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दम तोड़ रहा है CM नीतीश का ड्रीम प्रोजेक्ट, बंद होने की कगार पर नालंदा का नीरा प्लांट

शराबबंदी के बाद नीरा उत्पादन सीएम नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट था. लेकिन अफसोस सीएम के गृह जिला नालंदा का नीरा प्लांट बंद होने की कगार पर पहुंच गया है.

बंद होने के कगार पर नीरा प्लांट
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Published : Jun 28, 2019, 10:54 AM IST

Updated : Jun 28, 2019, 11:13 AM IST

नालंदा: बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद नीरा योजना चालू की गई, इसका जमकर प्रचार-प्रसार भी हुआ. लेकिन सीएम के गृह जिले नालंदा में इस महत्वाकांक्षी योजना ने मात्र 2 साल में ही दम तोड़ दिया.

नालंदा मुख्यालय स्थित बिहारशरीफ के बाजार समिति प्रांगण में करोड़ों रुपए की लागत से सूबे का पहला नीरा प्लांट लगाया गया. जो अब पूरी तरह से ठप हो चुका है. यहां प्रोसेसिंग और पैकेजिंग का काम पूरी तरह से बंद है. स्थिति ऐसी है कि नीरा प्लांट बंद होने के कगार पर है. इसके साथ ही तार, खजूर के व्यवसाय से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने का सपना भी ध्वस्त होता नजर आ रहा है. इस प्लांट की शुरूआत मार्च 2017 में की गई थी.

nalanda
जगत नारायण सिंह (प्रोजेक्ट मैनेजर)

नीरा का रस नहीं मिलने से ठप पड़ा प्रोसेसिंग
इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए जीविका समूह को नीरा संग्रह का जिम्मा दिया गया. इसके लिए ताड़ के पेड़ से उत्पाद प्लांट तक लाने की जिम्मेवारी सौंपी गई. नीरा के लिए जिले में ताड़-खजूर व्यवसाय से जुड़े करीब 800 लोगों को लाइसेंस देकर प्रशिक्षण भी दिया गया. सूबे में पहली बार ताड़ और खजूर के रस से नीरा बनाने की पहल की गई. इससे उद्योग विभाग के साथ उत्पाद विभाग को भी जोड़ा गया. नीरा और गुड़ बनाने का काम भी शुरु हुआ. 880 लीटर नीरा की सफलतापूर्वक प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भी हुई. लेकिन अफसोस, आज यह बंदी के कगार पर खड़ा है.

बंद हने के कगार पर नालंदा का नीरा प्लांट

जिले के सभी सेलिंग प्वाइंट हुए बंद
इस संदर्भ में प्रोजेक्ट मैनेजर जगत नारायण सिंह ने बताया, इस प्लांट में 25 कर्मचारी काम नहीं रहने के कारण बैठे रहते हैं. नीरा चिलिंग प्लांट के लिए कम से कम 500 लीटर नीरा की आवश्यकता थी. लेकिन नीरा का रस नहीं मिलने से प्रोसेसिंग और पैकेजिंग बंद है. साथ ही जिले के सभी 51 सेलिंग प्वाइंट पर इसकी सेलिंग बंद पड़ी है. जिलाधिकारी का योगेंद्र सिंह का भी मानना है कि इस वर्ष नीरा के उत्पादन में समस्याएं आ रही हैं.

नालंदा: बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद नीरा योजना चालू की गई, इसका जमकर प्रचार-प्रसार भी हुआ. लेकिन सीएम के गृह जिले नालंदा में इस महत्वाकांक्षी योजना ने मात्र 2 साल में ही दम तोड़ दिया.

नालंदा मुख्यालय स्थित बिहारशरीफ के बाजार समिति प्रांगण में करोड़ों रुपए की लागत से सूबे का पहला नीरा प्लांट लगाया गया. जो अब पूरी तरह से ठप हो चुका है. यहां प्रोसेसिंग और पैकेजिंग का काम पूरी तरह से बंद है. स्थिति ऐसी है कि नीरा प्लांट बंद होने के कगार पर है. इसके साथ ही तार, खजूर के व्यवसाय से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने का सपना भी ध्वस्त होता नजर आ रहा है. इस प्लांट की शुरूआत मार्च 2017 में की गई थी.

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जगत नारायण सिंह (प्रोजेक्ट मैनेजर)

नीरा का रस नहीं मिलने से ठप पड़ा प्रोसेसिंग
इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए जीविका समूह को नीरा संग्रह का जिम्मा दिया गया. इसके लिए ताड़ के पेड़ से उत्पाद प्लांट तक लाने की जिम्मेवारी सौंपी गई. नीरा के लिए जिले में ताड़-खजूर व्यवसाय से जुड़े करीब 800 लोगों को लाइसेंस देकर प्रशिक्षण भी दिया गया. सूबे में पहली बार ताड़ और खजूर के रस से नीरा बनाने की पहल की गई. इससे उद्योग विभाग के साथ उत्पाद विभाग को भी जोड़ा गया. नीरा और गुड़ बनाने का काम भी शुरु हुआ. 880 लीटर नीरा की सफलतापूर्वक प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भी हुई. लेकिन अफसोस, आज यह बंदी के कगार पर खड़ा है.

बंद हने के कगार पर नालंदा का नीरा प्लांट

जिले के सभी सेलिंग प्वाइंट हुए बंद
इस संदर्भ में प्रोजेक्ट मैनेजर जगत नारायण सिंह ने बताया, इस प्लांट में 25 कर्मचारी काम नहीं रहने के कारण बैठे रहते हैं. नीरा चिलिंग प्लांट के लिए कम से कम 500 लीटर नीरा की आवश्यकता थी. लेकिन नीरा का रस नहीं मिलने से प्रोसेसिंग और पैकेजिंग बंद है. साथ ही जिले के सभी 51 सेलिंग प्वाइंट पर इसकी सेलिंग बंद पड़ी है. जिलाधिकारी का योगेंद्र सिंह का भी मानना है कि इस वर्ष नीरा के उत्पादन में समस्याएं आ रही हैं.

Intro:नालंदा। बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद सरकार द्वारा महत्वपूर्ण योजना नीरा को चालू किया गया था। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना महज 2 साल में ही पूरी तरह से धराशाई हो चुकी है । सूबे का पहला बिहार शरीफ का नीरा प्लांट पूरी तरह से ठप हो चुका है और यहां प्रोसेसिंग और पैकेजिंग का काम पूरी तरह से बंद है। बिहार शरीफ के बाजार समिति के प्रांगण में करोड़ों रुपए की लागत से बनाए गए नीरा प्लांट आज पूरी तरह से बंद के कगार पर पहुंच चुका है।
तार और खजूर के पेड़ से निकलने वाले ताजे रस को नीरा कहा जाता है । जब यही रस काफी देर तक बाहर रह जाता तो इसमें फर्मेंटेशन हो जाता है और यह ताड़ी बन जाता है नीरा पीने से ताजगी महसूस होता है जबकि ताड़ी पीने से हल्का नशा होता है । नीरा पीने में मीठा होता जबकि ताड़ी खट्टा और कड़वा होता है।


Body:बिहार शरीफ के बाजार समिति प्रांगण में मार्च 2017 में नीरा चिलिंग पॉइंट स्थापित किया गया था। यहां नीरा की सफलतापूर्वक प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग का भी काम शुरू कर दिया गया था। प्लांट स्थापना में सरकार का करोड़ों रुपए खर्च भी किया गया ।उम्मीद किया गया था कि ताड़ और खजूर के पेड़ से जुड़े लोगों को इससे रोजगार मिलेगा और इस व्यवसाय से जुड़े लोग सीधे सरकार से जुड़कर अपना व्यवसाय कर पाएंगे लेकिन महज 2 वर्षों के दौरान ही यह व्यवसाय अब दम तोड़ता नजर आ रहा है।
सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना से विभिन्न विभागों को जोड़ा गया जिसमें जीविका समूह को सभी प्रखंड से नीरा संग्रह की व्यवस्था करने और व्यवहारिक सुविधा के अनुसार रूट लाइन बना लेने का निर्देश मिला था । जीविका समूह द्वारा ताड़ के पेड़ वाले उत्पादक को समूह बनाया गया था और नीरा को प्लांट तक लाने की जवाबदेही सौंपी गई थी।
नीरा उत्पादन के लिए जीविका समूह के माध्यम से ताड़ी और खजूर के पेड़ से जुड़े लोगों को नीरा उतारने व बेचने का लाइसेंस भी दिया गया। नालंदा जिले के करीब 800 लोगों को लाइसेंस निर्गत किया गया। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को प्रशिक्षण भी देने का काम किया गया था।
इसी प्रकार कॉमफेड के अधिकारियों को तैयार सामग्रियों को बाजार में बेचने का निर्देश दिया गया था। उद्योग विभाग को नीरा और गुड़ बनाने के लिए लाइसेंस निर्गत करने का काम सौंपा गया था। वही उत्पाद विभाग को भी इससे जुड़ा गया था। जिसके बाद बिहार में पहली बार ताड़ और खजूर के रस से नीरा और गुड़ बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया । नालंदा जिले में पहली बार इस चिलिंग प्लांट से 880 लीटर नीरा की सफलतापूर्वक प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग भी की गए । प्लांट में जिले के विभिन्न प्रखंडों से निरा को लाया गया था। पैकेजिंग और प्रोसेसिंग के बाद बाजार में बेचा भी गया था।
नीरा चिलींग प्लांट को चालू रखने के लिए कम से कम 500 लीटर नीरा की आवश्यकता थी । इस चिलिंग पॉइंट में प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के बाद उत्पादित नीरा को बाजार में बेचने के लिए नालंदा जिले में 51 सेलिंग प्वाइंट भी बनाया गया था। लेकिन आज सभी सेलिंग प्वाइंट पर या तो बंद हो चुका है या वहां बिस्कुट या अन्य सामग्री की बिक्री शुरू हो गई है।
इस प्लांट में फिलहाल 25 कर्मचारी कार्यरत हैं लेकिन काम के अभाव में यूं ही बैठे रहते हैं । जीविका समूह द्वारा पूरी तरह से हाथ खड़ा कर दिया गया है और नीरा को प्लांट में नहीं पहुंचाने का काम किया जा रहा है जिससे यहां काम करने वाले लोग यूं ही बैठ समय काटने को मजबूर है ।
बाइट। जगत नारायण सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर


Conclusion:मार्च 2017 में शुरू हुए नीरा प्रोसेसिंग प्लांट पर सरकार का करोड़ों रुपए खर्च किया जा चुका है लेकिन आज यह व्यवसाय दम तोड़ता नजर आ रहा है । इस प्लांट से किसी प्रकार का फायदा होता नहीं दिख रहा है आज भी खुले तौर पर ताड़ी बेचने का काम किया जा रहा है। जिला अधिकारी योगेंद्र सिंह ने भी माना कि इस वर्ष नीरा के उत्पादन में कुछ दिक्कतें हुई है।
बाइट। योगेंद्र सिंह, जिलाधिकारी नालंदा
Last Updated : Jun 28, 2019, 11:13 AM IST
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