नालंदा: बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद नीरा योजना चालू की गई, इसका जमकर प्रचार-प्रसार भी हुआ. लेकिन सीएम के गृह जिले नालंदा में इस महत्वाकांक्षी योजना ने मात्र 2 साल में ही दम तोड़ दिया.
नालंदा मुख्यालय स्थित बिहारशरीफ के बाजार समिति प्रांगण में करोड़ों रुपए की लागत से सूबे का पहला नीरा प्लांट लगाया गया. जो अब पूरी तरह से ठप हो चुका है. यहां प्रोसेसिंग और पैकेजिंग का काम पूरी तरह से बंद है. स्थिति ऐसी है कि नीरा प्लांट बंद होने के कगार पर है. इसके साथ ही तार, खजूर के व्यवसाय से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने का सपना भी ध्वस्त होता नजर आ रहा है. इस प्लांट की शुरूआत मार्च 2017 में की गई थी.
नीरा का रस नहीं मिलने से ठप पड़ा प्रोसेसिंग
इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए जीविका समूह को नीरा संग्रह का जिम्मा दिया गया. इसके लिए ताड़ के पेड़ से उत्पाद प्लांट तक लाने की जिम्मेवारी सौंपी गई. नीरा के लिए जिले में ताड़-खजूर व्यवसाय से जुड़े करीब 800 लोगों को लाइसेंस देकर प्रशिक्षण भी दिया गया. सूबे में पहली बार ताड़ और खजूर के रस से नीरा बनाने की पहल की गई. इससे उद्योग विभाग के साथ उत्पाद विभाग को भी जोड़ा गया. नीरा और गुड़ बनाने का काम भी शुरु हुआ. 880 लीटर नीरा की सफलतापूर्वक प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भी हुई. लेकिन अफसोस, आज यह बंदी के कगार पर खड़ा है.
जिले के सभी सेलिंग प्वाइंट हुए बंद
इस संदर्भ में प्रोजेक्ट मैनेजर जगत नारायण सिंह ने बताया, इस प्लांट में 25 कर्मचारी काम नहीं रहने के कारण बैठे रहते हैं. नीरा चिलिंग प्लांट के लिए कम से कम 500 लीटर नीरा की आवश्यकता थी. लेकिन नीरा का रस नहीं मिलने से प्रोसेसिंग और पैकेजिंग बंद है. साथ ही जिले के सभी 51 सेलिंग प्वाइंट पर इसकी सेलिंग बंद पड़ी है. जिलाधिकारी का योगेंद्र सिंह का भी मानना है कि इस वर्ष नीरा के उत्पादन में समस्याएं आ रही हैं.