मुजफ्फरपुर: जलाशयों में भारी मात्रा में उगी जलकुंभी अब जलाशयों के विनाश का कारण बन रही है. इनके प्रभाव से ना केवल जल स्त्रोत समाप्त हो रहे हैं बल्कि उनमें पाए जाने वाले जलीय जीव भी समाप्त हो रहे हैं.
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मछली पालकों की आजीवका में बन रहा अवरोधक
अमेरिकी मूल का यह पौधा प्राय: स्थिर जल में पाया जाता है. अपने देश में यह हर जगह पाया जाता है. इसके पत्ते फूले हुए होते हैं जिस कारण यह जल पर तैरता रहता है. नीले बैंगनी रंग के इसके फूल काफी सुंदर दिखाई देते हैं.
कायिक जनन की प्रचुर क्षमता होने के कारण 10 से 12 दिन में पौधा अपनी संख्या दोगुनी कर लेता है. एक पौधा लगभग 5000 तक की संख्या में बीज उत्पन्न करता है जिससे यह कुछ ही समय में जलाशयों के पूरे क्षेत्र को ढंक लेता है. अपने इन्ही खासियत की वजह से अब जलकुंभी मछली उत्पादन की राह में सूबे के मछली पालकों के लिए आज सबसे बड़ा अवरोधक बन गया है.
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200 मछुआरों की आजीवका पर संकट का सवाल
जलकुंभी के हानिकारक विस्तार की बानगी मुजफ्फरपुर शहर के बीच में फैले सबसे बड़े जलाशय सिकंदरपुर मन की हालत को देखकर लगाया जा सकता है. जहां करीब 100 एकड़ में फैले इस बड़े जलाशय को जलकुंभी ने पूरी तरह ढक लिया है. जिससे इस बड़े जलाशय की मदद से मछलीपालन कर अपना पेट पालने वाले करीब 200 मछुआरों की आजीवका पर संकट का सवाल खड़ा हो गया है.
हानिकारक प्रभाव
दरअसल, जलकुंभी का पौधा अपने विस्तृत फैलाव के कारण जलाशय की पूरी सतह को ढंक लेती है जिससे सूर्य का प्रकाश जलाशय में गहराई तक जाने को कौन कहे सतह पर भी ठीक से नहीं पहुंच पाता. इससे जलमग्न पौधों तथा जीवों की जीवनचर्या बुरी तरह प्रभावित होती है. सतह के नीचे आक्सीजन न पहुंच पाने से मछली, घोंघे आदि जलीयजीव मरने लगते हैं. सबसे बुरा प्रभाव जलाशय के अस्तित्व पर पड़ता है.
नियंत्रण के उपाय में जुटे मछुआरे
जलकुंभी के सड़ने से पैदा हुआ मलबा जलाशय की तली में जमा होकर उसे पाटता रहता है. धीरे धीरे जलाशय की गहराई भी खत्म होने लगती है. यही वजह है की अब अपने खत्म होते आजीविका और मछली को बचाने के लिए मछुआरे अब अपने बलबूते पर इस जलाशय को साफ करने की मुहिम में जुट गए है.
लेकिन मछुआरों को इस बात का मलाल है की सरकार जलकर के नाम पर प्रत्येक वर्ष उनसे एक बड़ी रकम जरूर लेती है. लेकिन इस जलकुंभी के नियंत्रण को लेकर कोई ठोस पहल नहीं करती है. वहीं, मछुआरों को शिकायत है कि उन्हें इस काम में पशु और मत्स्यपालन विभाग भी सहयोग नहीं करते है.