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CM Nitish के गृह जिले नालंदा का हाल देखिए, नाव से बच्चे जाते हैं स्कूल, लगता है डर

बिहार में शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर कुछ हद तक सुधरती नजर आ रही है. शिक्षा विभाग में केके पाठक की नियुक्ति या यूं कह ले सख्ती के बाद से स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति तो बढ़ गई है, लेकिन अभी भी बच्चों को स्कूल तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. एक ऐसी हैरान करने वाली तस्वीर नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से आई है, जहां बच्चे जान जोखिम में डाल कर टूटे नाव के सहारे स्कूल जाते हैं. इलाके के लोग आज भी एक अदद पुल के लिए तरस रहे हैं.

नालंदा में जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते बच्चे
नालंदा में जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते बच्चे
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 17, 2023, 1:09 PM IST

Updated : Oct 17, 2023, 2:48 PM IST

नालंदा में जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते बच्चे

नालंदा: मुजफ्फरपुर नाव हादसे की तस्वीर अभी धुंधली भी नहीं हुई थी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले से एक ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने सबको हैरान कर दिया. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए लगातार एक्शन ले रहे हैं. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने को लेकर नाम काटने तक की कार्रवाई की गई. बच्चों की उपस्थिति भी बढ़ी लेकिन सवाल तो ये है कि आखिर बच्चे स्कूल जाएंगे कैसे?. बिहारशरीफ मुख्यालय से 25 किमी दूर स्थित गिरियक प्रखंड के गाजीपुर पंचायत में स्कूल जाने के लिए न कोई सड़क है न ही कोई पुल. यहां बच्चे अपनी जान जोखिम में डाल कर खुद ही नाव खेपकर स्कूल जाने को मजबूर हैं.

ये भी पढ़ें: देख लीजिए KK Pathak जी.. बक्सर के इस स्कूल में हेलमेट पहनकर आते हैं गुरुजी.. अभिभावक मांग रहे सुरक्षा की गारंटी

जान हथेली पर लेकर जाते हैं स्कूल: केके पाठक की शिक्षा प्रणाली से शिक्षक, छात्र और अभिभावक खुश हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. गाजीपुर पंचायत के लोग आज भी एक अदद पुल के लिए तरस रहे हैं. यहां सैकड़ो ग्रामीण रोजाना रोजमर्रा के कामों को लेकर शहरी इलाके जाते हैं, जिसके लिए एक मात्र रास्ता सकरी नदी है. नदी को पार करने के लिए नाव ही सहारा है. रोजाना सैकड़ो बच्चों को भी स्कूल जाने के लिए इसी नाव का सहारा लेना पड़ता है. स्कूल जाने के वक्त हमेशा बच्चों की जान हलक में अटकी होती है.

सकरी नदी पर पुल बनाने की शिकायत
सकरी नदी पर पुल बनाने की शिकायत

चुनाव के वक्त मिलता है आश्वासन: ग्रामीणों ने बताया कि हर साल लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के वक्त सांसद और विधायक इस सकरी नदी पर पुल बनाने को लेकर आश्वासन तो देते हैं लेकिन उनका यह आश्वासन चुनाव जीतने के बाद जुमला साबित होता है. इस तस्वीर ने एक बार फिर बिहार सरकार और शिक्षा विभाग को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. अब जरा ये भी सोचिए कि सुशासन बाबू के गृह जिला का ये हाल है तो बाकियों का क्या ही होगा ?

नालंदा में नाव से स्कूल जाते बच्चे
नालंदा में नाव से स्कूल जाते बच्चे

"कई बार सकरी नदी पर पुल बनाने की शिकायत हमने स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन से की लेकिन उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगा. सिर्फ चुनाव के समय वे लोग आश्वासन देते हैं तो चुनाव जीतने के बाद भूल जाते हैं. हमलोग अपनी और बच्चों की जान जोखिम में डाल कर इस पार से उस पार जाते हैं-" स्थानीय ग्रामीण

कब खुलेगी सरकार की नींद ? : सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि जिस नाव से बच्चे और ग्रामीण एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं वो भी ग्रामीणों के द्वारा सौ-सौ रुपए चंदा करके ही खरीदी गई है. इस तस्वीर को देखकर तो यही सवाल उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन यहां भी मुजफ्फरपुर नाव हादसे की तरह ही किसी बड़ी अप्रिय घटना का इंतजार कर रही है या फिर इसपर कुछ एक्शन लेगी ? अब ये तो देखने वाली ही बात होगी कि इस खबर का कितना असर पड़ता है ?

नालंदा में जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते बच्चे

नालंदा: मुजफ्फरपुर नाव हादसे की तस्वीर अभी धुंधली भी नहीं हुई थी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले से एक ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने सबको हैरान कर दिया. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए लगातार एक्शन ले रहे हैं. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने को लेकर नाम काटने तक की कार्रवाई की गई. बच्चों की उपस्थिति भी बढ़ी लेकिन सवाल तो ये है कि आखिर बच्चे स्कूल जाएंगे कैसे?. बिहारशरीफ मुख्यालय से 25 किमी दूर स्थित गिरियक प्रखंड के गाजीपुर पंचायत में स्कूल जाने के लिए न कोई सड़क है न ही कोई पुल. यहां बच्चे अपनी जान जोखिम में डाल कर खुद ही नाव खेपकर स्कूल जाने को मजबूर हैं.

ये भी पढ़ें: देख लीजिए KK Pathak जी.. बक्सर के इस स्कूल में हेलमेट पहनकर आते हैं गुरुजी.. अभिभावक मांग रहे सुरक्षा की गारंटी

जान हथेली पर लेकर जाते हैं स्कूल: केके पाठक की शिक्षा प्रणाली से शिक्षक, छात्र और अभिभावक खुश हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. गाजीपुर पंचायत के लोग आज भी एक अदद पुल के लिए तरस रहे हैं. यहां सैकड़ो ग्रामीण रोजाना रोजमर्रा के कामों को लेकर शहरी इलाके जाते हैं, जिसके लिए एक मात्र रास्ता सकरी नदी है. नदी को पार करने के लिए नाव ही सहारा है. रोजाना सैकड़ो बच्चों को भी स्कूल जाने के लिए इसी नाव का सहारा लेना पड़ता है. स्कूल जाने के वक्त हमेशा बच्चों की जान हलक में अटकी होती है.

सकरी नदी पर पुल बनाने की शिकायत
सकरी नदी पर पुल बनाने की शिकायत

चुनाव के वक्त मिलता है आश्वासन: ग्रामीणों ने बताया कि हर साल लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के वक्त सांसद और विधायक इस सकरी नदी पर पुल बनाने को लेकर आश्वासन तो देते हैं लेकिन उनका यह आश्वासन चुनाव जीतने के बाद जुमला साबित होता है. इस तस्वीर ने एक बार फिर बिहार सरकार और शिक्षा विभाग को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है. अब जरा ये भी सोचिए कि सुशासन बाबू के गृह जिला का ये हाल है तो बाकियों का क्या ही होगा ?

नालंदा में नाव से स्कूल जाते बच्चे
नालंदा में नाव से स्कूल जाते बच्चे

"कई बार सकरी नदी पर पुल बनाने की शिकायत हमने स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन से की लेकिन उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगा. सिर्फ चुनाव के समय वे लोग आश्वासन देते हैं तो चुनाव जीतने के बाद भूल जाते हैं. हमलोग अपनी और बच्चों की जान जोखिम में डाल कर इस पार से उस पार जाते हैं-" स्थानीय ग्रामीण

कब खुलेगी सरकार की नींद ? : सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि जिस नाव से बच्चे और ग्रामीण एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं वो भी ग्रामीणों के द्वारा सौ-सौ रुपए चंदा करके ही खरीदी गई है. इस तस्वीर को देखकर तो यही सवाल उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन यहां भी मुजफ्फरपुर नाव हादसे की तरह ही किसी बड़ी अप्रिय घटना का इंतजार कर रही है या फिर इसपर कुछ एक्शन लेगी ? अब ये तो देखने वाली ही बात होगी कि इस खबर का कितना असर पड़ता है ?

Last Updated : Oct 17, 2023, 2:48 PM IST
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