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Makar Sankranti 2023: नालंदा का 'भूरा' देश-विदेश में फेमस, मकर संक्रांति पर रहती है भारी मांग - नालंदा का प्रसिद्ध भूरा

नालंदा के भूरा की मांग (Heavy demand of Nalanda Bhoora) प्रदेश ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी है. लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं. इसके कई फायदे भी हैं. खासकर मकर संक्रांति के अवसर पर भूरा की मांग बढ़ा जाती है. यह बाजार में 50 से लेकर 10 रुपये किलो तक में उपब्ध है. पढ़ें पूरी खबर..

नालंदा का भूरा
नालंदा का भूरा
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Published : Jan 14, 2023, 5:28 PM IST

नालंदा का 'भूरा' देश-विदेश में फेमस

नालंदा: बिहार के नालंदा में मकर संक्रांति के मौके पर दही चूड़ा और तिलकुट के अलावा भूरा (Heavy demand of Nalanda Bhoora on Makar Sankranti) का खूब उपयोग होता है. इसका उत्पादन सिर्फ बिहार के नालंदा में किया जाता है. मुख्यालय बिहार शरीफ के मथुरिया मोहल्ले में बनने वाला भूरा काफी प्रसिद्ध है. इसकी डिमांड विदेशों तक है. यूं तो सालो भर भूरा की बिक्री होती है, लेकिन मकर संक्रांति पर इसकी मांग काफी बढ़ जाती है. बाजार में कई तरह का भूरा उपलब्ध है.

ये भी पढ़ेंः Makar Sankranti Festival: 50 टन दही खा जाएंगे गया जोन के लोग, मकर संक्रांति आज और कल

बिहार शरीफ के मथुरिया में होता है भूरा का निर्माणः बिहार शरीफ के मथुरिया मोहल्ले में भूरा बनाने के दर्जनों कारखाने और दुकान मौजूद हैं. जहां कारीगर घंटों भूरा बनाने में लगे रहते हैं. भूरा सिर्फ मकर संक्रांति ही नहीं बल्कि अन्य दिनों भी लोग बड़े ही चाव से खाते हैं. लेकिन, मकर संक्रांति के मौके पर इसकी डिमांड बढ़ जाती है. यह नालंदा सहित बिहार के कई जिले में जाता है. इसके अलावा भूरा दिल्ली, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उड़ीसा के साथ विदेश भी जाता है.

20 किलो भूरा बनाने में लगता है आधा घंटा समयः 20 किलो भूरा बनाने में 15 किलो गुड़ और आधे घण्टे का समय लगता है. भूरा बनाने के लिए पहले गुड़ को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है. उसके बाद कड़ाहे में आधे घंटे तक खौलाकर चाशनी बनाया जाता है. फिर इसमें थोड़ा सोडा का इस्तेमाल कर भुरभुरा किया जाता है. अलग-अलग तरह का भूरा बनाने के लिए इसमें अलग-अलग फ्लेवर भी मिलाया जाता है. इसके बाद प्लेन चादर पर उड़ेल कर बारीकी से चूर्ण बनाया जाता है. तब जाकर बाजार में भूरा आम लोगों के लिए उपलब्ध होता है.

चार-पांच तरह का भूरा बाजार में उपलब्धः भूरा त्यौहार के मौके पर ₹60 से ₹100 तक बिकती है. जबकि, इलायची वाला भूरा जहां थोक में 60 रुपए किलो तो वहीं सौंफ वाले भूरे की कीमत 55 और साधारण भूरे की कीमत 45 रुपए है. मथुरिया मोहल्ला निवासी दुकानदार विपीन कुमार बताते हैं कि वे लोग इस कारोबार में पिछले 40 वर्षों से जुड़े हुए हैं. पहले उनके चाचा अब वे खुद और उनके पिता भूरा बनाने के कारोबार में लगे हुए हैं. अभी तीन प्रकार के भूरे बन रहे हैं. इलायची,सौंफ और साधारण भूरा बन रहा है.

"पांच प्रकार का भूरा मेरे पास है. भूरा सालो भर डिमांड में रहता है, लेकिन मकर संक्रांति पर इसकी ज्यादा मांग होती है. इसे शुगर पेशेंट भी खा सकते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है. 50 रुपये किलो से भूरे की कीमत शुरू हो जाती है" - विपीन कुमार, व्यवसाय

पुराने कारीगर ही कर रहे भूरा निर्माणः मगही गुड़ मध्य प्रदेश से मंगाकर भूरा बनाया जाता है. मकर संक्रांति को लेकर भूरा की डिमांड बढ़ गई है. इसे लेकर हर दिन 6 से 7 क्विंटल का उत्पादन हो रहा है. भूरा को वैसे लोग भी खा सकते है, जो सुगर पेशेंट हैं. और इसके फ़ायदे यह भी है कि खून को साफ करता है. गले को साफ रखता है. विपिन ने बताया कि हालांकि अब नए कारीगर नहीं मिल रहे हैं, जो पुराने कारीगर हैं. वही इस कारोबार में लगे हुए हैं.

"आधा घंटा में भूरा तैयार हो जाता है. इसे गलाकर चाशनी बनाई जाती है. फिर सोडा मिलाकर ठंडाकर कूटकर आधा घंटा में तैयार कर लिया जाता है. इस काम में मैं 15-16 साल की उम्र से जुड़ा हूं. इसे दिल्ली, रांची और देश के अन्य जगहों पर भेजा जाता है. मकरसंक्रांति पर इसकी ज्यादा मांग होती है" - अजय कुमार, कारीगर

नालंदा का 'भूरा' देश-विदेश में फेमस

नालंदा: बिहार के नालंदा में मकर संक्रांति के मौके पर दही चूड़ा और तिलकुट के अलावा भूरा (Heavy demand of Nalanda Bhoora on Makar Sankranti) का खूब उपयोग होता है. इसका उत्पादन सिर्फ बिहार के नालंदा में किया जाता है. मुख्यालय बिहार शरीफ के मथुरिया मोहल्ले में बनने वाला भूरा काफी प्रसिद्ध है. इसकी डिमांड विदेशों तक है. यूं तो सालो भर भूरा की बिक्री होती है, लेकिन मकर संक्रांति पर इसकी मांग काफी बढ़ जाती है. बाजार में कई तरह का भूरा उपलब्ध है.

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बिहार शरीफ के मथुरिया में होता है भूरा का निर्माणः बिहार शरीफ के मथुरिया मोहल्ले में भूरा बनाने के दर्जनों कारखाने और दुकान मौजूद हैं. जहां कारीगर घंटों भूरा बनाने में लगे रहते हैं. भूरा सिर्फ मकर संक्रांति ही नहीं बल्कि अन्य दिनों भी लोग बड़े ही चाव से खाते हैं. लेकिन, मकर संक्रांति के मौके पर इसकी डिमांड बढ़ जाती है. यह नालंदा सहित बिहार के कई जिले में जाता है. इसके अलावा भूरा दिल्ली, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उड़ीसा के साथ विदेश भी जाता है.

20 किलो भूरा बनाने में लगता है आधा घंटा समयः 20 किलो भूरा बनाने में 15 किलो गुड़ और आधे घण्टे का समय लगता है. भूरा बनाने के लिए पहले गुड़ को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है. उसके बाद कड़ाहे में आधे घंटे तक खौलाकर चाशनी बनाया जाता है. फिर इसमें थोड़ा सोडा का इस्तेमाल कर भुरभुरा किया जाता है. अलग-अलग तरह का भूरा बनाने के लिए इसमें अलग-अलग फ्लेवर भी मिलाया जाता है. इसके बाद प्लेन चादर पर उड़ेल कर बारीकी से चूर्ण बनाया जाता है. तब जाकर बाजार में भूरा आम लोगों के लिए उपलब्ध होता है.

चार-पांच तरह का भूरा बाजार में उपलब्धः भूरा त्यौहार के मौके पर ₹60 से ₹100 तक बिकती है. जबकि, इलायची वाला भूरा जहां थोक में 60 रुपए किलो तो वहीं सौंफ वाले भूरे की कीमत 55 और साधारण भूरे की कीमत 45 रुपए है. मथुरिया मोहल्ला निवासी दुकानदार विपीन कुमार बताते हैं कि वे लोग इस कारोबार में पिछले 40 वर्षों से जुड़े हुए हैं. पहले उनके चाचा अब वे खुद और उनके पिता भूरा बनाने के कारोबार में लगे हुए हैं. अभी तीन प्रकार के भूरे बन रहे हैं. इलायची,सौंफ और साधारण भूरा बन रहा है.

"पांच प्रकार का भूरा मेरे पास है. भूरा सालो भर डिमांड में रहता है, लेकिन मकर संक्रांति पर इसकी ज्यादा मांग होती है. इसे शुगर पेशेंट भी खा सकते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है. 50 रुपये किलो से भूरे की कीमत शुरू हो जाती है" - विपीन कुमार, व्यवसाय

पुराने कारीगर ही कर रहे भूरा निर्माणः मगही गुड़ मध्य प्रदेश से मंगाकर भूरा बनाया जाता है. मकर संक्रांति को लेकर भूरा की डिमांड बढ़ गई है. इसे लेकर हर दिन 6 से 7 क्विंटल का उत्पादन हो रहा है. भूरा को वैसे लोग भी खा सकते है, जो सुगर पेशेंट हैं. और इसके फ़ायदे यह भी है कि खून को साफ करता है. गले को साफ रखता है. विपिन ने बताया कि हालांकि अब नए कारीगर नहीं मिल रहे हैं, जो पुराने कारीगर हैं. वही इस कारोबार में लगे हुए हैं.

"आधा घंटा में भूरा तैयार हो जाता है. इसे गलाकर चाशनी बनाई जाती है. फिर सोडा मिलाकर ठंडाकर कूटकर आधा घंटा में तैयार कर लिया जाता है. इस काम में मैं 15-16 साल की उम्र से जुड़ा हूं. इसे दिल्ली, रांची और देश के अन्य जगहों पर भेजा जाता है. मकरसंक्रांति पर इसकी ज्यादा मांग होती है" - अजय कुमार, कारीगर

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