मुजफ्फरपुर: आमतौर पर हर साल फाल्गुन की बयार शुरू होने के साथ ही लीची के पेड़ मंजर से लद जाते थे. मगर इस साल बसंत पंचमी के गुजर जाने के बाद लीची के पेड़ों पर मंजर की जगह नए पत्ते निकल रहे हैं. जिससे इस बार जिले में लीची के पैदावार काफी कम होने के आसार दिख रहे हैं. इस नई परेशानी ने किसानों की आमदनी की उम्मीद पर पानी फेर दिया है.
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मंजर की जगह निकल रहे नए पत्ते
जिले के जिन इलाके में इस बार बाढ़ का पानी ज्यादा समय तक लगा रहा है, वहां की स्थिति और खराब है. यही वजह है कि मुजफ्फरपुर के बाढ़ प्रभावित इलाकों में लीची के मंजर काफी कम दिखाई दे रहे हैं. जिससे इस बार लीची उत्पादक किसान बेहद परेशान हैं.
लीची के कम उत्पादन की चिंता
मुजफ्फरपुर के मीनापुर, कांटी और झपहा में सबसे अधिक लीची उत्पादन होता है. इन इलाकों में इस बार लीची के पेड़ों पर बहुत ही कम मंजर आये हैं. इन इलाके के किसानों के अनुसार आमतौर पर सरस्वती पूजा के बाद ही लीची में मंजर पूरी तरह दिखाई देने लगते हैं, लेकिन इस साल ऐसा नहीं दिख रहा है.
किसान के माथे पर चिंता की लकीर
मुजफ्फरपुर के किसानों की माने तो इस बार खुद के खाने के लिए भी लीची मिल जाये इसकी भी संभावना कम है. लीची में मंजर नहीं आने से इस बार लीची के बाग खरीदने वाले व्यापारी भी बाग नहीं खरीद रहे हैं.
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किसानों की उम्मीदों पर फिरा पानी
बहरहाल, पिछले साल कोरोना की वजह से लीची को बाजार नहीं मिलने से नुकसान उठाने वाले मुजफ्फरपुर के लीची किसानों को इस बार लीची की फसल से बेहतर आमदनी की उम्मीद थी. लेकिन इसे मौसम की मार कहे या जलवायु परिवर्तन का असर जिस वजह से इस बार लीची के पेड़ों से गायब मंजर ने जिले के किसानों की उम्मीद पर पानी फेर दिया है. अफसोस इस बात का है कि किसानों के दर्द को समझने की सरकार के स्तर पर कोई पहल शुरू नहीं हो पाई है.