नवादा: रामचरितमानस पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इसी मामले पर नवादा के सामाजिक कार्यकर्ता राजेश ने शिक्षामंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर के खिलाफ परिवाद दायर किया है. इस परिवाद के तहत मांग की गयी है कि रामचरितमानस जैसे धार्मिक ग्रंथ पर आपत्तिजनक बयान देने वाले मंत्री के उपर कानूनी कार्रवाई करते हुए सजा दी जाए. ताकि आगे से कोई नेता किसी भी धर्म या धर्मग्रंथ पर उंगली ना उठाने पाए.
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शिक्षामंत्री पर मुकदमा दर्ज: रामचरितमानस पर विवाद के बाद कई सामाजिक संगठनों में काफी आक्रोश है. इसी के तहत जिले के सामाजिक कार्यकर्ता राजेश ने मंत्री के खिलाफ नवादा कोर्ट में परिवाद दायर करवाया है. इस मामले पर पूछताछ के बाद राजेश ने कहा कि सूबे के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने जिस तरह से हिन्दुओं के पवित्र धर्मग्रंथ रामचरितमानस पर सवाल उठाया है. इसके साथ ही उन्होंने हिंदुओं का घोर अपमान किया है. जिससे की पूरे समाज में वैमनस्यता फैल सके.
हिन्दुओं की भावना को पर आघात: उन्होंने कहा कि इस तरह के घटिया बयानबाजी के लिए कोर्ट के द्वारा उन्हें सजा दी जाए. उन्होंने बताया कि शिक्षामंत्री ने 11 और 12 जनवरी को रामचरितमानस पर बयान देते हुए आपत्तिजनक बातें कहीं थी. जिससे हिन्दूओं की भावना को गहरा आघात लगा है. इस परिवाद के तहत शिक्षा मंत्री को माफी मांगने की भी नसीहत दी गई है. जबकि शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर अभी भी अपने बयान पर कायम हैं.
"शिक्षामंत्री ने 11 और 12 जनवरी को रामचरितमानस पर बयान देते हुए आपत्तिजनक बातें कहीं थी. जिससे हिन्दूओं की भावना को गहरा आघात लगा है. इस परिवाद के तहत शिक्षा मंत्री को माफी मांगने की भी नसीहत दी गई है": राजेश कुमार
दीक्षांत समारोह में दिया था बयान: गौरतलब है कि एनओयू जैसे शैक्षणिक संस्थान में दीक्षांत समारोह के कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने रामचरितमानस पर आपत्तिजनक बयान दिया था. जिसके बाद ही कई हिंदू संगठनों में उनके इस बात को लेकर काफी आक्रोश है. कुछ संगठनों के द्वारा शिक्षा मंत्री से इस्तीफे की मांग की जा रही है. इसके बावजूद मंत्री चंद्रशेखर ने कहा कि मैं कितनी बार कहूं कि मैं अपने उसी बयान पर कायम हूं. इससे आगे भी उन्होंने कहा कि 'मैं एक ही बात कितनी बार कहूं? मैं सच बोलता हूं, मैं उस पर कायम हूं. कोई कुछ भी कहे मुझे इससे क्या लेना देना?' बता दें कि उन्होंने कहा था कि रामचरितमानस और मनुस्मृति समाज को विभाजित करने वाली पुस्तकें हैं.
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