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Malmas Mela 2023: राजगीर के सरस्वती कुंड में स्नान का है खास महत्व, मलमास में ये बन जाती है पाताल गंगा के समान

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Published : Jul 19, 2023, 2:20 PM IST

नालंदा के राजगीर में मलमास मेला की शुरुआत हो गई है. ऐसे में दूर-दूर से श्रद्धालु सरस्वती कुंड में डूबकी लगाने पहुंच रहे हैं. इस जगह को लेकर मलमास महीने में खास विशेष है. इस महीने में ये पाताल गंगा समान बन जाती है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

राजगीर में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड घाट
राजगीर में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड घाट
राजगीर में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड घाट

नालंदा: बिहार के नालंदा के राजगीर में मलमास मेला को लेकर श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है. सरस्वती नदी कुंड घाट पर बनारस घाट के तर्ज पर प्लेटफार्म बनाया गया है. राजगृह कुंड तीर्थ पुरोहित रक्षार्थ पंडा कमेटी ने इसकी तैयारियां पूरी कर ली है. पंडा कमेटी के सचिव विकास उपाध्याय ने बताया कि बुधवार की संध्या महाआरती का भव्य आयोजन किया गया है. जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सीएम नीतीश कुमार शामिल होंगे. वहीं सिमरिया काली घाट के संत शिरोमणि करपात्री अग्निहोत्री चिदात्मन महाराज उर्फ बाबा फलाहारी सहित बनारस के पुजारी और विभिन्न स्थानों से पहुंचे सभी साधु-संत इसमें शिरकत करेंगे.

पढ़ें-Malmas Mela 2023: राजगीर मलमास मेला की शुरुआत, 52 जल धाराओं में श्रद्धालु करेंगे स्नान

वेद पुराणों में सरस्वती कुंड का महत्व: उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी कुंड घाट के पूर्वी हिस्से में भगवान शिव की एक प्रतिमा स्थापित की गई है. पुरुषोत्तम मास मेला में राजगीर के पौराणिक सरस्वती नदी कुंड सह घाट की पौराणिक महत्व की गाथा वेद पुराणों में है. जिसमें इस नदी की महिमा का बखान है. पुरुषोत्तम मास मेले में यह पाताल गंगा समान बन जाती है. वहीं बौद्ध साहित्य में इसे सप्पणी कहा गया है.

डूबकी लगाने से मिलता है ये फल: पुरुषोत्तम मास मेले में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड के शीतल जल में डूबकी लगाकर श्रद्धालु तृप्त हो जाते हैं. वायुपुराण और स्कन्दपुराण में सरस्वती नदी की महिमा का वर्णन उल्लेखनीय है. ऐसा कहा जाता है कि जब मलमास अपनी पीड़ा जाहिर करने बैकुंठ धाम में श्री हरि नारायण के समक्ष पहुंचे थे. श्री हरिनारायण ने मलमास को पुरुषोत्तम मास की संज्ञा दी थी. मलमास को पुरुषोत्तम में शुद्ध करने के तहत जिस अनुष्ठान की जरुरत थी, उसके लिए राजगीर में जलस्रोतों का अभाव था.

बौद्ध साहित्य में है ये नाम: अनुष्ठान में पहुंचे महर्षियों ने स्नान करने के लिए पवित्र जलधारा की इच्छा जाहिर की. ब्रह्म के आशीर्वाद से राजगीर तीर्थ क्षेत्र में शीतल और गर्म जलधाराएं फूट पड़ी. बौद्ध साहित्य में सरस्वती नदी का नाम सप्पणी नदी हुआ करता था. भगवान बुद्ध ने सरस्वती नदी के किनारे कुछ परिव्राजकों यानी भिक्षाटन कर जीवन निर्वाह करने वाले व्रतधारी संन्यासी से भेंट किया था. वो इसी नदी का जल ग्रहण कर आगे बढ़े थे.

राजगीर में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड घाट

नालंदा: बिहार के नालंदा के राजगीर में मलमास मेला को लेकर श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है. सरस्वती नदी कुंड घाट पर बनारस घाट के तर्ज पर प्लेटफार्म बनाया गया है. राजगृह कुंड तीर्थ पुरोहित रक्षार्थ पंडा कमेटी ने इसकी तैयारियां पूरी कर ली है. पंडा कमेटी के सचिव विकास उपाध्याय ने बताया कि बुधवार की संध्या महाआरती का भव्य आयोजन किया गया है. जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सीएम नीतीश कुमार शामिल होंगे. वहीं सिमरिया काली घाट के संत शिरोमणि करपात्री अग्निहोत्री चिदात्मन महाराज उर्फ बाबा फलाहारी सहित बनारस के पुजारी और विभिन्न स्थानों से पहुंचे सभी साधु-संत इसमें शिरकत करेंगे.

पढ़ें-Malmas Mela 2023: राजगीर मलमास मेला की शुरुआत, 52 जल धाराओं में श्रद्धालु करेंगे स्नान

वेद पुराणों में सरस्वती कुंड का महत्व: उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी कुंड घाट के पूर्वी हिस्से में भगवान शिव की एक प्रतिमा स्थापित की गई है. पुरुषोत्तम मास मेला में राजगीर के पौराणिक सरस्वती नदी कुंड सह घाट की पौराणिक महत्व की गाथा वेद पुराणों में है. जिसमें इस नदी की महिमा का बखान है. पुरुषोत्तम मास मेले में यह पाताल गंगा समान बन जाती है. वहीं बौद्ध साहित्य में इसे सप्पणी कहा गया है.

डूबकी लगाने से मिलता है ये फल: पुरुषोत्तम मास मेले में पौराणिक सरस्वती नदी कुंड के शीतल जल में डूबकी लगाकर श्रद्धालु तृप्त हो जाते हैं. वायुपुराण और स्कन्दपुराण में सरस्वती नदी की महिमा का वर्णन उल्लेखनीय है. ऐसा कहा जाता है कि जब मलमास अपनी पीड़ा जाहिर करने बैकुंठ धाम में श्री हरि नारायण के समक्ष पहुंचे थे. श्री हरिनारायण ने मलमास को पुरुषोत्तम मास की संज्ञा दी थी. मलमास को पुरुषोत्तम में शुद्ध करने के तहत जिस अनुष्ठान की जरुरत थी, उसके लिए राजगीर में जलस्रोतों का अभाव था.

बौद्ध साहित्य में है ये नाम: अनुष्ठान में पहुंचे महर्षियों ने स्नान करने के लिए पवित्र जलधारा की इच्छा जाहिर की. ब्रह्म के आशीर्वाद से राजगीर तीर्थ क्षेत्र में शीतल और गर्म जलधाराएं फूट पड़ी. बौद्ध साहित्य में सरस्वती नदी का नाम सप्पणी नदी हुआ करता था. भगवान बुद्ध ने सरस्वती नदी के किनारे कुछ परिव्राजकों यानी भिक्षाटन कर जीवन निर्वाह करने वाले व्रतधारी संन्यासी से भेंट किया था. वो इसी नदी का जल ग्रहण कर आगे बढ़े थे.

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