी भी अधिकारी, पदाधिकारी और शिक्षा विभाग का इस पर ध्यान नहीं गया है. वहीं, जगदीश प्रसाद का कहना है कि 2010 से आजकल-आजकल हो रहा है. लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है.

क्या कहती हैं प्रधानाचार्या
स्कूल की प्रधानाचार्या मालती देवी ने बताया कि वह इस विद्यालय में 2010 से कार्यरत हैं. तभी से वह प्रयास कर रही हैं कि विद्यालय को अपना भवन मिल जाए. इसके लिए उन्होंने सीओ सहित शिक्षा विभाग के कई पदाधिकारियों से बात की. लेकिन किसी ने भी अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया है. जबकि, विद्यालय के पास जमीन की कोई दिक्कत नहीं है. भवन नहीं होने से बच्चों को काफी दिक्कतें होती है. अगर विद्यालय भवन बन जाता तो बच्चों को हो रही परेशानी से निजात मिल जाती.

nawada
पढ़ाई करते बच्चे

क्या कहते हैं पदाधिकारी
डीपीओ स्थापना के प्रभारी अनंत कुमार का कहना है कि हैदरचक में न ही जमीन है और न ही भवन है. यही कारण है कि बच्चों को दिक्कतें हो रही हैं. 2014 से भवन निर्माण हेतु सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार की ओर से किसी प्रकार की राशि भी अभी तक आवंटित नहीं हुई है. इसलिए नवसृजित विद्यालय का जहां भी जमीन उपलब्ध है वहां फिलहाल भवन निर्माण नहीं किया जा सका है.

नवादा: प्रदेश की सरकार शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों की स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है. जिले के हैदरचक में एक महादलित बस्ती है. यहां विद्यालय स्थापना के लिए 2010 में मान्यता तो दे दी गई, लेकिन अभी तक वहां भवन नहीं बन सका है. विद्यालय भवन के अभाव में छोटे-छोटे बच्चे झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं. गांव का एकमात्र शिक्षा का साधन यह विद्यालय अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहा है.

झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर सरकारी स्कूल के बच्चे

कड़ी धूप और बरसात में पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे
गर्मी के मौसम में बच्चे कड़ी धूप में और बरसात में झोपड़ी से टपकते पानी की बूंदों के बीच पढ़ने को मजबूर हैं. इस बारे में पांचवीं कक्षा कि छात्रा माला ने बताया कि हमारे विद्यालय के पास भवन नहीं है. बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता है. ठंड के दिनों में सर्द जमीन पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है. वहीं, तीसरी कक्षा की श्रीयंशु कुमारी का कहना है कि जमीन पर बैठने में दिक्कत होती है बरसात के दिनों में भी काफी दिक्कतें होती हैं.

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झोपड़ी में पढ़ते बच्चे

क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीण महेंद्र प्रसाद ने बताया कि 2010 से इस स्कूल का यही हाल है. यहां से दो किमी दूर एक स्कूल है भी तो वहां बच्चे जा नहीं पाते हैं. शिक्षक प्रयास कर रहे हैं. लेकिन किसी भी अधिकारी, पदाधिकारी और शिक्षा विभाग का इस पर ध्यान नहीं गया है. वहीं, जगदीश प्रसाद का कहना है कि 2010 से आजकल-आजकल हो रहा है. लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है.

क्या कहती हैं प्रधानाचार्या
स्कूल की प्रधानाचार्या मालती देवी ने बताया कि वह इस विद्यालय में 2010 से कार्यरत हैं. तभी से वह प्रयास कर रही हैं कि विद्यालय को अपना भवन मिल जाए. इसके लिए उन्होंने सीओ सहित शिक्षा विभाग के कई पदाधिकारियों से बात की. लेकिन किसी ने भी अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया है. जबकि, विद्यालय के पास जमीन की कोई दिक्कत नहीं है. भवन नहीं होने से बच्चों को काफी दिक्कतें होती है. अगर विद्यालय भवन बन जाता तो बच्चों को हो रही परेशानी से निजात मिल जाती.

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पढ़ाई करते बच्चे

क्या कहते हैं पदाधिकारी
डीपीओ स्थापना के प्रभारी अनंत कुमार का कहना है कि हैदरचक में न ही जमीन है और न ही भवन है. यही कारण है कि बच्चों को दिक्कतें हो रही हैं. 2014 से भवन निर्माण हेतु सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार की ओर से किसी प्रकार की राशि भी अभी तक आवंटित नहीं हुई है. इसलिए नवसृजित विद्यालय का जहां भी जमीन उपलब्ध है वहां फिलहाल भवन निर्माण नहीं किया जा सका है.

Intro:नवादा।नवादा। सूबे की सरकार शिक्षा को लेकर बड़े- बड़े दावे तो कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है। जी हां, हम बात कर रहे हैं जिले के मेसकौर प्रखंड अंतर्गत आनेवाले हैदरचक की। जोकि एक महादलित बस्ती है जहाँ विद्यालय स्थापना के लिए 2010 में मान्यता तो दे दी गई लेकिन अभी तक वहाँ भवन नहीं बन सका है। विद्यालय भवन के अभाव में छोटे-छोटे बच्चे झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर हैं। गांव का एकमात्र शिक्षा का साधन यह विद्यालय अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रही है।


Body:यहाँ बच्चे गर्मी की तपस को तो किसी तरह झेल लेते हैं लेकिन बरसात में झोपड़ी से टपकते पानी की बूंदे उन्हें सही से पढ़ने भी नहीं देती है। ये छोटे-छोटे नैनिहाल कनकनाती ठंड में ज़मीन पर बैठकर किस तरह पढ़ाई कर पा रहे होंगें इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या कहती है बच्चे पांचवी क्लास की माला कहती है हमारे विद्यालय के पास भवन नहीं है बरसात के दिनों में छत से पानी टपकता है, ठंड के दिनों में सर्द ज़मीन पर बैठकर पढ़ना परता है। वहीं, तीसरी कक्षा की श्रीयंशु कुमारी का कहना है कि धरती पर बैठने में दिक्कत होता है बरसात के दिनों में भी काफी दिक्कतें होती है। वहीं, स्थानीय ग्रामीण महेंद्र प्रसाद कहना है कि, 2010 से ही यही हाल है । यहां से 2 किमी दूर एक स्कूल है भी तो वहां बच्चे जा नहीं पाते हैं। शिक्षकों के द्वारा प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अभी तक कोई भी अधिकारी, पदाधिकारी व शिक्षा विभाग के लोग इसपे ध्यान नहीं दिए हैं। वहीं, जगदीश प्रसाद का कहना है कि 2010 से आजकल-आजकल हो रहा है प्रमुख जी भी कह- के थक गए हैं। क्या कहती है प्रधानाचार्या स्कूल की प्रधानाचार्या मालती देवी कहती हैं , मैं, इस विद्यालय में 2010 से कार्यरत हूँ। तभी से प्रयास कर रही हूँ कि विद्यालय को अपना भवन हो जाए। इसके लिए सीओ साहब सहित शिक्षा विभाग के कई पदाधिकारी को कहती रही हूँ लेकिन किसी ने अभी तक इसपे ध्यान नहीं दिया है। जबकि, विद्यालय के पास ज़मीन की कोई दिक्कत नहीं है। भवन नहीं होने से बच्चों को काफी दिक्कतें होती है अगर हमारे बच्चे को कष्ट होगा तो हमें भी तो कष्ट होगा। अगर विद्यालय भवन बन जाता तो बच्चों हो रही परेशानी से निजात मिल जाता। क्या कहते हैं पदाधिकारी डीपीओ स्थापना के प्रभारी अनंत कुमार का कहना है कि, हैदरचक में ज़मीन नहीं है और भवन निर्माण नहीं हुआ है तो उसे शिफ्ट किया गया है। 2014 से भवन निर्माण हेतु सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकार द्वारा किसी प्रकार की राशि अभी तक आवंटित नहीं हुई है। इसलिए नवसृजित विद्यालय का जहां भी ज़मीन उपलब्ध है वहां फिलहाल भवन निर्माण नहीं किया जा सका है।


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