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नवादा: नक्सल प्रभावित क्षेत्र में किसानों का कमाल, पहाड़ों पर 50 एकड़ में उगायी फसल - बंजर भूमि में खेती

जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र झारणवां, रानीगदर और दनियां गांव में लोग अपनी मेहनत से 50 एकड़ में फसल उगा रहे हैं.

50 एकड़ में खेती
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Published : May 3, 2019, 7:54 PM IST

Updated : May 4, 2019, 1:47 AM IST

नवादा: जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कुछ ऐसे गांव हैं, जहां के लोग अपनी मेहनत से फल-फूल उगा रहे हैं. इस क्षेत्र में बंजर जमीन होने के कारण लोग सब्जी और अनाज के लिए तरसते थे. मगर ग्राम निर्माण मंडल के सहयोग और लोगों की कड़ी मेहनत ने इस समस्या से भी निजात पा लिया.

50 एकड़ में हो रही खेती
जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसे झारणवां, रानीगदर और दनियां गांव में लोग अपनी मेहनत से 50 एकड़ में फसल उगा रहे हैं. दरअसल, पहाड़ी और जंगलों से घिरा इलाका होने के कारण यहां के लोग पानी को रोक नहीं पाते थे. इसके कारण यहां के लोगों को फसल उगाने में काफी परेशानी होती थी.

श्रमदान के लिए किया प्रोत्साहित
यही नहीं, उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इन लोगों को किसी प्रकार की सरकारी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही थी. इन परेशानियों को देखते हुए ग्राम निर्माण मंडल, सेखोदेवरा आश्रम के लोगों ग्रामिणों के बीच एक नई उम्मीद जगाई. उन्होंने लोगों को श्रमदान के लिए प्रोत्साहित किया.

पहाड़ पर बनाया बांध
इससे प्रेरित होकर लोगों ने अपने श्रमदान से पहाड़ पर बड़ा बांध बांधकर आहार का निर्माण किया. इसके बाद से वहां पहाड़ के पानी का संचयन होना शुरू हो गया. अब स्थिति ऐसी है हो गई कि जहां लोगों को एक एकड़ में भी ठीक से फसल लगाने के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था, आज वहां खेते लहलहा रही है.

क्या कहते हैं किसान
रानीगदर के सुरेंद्र कुमार के अनुसार ये सारी मेहनत आश्रम के सहयोग से संभव हुआ. आश्रम के लोगों की मदद से यहां पानी का संचयन किया जा सका. उन्होंने नये-नये पेड़ पौधे लगाकर ग्रामिणों को खेती करने की ट्रेनिंग दी. इसका ही नतीजा है कि आज सभी ग्रामिण 50 एकड़ में फसल उगा रहे हैं.

बंजर भूमि में खेती

फसलों और सब्जियों की खेती
लोग यहां धान-गेहूं के साथ-साथ फल-फूल की भी खेती करने लगे हैं. इसमें लौकी, टमाटर, भिंडी, गोभी, करेला, बैगन प्याज, लहसुन, खीरा, मिर्च और ककड़ी का फसल शामिल है. फलों में यहां अमरूद, आम के कई किस्म के पौधे लगाये गये हैं.

नवादा: जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कुछ ऐसे गांव हैं, जहां के लोग अपनी मेहनत से फल-फूल उगा रहे हैं. इस क्षेत्र में बंजर जमीन होने के कारण लोग सब्जी और अनाज के लिए तरसते थे. मगर ग्राम निर्माण मंडल के सहयोग और लोगों की कड़ी मेहनत ने इस समस्या से भी निजात पा लिया.

50 एकड़ में हो रही खेती
जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसे झारणवां, रानीगदर और दनियां गांव में लोग अपनी मेहनत से 50 एकड़ में फसल उगा रहे हैं. दरअसल, पहाड़ी और जंगलों से घिरा इलाका होने के कारण यहां के लोग पानी को रोक नहीं पाते थे. इसके कारण यहां के लोगों को फसल उगाने में काफी परेशानी होती थी.

श्रमदान के लिए किया प्रोत्साहित
यही नहीं, उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इन लोगों को किसी प्रकार की सरकारी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही थी. इन परेशानियों को देखते हुए ग्राम निर्माण मंडल, सेखोदेवरा आश्रम के लोगों ग्रामिणों के बीच एक नई उम्मीद जगाई. उन्होंने लोगों को श्रमदान के लिए प्रोत्साहित किया.

पहाड़ पर बनाया बांध
इससे प्रेरित होकर लोगों ने अपने श्रमदान से पहाड़ पर बड़ा बांध बांधकर आहार का निर्माण किया. इसके बाद से वहां पहाड़ के पानी का संचयन होना शुरू हो गया. अब स्थिति ऐसी है हो गई कि जहां लोगों को एक एकड़ में भी ठीक से फसल लगाने के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था, आज वहां खेते लहलहा रही है.

क्या कहते हैं किसान
रानीगदर के सुरेंद्र कुमार के अनुसार ये सारी मेहनत आश्रम के सहयोग से संभव हुआ. आश्रम के लोगों की मदद से यहां पानी का संचयन किया जा सका. उन्होंने नये-नये पेड़ पौधे लगाकर ग्रामिणों को खेती करने की ट्रेनिंग दी. इसका ही नतीजा है कि आज सभी ग्रामिण 50 एकड़ में फसल उगा रहे हैं.

बंजर भूमि में खेती

फसलों और सब्जियों की खेती
लोग यहां धान-गेहूं के साथ-साथ फल-फूल की भी खेती करने लगे हैं. इसमें लौकी, टमाटर, भिंडी, गोभी, करेला, बैगन प्याज, लहसुन, खीरा, मिर्च और ककड़ी का फसल शामिल है. फलों में यहां अमरूद, आम के कई किस्म के पौधे लगाये गये हैं.

Intro:नवादा। मत हारना तू कभी कोशिश करने से बड़े से बड़ा पर्वत भी हिल जाएगा सब्र शब्द रखकर मेहनत करता जा एक दिन उसका फल भी मिल जाएगा। उक्त कहावत चरितार्थ कर रहा है नवादा जिले के नक्सल प्रभावित में स्थित कुछ ऐसे गांव हैं जहां के लोग अपनी मेहनत से फल-फूल उगा रहे हैं। जरा गौर से देखिये इस तस्वीर को यहां पहले बंजर ज़मीन था क्या अनाज सब्जी तक के लिए तरस जाते थे यहां के लोग। ग्राम निर्माण मंडल के सहयोग और लोगों की अपनी जी तोड़ मेहनत से अब आलम ऐसा है कि पहाड़ पर लोग फ़सल भी उगा लेते हैं और फसल-फूल साग सब्जियां भी। जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर झारखंड के बॉर्डर से सटा पहाड़ियों और जंगलों के बीच बसा झारणवां और रानी ग़दर दनियाँ के लोग तपती धूप और वीरान पड़े जमीनों पर लगभग 50 एकड़ में उगा रहे हैं फसल।

ऐसे हुआ संभव

पहाड़ी और जंगलों से घिरा इलाका होने के कारण यहां के लोग पानी को रोक नहीं पाते थे जिसके कारण यहां के लोगों को फ़सल उगाने में लोहे की चने चबाने पड़तें थे। दो जून की रोटी के लिए उन्हें पूरी तरह मजदूरी पर निर्भर रहना पड़ता था। उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र होने के नाते आज कोई सरकारी सुविधा भी इनलोगों तक नहीं पहुंच सका। इन सब के परेशानियों पर एक दिन ग्राम निर्माण मंडल, सेखोदेवरा आश्रम के लोगों की नज़र इन ग्रामीणों पर पड़ी तो उन्होंने लोगों को श्रमदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया और लोगों ने उनकी बात मानी और अपने श्रमदान से पहाड़ पर बड़ा बांध बांधकर आहार का निर्माण किया। जिसके बाद से पहाड़ वहां पहाड़ का पानी का संचयन होना शुरू हो गया आज स्थिति ऐसी है कि जहां लोग एक एकड़ में भी ठीक से फ़सल नहीं लगा पाते थे और अगर लगते थे तो उन्हें सिर्फ वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था आज झारणवां, रानी ग़दर और दनियाँ में करीब 50 एकड़ खेतों में फसलें उगाई जा रही है।

क्या कहते हैं किसान

रानी ग़दर के सुरेंद्र कुमार कहते हैं, ये जो फ़सल देख रहे हैं वो आश्रम के सहयोग से संभव हुआ। आश्रम के लोग एकबार यहाँ आये थे तो उन्होंने कहा कुछ नये-नये पेड़ पौधे लगाइये। उन्होंने खेती के लिए हमलोगों को ट्रेनिग दिए। फलदार पेड़-पौधे लगाने को कहे जिसका परिणाम है कि आज हमलोग सब्जी उपजा रहे हैं।

धान-गेंहूँ के साथ-साथ इन सब्जियों की करते हैं खेती

पानी की उपलब्धता के कारण यहां के लोगों को जी तोड़ मेहनत करने का इरादा एकबार फिर जाग गया। लोग धान-गेंहूँ के साथ-साथ फलदार पेड़ और कई एकड़ों में फल-फूल की खेती करने लगे हैं जिसमें, लौकी, टमाटर, भिंडी, गोभी, करेला, बैगन प्याज, लहसुन, खीरा, मिर्च और ककड़ी का फसल शामिल है। फलदार पेड़ में अमरूद, आम के कई किस्म के पौधे लगाये गये हैं।

अब खेती की ओर झुकाव तो बढ़ा पर बारिश नहीं होना बन रहा मुसिबत

आहार बन गई है। जिसमें जल का संचयन होता था पर पिछले कुछ सालों से लागातर कम हो रही बारिश इनके हौसलें को चुनौती देने की कोशिश कर रही है लेकिन यहां के किसानों ने अब पहाड़ से सोना उगाने की तरक़ीब सीख ली है..बस थोड़ा बारिश तो हो जाए।




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Conclusion:आश्रम का सहयोग और लोगों की कमरतोड़ मेहनत ने आज साबित कर दिया कि, मेहनतकश की राह पहाड़ भी नहीं रोक सकता है।
Last Updated : May 4, 2019, 1:47 AM IST
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