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VIDEO: तपती टीन, जमीन पर क्लास, इस सरकारी स्कूल में बच्चे झेलते हैं बदइंतजामी का 'टॉर्चर' - नालंदा में बच्चें जमीम पर बैठने को मजबूर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में स्कूली छात्र बुनियादी सुविधाएं न मिल पाने के कारण परेशान है. स्कूल में न पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की, विद्यालय का भवन भी जर्जर है.

नालंदा में झोपड़ी के अंदर सरकारी स्कूल
नालंदा में झोपड़ी के अंदर सरकारी स्कूल
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Published : Sep 23, 2022, 6:03 AM IST

नालंदा: कोरोना महामारी (Coronavirus pandemic in bihar) के बाद एक ओर जहां ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिला है, वहीं बिहार के नालंदा में छात्र स्कूल की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित है. मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले (Chief Minister Nitish Kumar) नालंदा का है. जहां के शिक्षा व्यवस्था की खस्ता हालत सरकार के दावों की पोल खोल रही है.

ये भी पढ़ें- बिहार में स्कूल बना मदिरालय! पुलिस ने जब्त की 140 कार्टन विदेशी शराब

तपती टीन के नीचे बैठने को मजबूर छात्र: नालंदा के थरथरी प्रखंड के अमेरा पंचायत अंतर्गत संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय अमेरा (Sanskrit Primary Middle School Amera in Nalanda) में छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है. इस स्कूल में कुल 180 बच्चों का नामांकन दर्ज है. जिसमें से 50 से 60 बच्चें रोजाना स्कूल आकर पढ़ना तो चाहतें है. लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं. स्कूल का भवन पूरी तरह से जर्जर है. वहीं तपती गर्मी में छात्र टीन की छत के नीचे बैठेने को मजबूर हैं.

न टेबल, न बेंच, जमीन पर बैठकर पढ़तें है छात्र: स्कूल में छात्रों के बैठने की भी व्यवस्था नहीं है. स्कूल में न टेबल है और न ही बेंच, छात्र जमीन पर ही बोरा बिछाकर बैठने को मजबूर हैं. जरा सोचिए कि ये हाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले का है तो बिहार के बाकी के जिलों की क्या हालत होगी.

"इस स्कूल में ना तो एक भी चांपाकल, टॉयलेट और ना ही बिजली की व्यवस्था है. इस स्कूल में 180 बच्चों का नामांकन दर्ज है प्रतिदिन यहां 50, 60 बच्चे पढ़ाई करने के लिए आते हैं. लेकिन कमरा कम रहने के कारण बच्चे बरामदे में बैठकर पढ़ते हैं".- रिंकी कुमारी, शिक्षिका

शिक्षा विभाग ने भी नहीं ली सुध : बताया जा रहा है कि इस स्कूल में लगभग 180 बच्चों का नामांकन हैं. जिसमें रोजाना 50 से 60 बच्चें पढ़ने के लिए आते हैं. वहीं इस विद्यालय में मात्र एक शिक्षिका और एक शिक्षक के अलावा एक रसोईया हैं, लेकिन इस स्कूल में ना टॉयलेट की व्यवस्था है ना पानी की और ना ही बिजली की. बिजली ना होने से बच्चें टीन के नीचें बिना पंखें के ही बैठते हैं. स्कूल का हाल बेहाल होने के बाद भी शिक्षा विभाग के कोई भी आला अधिकारी इसकी सुध बुध लेने नहीं पहुंच रहे हैं.

"हम पिछले दस साल से यहां काम कर रहे हैं, पहले यहां छः शिक्षक और शिक्षिका थी अब तो दो हैं. ना पानी है, ना बिजली, ना पक्का जमीन, मिट्टी पर ही बच्चे बैठ कर पढ़तें हैं. तेज हवा और बारिश होती है तो बच्चें और हम लोग डर जाते हैं".-रूक्मणी देवी, रसोइया

ये भी पढ़ें- वैशाली में विद्यालय बना मदिरालय! पुलिस ने जब्त की 140 कार्टन विदेशी शराब

नालंदा: कोरोना महामारी (Coronavirus pandemic in bihar) के बाद एक ओर जहां ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिला है, वहीं बिहार के नालंदा में छात्र स्कूल की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित है. मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले (Chief Minister Nitish Kumar) नालंदा का है. जहां के शिक्षा व्यवस्था की खस्ता हालत सरकार के दावों की पोल खोल रही है.

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तपती टीन के नीचे बैठने को मजबूर छात्र: नालंदा के थरथरी प्रखंड के अमेरा पंचायत अंतर्गत संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय अमेरा (Sanskrit Primary Middle School Amera in Nalanda) में छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है. इस स्कूल में कुल 180 बच्चों का नामांकन दर्ज है. जिसमें से 50 से 60 बच्चें रोजाना स्कूल आकर पढ़ना तो चाहतें है. लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं हैं. स्कूल का भवन पूरी तरह से जर्जर है. वहीं तपती गर्मी में छात्र टीन की छत के नीचे बैठेने को मजबूर हैं.

न टेबल, न बेंच, जमीन पर बैठकर पढ़तें है छात्र: स्कूल में छात्रों के बैठने की भी व्यवस्था नहीं है. स्कूल में न टेबल है और न ही बेंच, छात्र जमीन पर ही बोरा बिछाकर बैठने को मजबूर हैं. जरा सोचिए कि ये हाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले का है तो बिहार के बाकी के जिलों की क्या हालत होगी.

"इस स्कूल में ना तो एक भी चांपाकल, टॉयलेट और ना ही बिजली की व्यवस्था है. इस स्कूल में 180 बच्चों का नामांकन दर्ज है प्रतिदिन यहां 50, 60 बच्चे पढ़ाई करने के लिए आते हैं. लेकिन कमरा कम रहने के कारण बच्चे बरामदे में बैठकर पढ़ते हैं".- रिंकी कुमारी, शिक्षिका

शिक्षा विभाग ने भी नहीं ली सुध : बताया जा रहा है कि इस स्कूल में लगभग 180 बच्चों का नामांकन हैं. जिसमें रोजाना 50 से 60 बच्चें पढ़ने के लिए आते हैं. वहीं इस विद्यालय में मात्र एक शिक्षिका और एक शिक्षक के अलावा एक रसोईया हैं, लेकिन इस स्कूल में ना टॉयलेट की व्यवस्था है ना पानी की और ना ही बिजली की. बिजली ना होने से बच्चें टीन के नीचें बिना पंखें के ही बैठते हैं. स्कूल का हाल बेहाल होने के बाद भी शिक्षा विभाग के कोई भी आला अधिकारी इसकी सुध बुध लेने नहीं पहुंच रहे हैं.

"हम पिछले दस साल से यहां काम कर रहे हैं, पहले यहां छः शिक्षक और शिक्षिका थी अब तो दो हैं. ना पानी है, ना बिजली, ना पक्का जमीन, मिट्टी पर ही बच्चे बैठ कर पढ़तें हैं. तेज हवा और बारिश होती है तो बच्चें और हम लोग डर जाते हैं".-रूक्मणी देवी, रसोइया

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