मुजफ्फरपुर: आज के दौर में महिलाएं पुरूषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है. ऐसा ही उदाहरण मुजफ्फरपुर की महिलाओं के एक समूह ने पेश किया है. कोरोना संक्रमण के कारण ऑक्सीजन की कमी के कारण जब लोगों की सांसें टूट रही थी तब उन्हें ''प्राणवायु'' देने का जिम्मा इन महिलाओं ने उठाया.
ये महिलाएं अब तक 45 से अधिक घरों में पहुंच कर संक्रमितों को मुफ्त में ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर पहुंचा चुकी हैं. साथ ही, होम आइसोलेशन में रह रहे परिवारों के लिए नाश्ता और खाना भी पहुंचा रही हैं.
महिलाओं को एकजुट करने वाली लाजो केड़िया बताती हैं कि यहां होम आइसोलेशन में रहने वाले संक्रमितों को काफी परेशानी हो रही थी. उन्होंने कहा कि लोगों की सांसें जब थम रही थी तो कहीं कोई ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो रहा था, ऐसे में उन्हें कंस्ट्रेटर उपलब्ध कराया जा रहा है. इन महिलाओं के सामने आने के बाद जिन घरों में कल तक बेचैनी थी, उन घरों में निश्चिन्तता है.
''करीब 25 दिनों में 45 से अधिक घरों में उनलोगों ने ऑक्सीजन पहुंचाया है, जिसमें से अधिकांश मरीज अब ठीक होने की स्थिति में हैं. कई तो निगटिव हो गए हैं. लोग परेशान थे, पैसे रहते लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रहा था. ऐसे में उन्हें कंस्ट्रेटर से ऑक्सीजन देने की जानकारी मिली और हमलोगों ने इसे खरीदने का निर्णय लिया.'' - लाजो केड़िया
...ताकि लोगों की सांसों को थामा जा सके
मुजफ्फरपुर की महिला संगठन ने तत्काल 12 कंस्ट्रेटर खरीदे. वे बताती हैं कि जब बिहार में कंस्ट्रेटर उपलब्ध नहीं थे, तो रिष्तेदारों की मदद से अन्य राज्यों और नेपाल से कंस्ट्रेटर खरीदे गए. उन्होंने कहा कि 11 ऑक्सीजन सिलेंडर भी मंगवाए गए, जिनसे लोगों की सांसों को थामा जा सके.
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संक्रमितों को 'जीवनदान' देने में लगी महिलाएं
लायंस क्लब की अलका अग्रवाल कहती हैं कि इस समूह में लायंस क्लब और मुजफ्फरपुर महिला मंच की महिलाएं हैं.
''जिन्हें में कंस्ट्रेटर या ऑक्सीजन दिया जाता है, उनसे प्रतिदिन शााम को फोनकर मरीजों का हालचाल भी लिया जाता है, जिससे उन्हें बीमारी से मुकाबला करने के लिए उत्साह बना रहे. मरीज को ठीक होने के बाद कंस्ट्रेटर वापस ले लिया जाता है. यह सेवा पूरी तरह निशुल्क 24 घंटे चल रही है. पूरे संचालन की व्यवस्था अनुराग हिसारिया के जिम्मे दी गई है, जो ऑक्सीजन सिलेंडर और कंस्ट्रेटर की व्यवस्था देखते हैं." - अलका अग्रवाल, सदस्य, लायंस क्लब
वहीं लाजो केड़िया कहती हैं कि, इस बीच यह भी देखने को मिला कि जब पूरे घर के सदस्य संक्रमित हो गए हों तो उनके सामने खाना बनाने की भी समस्या उत्पन्न होने लगी. इसके बाद हम महिलाओं ने ऐसे घरों में नाश्ता और खाना पहुंचाने का भी बीड़ा उठाया.
''नाश्ते में घरों में पाव भेज दिया जा रहा है जबकि खाने में रोटी, चावल और सब्जी भेजी जा रही है. इसके लिए सभी महिलाएं अपने-अपने घरों में रोटियां बनाते हैं और फिर एक जगह जमा करके संक्रमितों के घरों में पहुंचा दिया जाता है. उन्होंने बताया कि फिलहाल दिन में करीब 250 तथा रात में करीब 400 रोटियां बनाई जा रही हैं और ऐसे घरों में पहुंचाई जा रही है." - लाजो केड़िया
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'अब स्वस्थ होने वाले घरों में खुशियां लौट गई'
सपना अग्रवाल, आभा, वीणा, राजेश्वरी केड़िया, उर्मिला, निर्मला, विनिता कहती हैं कि सबसे खुशी की बात यह है कि ईश्वर के आशीर्वाद से अप्रैल में हमलोगों ने यह सेवा प्रारंभ की है, इसमें से अधिकांश लोग स्वस्थ हो रहे हैं. स्वस्थ होने वाले घरों में अब खुशियां लौट गई हैं.
इन महिलाओं के कारण स्वस्थ होने वाली एक महिला कहती हैं कि महिला चाह ले कुछ भी मुश्किल नहीं . आज इन महिलाओं के कारण ही घरों में खुशियां लौट रही हैं.