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नवादा: नशामुक्ति वार्ड में लटका ताला, महिला बंध्याकरण के लिए हो रहा भवन का इस्तेमाल

प्रदेश में शराबबंदी को सफल बनाने के लिए संबंधित जिले के आशा कार्यकर्ताओं को शराबियों की पहचान करने का जिम्मा मिला था. कार्यकर्ताओं को शराबियों को पहचान कर नशामुक्ति केंद्र तक लाने की जिम्मेवारी मिली थी.यही नहीं सरकार ने जागरूकता से लेकर मानव श्रृंखला बनाकर लोगों को जागरुक करने का प्रयास भी किया था

नवादा
नशामुक्ति वार्ड नवादा
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Published : Nov 26, 2019, 12:19 PM IST

नवादा: जिले के सदर अस्पताल परिसर स्थित नशा मुक्ति वार्ड मरीजों का आना बंद हो गया है जिस वजह से 30 लाख की लागत का बने इस केंद्र का इस्तेमाल अब यदा-कदा ही होती है. वर्तमान समय में हालात ऐसे है कि इस केंद्र का इस्तेमाल अब महिला बंध्याकरण के लिए होता है.

नवादा
नशामुक्ति वार्ड, सदर अस्पताल नवादा

30 लाख की लागत से हुआ था निर्माण
बताया जा रहा है कि जिले में अवस्थित इस नशा मुक्ति केंद्र को सरकार ने जिले के शराबियों के स्वास्थ्य को देखते हुए करीब 30 लाख की लागत से 1 अप्रैल 2016 में निर्माण करवया था. लेकिन अपने निर्माण काल के बाद से यह नशा से मुक्ति पाने वाले मरिजों की राह देखता रह गया. जिले के लोगों को इस केंद्र का आवश्यकता कभी हुई ही नही.इसका सबसे बड़ा कारण जिले की सीमा का झारखंड से लगाव है. बताया जाता है कि लोग वर्तमान में भी झारखंड जाकर शराब का सेवन कर चोरी-छिपे वापस आ जाते है.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

ये भी पढ़ें- यहां जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बन रही देसी शराब, धड़ल्ले से लोग कर रहे सेवन

खत्म होने के कगार पर नशामुक्ति केंद्र
सरकारी आंकड़ो पर गौर करें तो जिले भर के थानें में हर माह 180 से 200 शराब के मामले में दर्ज हो रहे हैं. ऐसे में औसतन प्रतिदिन 6- 7 शराबी सलाखों के पीछे तो जरूर पहुंचता है, लेकिन नशा मुक्ति केंद्र तक नहीं पहुंच पाता है. जिस वजह से वापस से वह फिर ले शराब का सेवन शुरू कर देता है.जिस वजह से नशामुक्ति केंद्र का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है.

नशामुक्ति वार्ड में लटका ताला
नशामुक्ति वार्ड में लटका ताला

महिला बंध्याकरण के लिए हो रहा इस्तेमाल
बताया जाता है वर्तमान समय में इस केंद्र पर यदा-कदा 80-85 मरीजों का उपचार किया जाता है.लोग शराब के नशे में गिरफ्तार तो हो रहे है, लेकिन शराब की लत से छुटकारा दिलाने का कोई प्रयास नहीं हो पा रहा है.वर्तमान समय में आलम तो यह है कि इसके भवन का तला महिला बंध्याकरण ऑपरेशन के बाद या फिर इमरजेंसी हालात में किया जाता है.

नवादा
डॉ.बी.बी सिंह, नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी

आशा कार्यकर्ताओं को मिला था जिम्मा
प्रदेश में शराबबंदी को सफल बनाने के लिए संबंधित जिले के आशा कार्यकर्ताओं को शराबियों की पहचान करने का जिम्मा मिला था. कार्यकर्ताओं को शराबियों को पहचान कर नशामुक्ति केंद्र तक लाने की जिम्मेवारी मिली थी.यही नहीं सरकार ने जागरूकता से लेकर मानव श्रृंखला बनाकर लोगों को जागरुक करने का प्रयास भी किया था. लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया था.

क्या कहते है पदाधिकारी
इस मामले पर जब ईटीवी भारत की टीम ने नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी डॉ.बी.बी सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे नशा केंद्र में रोगी नहीं के बराबर आते हैं. अभी तक हमलोगों ने 80 लोगों को नशा से छुड़वाया. अब हल्का सा पीने पर विड्रोल सिंड्रोम का असर नहीं पड़ता है. एकाएक शराब छोड़ने वाले को विड्रोल सिंड्रोम का असर होता था.

नवादा: जिले के सदर अस्पताल परिसर स्थित नशा मुक्ति वार्ड मरीजों का आना बंद हो गया है जिस वजह से 30 लाख की लागत का बने इस केंद्र का इस्तेमाल अब यदा-कदा ही होती है. वर्तमान समय में हालात ऐसे है कि इस केंद्र का इस्तेमाल अब महिला बंध्याकरण के लिए होता है.

नवादा
नशामुक्ति वार्ड, सदर अस्पताल नवादा

30 लाख की लागत से हुआ था निर्माण
बताया जा रहा है कि जिले में अवस्थित इस नशा मुक्ति केंद्र को सरकार ने जिले के शराबियों के स्वास्थ्य को देखते हुए करीब 30 लाख की लागत से 1 अप्रैल 2016 में निर्माण करवया था. लेकिन अपने निर्माण काल के बाद से यह नशा से मुक्ति पाने वाले मरिजों की राह देखता रह गया. जिले के लोगों को इस केंद्र का आवश्यकता कभी हुई ही नही.इसका सबसे बड़ा कारण जिले की सीमा का झारखंड से लगाव है. बताया जाता है कि लोग वर्तमान में भी झारखंड जाकर शराब का सेवन कर चोरी-छिपे वापस आ जाते है.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

ये भी पढ़ें- यहां जुगाड़ टेक्नोलॉजी से बन रही देसी शराब, धड़ल्ले से लोग कर रहे सेवन

खत्म होने के कगार पर नशामुक्ति केंद्र
सरकारी आंकड़ो पर गौर करें तो जिले भर के थानें में हर माह 180 से 200 शराब के मामले में दर्ज हो रहे हैं. ऐसे में औसतन प्रतिदिन 6- 7 शराबी सलाखों के पीछे तो जरूर पहुंचता है, लेकिन नशा मुक्ति केंद्र तक नहीं पहुंच पाता है. जिस वजह से वापस से वह फिर ले शराब का सेवन शुरू कर देता है.जिस वजह से नशामुक्ति केंद्र का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है.

नशामुक्ति वार्ड में लटका ताला
नशामुक्ति वार्ड में लटका ताला

महिला बंध्याकरण के लिए हो रहा इस्तेमाल
बताया जाता है वर्तमान समय में इस केंद्र पर यदा-कदा 80-85 मरीजों का उपचार किया जाता है.लोग शराब के नशे में गिरफ्तार तो हो रहे है, लेकिन शराब की लत से छुटकारा दिलाने का कोई प्रयास नहीं हो पा रहा है.वर्तमान समय में आलम तो यह है कि इसके भवन का तला महिला बंध्याकरण ऑपरेशन के बाद या फिर इमरजेंसी हालात में किया जाता है.

नवादा
डॉ.बी.बी सिंह, नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी

आशा कार्यकर्ताओं को मिला था जिम्मा
प्रदेश में शराबबंदी को सफल बनाने के लिए संबंधित जिले के आशा कार्यकर्ताओं को शराबियों की पहचान करने का जिम्मा मिला था. कार्यकर्ताओं को शराबियों को पहचान कर नशामुक्ति केंद्र तक लाने की जिम्मेवारी मिली थी.यही नहीं सरकार ने जागरूकता से लेकर मानव श्रृंखला बनाकर लोगों को जागरुक करने का प्रयास भी किया था. लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया था.

क्या कहते है पदाधिकारी
इस मामले पर जब ईटीवी भारत की टीम ने नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी डॉ.बी.बी सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे नशा केंद्र में रोगी नहीं के बराबर आते हैं. अभी तक हमलोगों ने 80 लोगों को नशा से छुड़वाया. अब हल्का सा पीने पर विड्रोल सिंड्रोम का असर नहीं पड़ता है. एकाएक शराब छोड़ने वाले को विड्रोल सिंड्रोम का असर होता था.

Intro:नवादा। जिले के सदर अस्पताल परिसर स्थित नशा मुक्ति वार्ड में अब नशामुक्ति के लिए मरीजों का आना बंद हो है शायद यही वजह है कि जब देखो तब नशामुक्ति केंद्र पर ताला लटका होता है। करीब 30 लाख की लागत से इस केंद्र स्थापना 1 अप्रैल 2016 में कई गई थी ताकि वर्षों से शराब के लत वाले लोग अगर अचानक से शराब छोड़ने पर बीमार पड़े तो उस मरीजों को समुचित ईलाज व परामर्श मिल सके लेकिन ऐसा न सका। इसके प्रमुख कारण इस जिला का झारखंड के बॉर्डर पर स्थित होना। बॉर्डर इलाका होने के कारण लोगों को चोरी छिपे शराब मिल ही जाते हैं जिससे उन्हें यहां आने की जरूरत ही नहीं पड़ती।




Body:जरा आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि जिले भर के थानों में 180 से 200 एफआईआर शराब के मामले में दर्ज हो रहे हैं इस तरह औसतन प्रतिदिन 6- 7 शराबी पुलिस और उत्पाद विभाग नवादा के जेल की हवा खाता है लेकिन नशे की लत के गिरफ्त में आ चुके नशा मुक्ति केंद्र नहीं भेजा जाता। ऐसे में नशामुक्ति केंद्र खत्म होने के कगार पर है। मौजूदा हालात यह है इस वार्ड में लगे ताले अब तभी खुलते हैं जब महिला का बंध्याकरण ऑपरेशन होने के बाद आराम करना हो या फिर किसी इमरजेंसी की स्थित वार्ड की जरूरत।


जिस तामझाम के साथ इस केंद्र की शुरुआत हुई थी वो फिसड्डी साबित हुई है। पहले चरण में 20 लाख और दूसरे चरण में 10 लाख यानी 30 लाख खर्च होने के बाद शराबबंदी कानून लागू होने से लेकर अभी महज 80-85 मरीजों ठीक किया जा सका है इस प्रकार अगर प्रत्येक मरीज पर खर्चे का हिसाब लगाएं तो 35 हजार रुपए बैठता है। अभी भी लोग शराब के नशे में गिरफ्तार तो हो रहे हैं लेकिन उनको शराब की आदत से छुटकारा दिलाने का कोई प्रयास नहीं हो पा रहा है।


तामझाम के साथ शुरू हुआ था केंद्र साबित हुआ फिसड्डी

आशा कार्यकर्ताओं को मिला था शराबियों को पहचान का जिम्मा

शराबबंदी कानून के लागू होते ही सरकार ने कई अभियान चलाए थे जागरूकता को लेकर मानव से अभियान चलाकर लोगों को कानून और नशा मुक्ति केंद्र के बारे में जानकारी दी गई थी साथ ही इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं को शराबियों को पहचान कर नशामुक्ति केंद्र तक लाने को मिली थी जिम्मेंदारी लेकिन यह अभियान सफल नहीं हो पाया।

क्या कहते है पदाधिकारी

आजकल हमारे नशा केंद्र में रोगी नहीं के बराबर आते हैं क्योंकि यहां पर पहले जो शराब पीते थे उसका विड्रोल सिंड्रोम आया था लेकिन अब बहुत कम लोगों का आ रहा है। कैसे जहां पर आ अभी तक हमलोगों ने 80 से 50 लोगों को नशा से छुड़वाया। अब हल्का सा पीने पर विड्रोल सिंड्रोम का असर नहीं पड़ता है। यह बहुत क्रॉनिकल पेशेंट होते हैं जो एकाएक छोड़ते हैं उसपे विड्रॉल सिंड्रोम का असर होता है। इसका हम लोग इलाज करते हैं। जो कभी पीते पीते नहीं हैं और उसे अचानक पिला दिया जाता है तो और कुछ गलतियां कर जाते हैं और जेल चले जाते हैं तो जेल में जाते जाते उसका नशा कम हो जाता है ऐसे उनपे विड्रॉल सिंड्रोम का असर नहीं रह जाता है।



बाइट- डॉ. बी बी सिंह , प्रभारी नशा मुक्ति केंद्र नवादा।


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